अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी: Difference between revisions
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गुरु अंगद साहिब जी की सुपुत्री बीबी अमरो श्री [[गुरु अमरदास|अमरदास]] जी के भतीजे से विवाहित थी। गुरु जी ने बीबी अमरो जी को कहा कि पुत्री मुझे अपने पिता गुरु के पास ले चलो। मैं उनके दर्शन करके अपना जीवन सफल करना चाहता हूँ। पिता समान वृद्ध श्री अमरदास जी की बात को सुनकर बीबी जी अपने घर वालों से आज्ञा लेकर अमरदास जी को गाड़ी में बिठाकर खडूर साहिब ले गई। गुरु अंगद देव जी ने सुपुत्री से कुशल मंगल पूछा और कहा कि बेटा! जिनको साथ लेकर आई हो, उनको अलग क्यों बिठाकर आई हो। गुरु जी उन्हें अपना सम्बन्धी जानकर आगे आकर मिले। पर अमरदास जी कहने लगे कि मैं आपका सिख बनने आया हूँ। आप मुझे उपदेश देकर अपना सिख बनाएँ। <br /> | गुरु अंगद साहिब जी की सुपुत्री बीबी अमरो श्री [[गुरु अमरदास|अमरदास]] जी के भतीजे से विवाहित थी। गुरु जी ने बीबी अमरो जी को कहा कि पुत्री मुझे अपने पिता गुरु के पास ले चलो। मैं उनके दर्शन करके अपना जीवन सफल करना चाहता हूँ। पिता समान वृद्ध श्री अमरदास जी की बात को सुनकर बीबी जी अपने घर वालों से आज्ञा लेकर अमरदास जी को गाड़ी में बिठाकर खडूर साहिब ले गई। गुरु अंगद देव जी ने सुपुत्री से कुशल मंगल पूछा और कहा कि बेटा! जिनको साथ लेकर आई हो, उनको अलग क्यों बिठाकर आई हो। गुरु जी उन्हें अपना सम्बन्धी जानकर आगे आकर मिले। पर अमरदास जी कहने लगे कि मैं आपका सिख बनने आया हूँ। आप मुझे उपदेश देकर अपना सिख बनाएँ। <br /> | ||
लंगर के तैयार होते ही आपको लंगर वाले स्थान पर ले गये। अमरदास जी मन ही मन में सोचने लगे मैं तो कभी मांस नहीं खाता, अगर खा लिया तो प्रण टूट जायेगा। लेकिन अगर वापिस कर दिया तो गुरु अपना अनादर समझकर नाराज़ हो जायेगें। हाँ! अगर ये गुरु अंतर्यामी हैं तो अपने आप ही मेरे दिल की बात जान लेगा और लांगरी को मेरे आगे मांस रखने को मना कर देगा। अभी आप के मन में ऐसा विचार आ ही रहा था कि श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर बाँटने वाले को इनके आगे मांस रखने को मना कर दिया कि यह वैष्णव भोजन ही करते हैं। इतना सुनते ही अमरदास जी की खुशी का ठिकाना ना रहा और मन ही मन कहने लगे गुरु जी अंतर्यामी, घट घट की जानने वाले हैं। इनको ही गुरु धारण करना चहिये।<ref>{{cite web |url=http://www.spiritualworld.co.in/ten-gurus-of-sikhism/2-shri-guru-angad-dev-ji/shri-guru-angad-dev-ji-saakhiya/180-antaryami-shri-guru-angad-sahib-ji-shri-guru-angad-dev-ji-sakhi-story.html |title=अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी |accessmonthday= 23 मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आध्यात्मिक | लंगर के तैयार होते ही आपको लंगर वाले स्थान पर ले गये। अमरदास जी मन ही मन में सोचने लगे मैं तो कभी मांस नहीं खाता, अगर खा लिया तो प्रण टूट जायेगा। लेकिन अगर वापिस कर दिया तो गुरु अपना अनादर समझकर नाराज़ हो जायेगें। हाँ! अगर ये गुरु अंतर्यामी हैं तो अपने आप ही मेरे दिल की बात जान लेगा और लांगरी को मेरे आगे मांस रखने को मना कर देगा। अभी आप के मन में ऐसा विचार आ ही रहा था कि श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर बाँटने वाले को इनके आगे मांस रखने को मना कर दिया कि यह वैष्णव भोजन ही करते हैं। इतना सुनते ही अमरदास जी की खुशी का ठिकाना ना रहा और मन ही मन कहने लगे गुरु जी अंतर्यामी, घट घट की जानने वाले हैं। इनको ही गुरु धारण करना चहिये।<ref>{{cite web |url=http://www.spiritualworld.co.in/ten-gurus-of-sikhism/2-shri-guru-angad-dev-ji/shri-guru-angad-dev-ji-saakhiya/180-antaryami-shri-guru-angad-sahib-ji-shri-guru-angad-dev-ji-sakhi-story.html |title=अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी |accessmonthday= 23 मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आध्यात्मिक जगत् |language=हिंदी }}</ref> | ||
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[[चित्र:Guru-angad-dev.jpg|thumb|गुरु अंगद देव]] अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी गुरु अंगद देव की साखियों में से दूसरी साखी है।
साखी
गुरु अंगद साहिब जी की सुपुत्री बीबी अमरो श्री अमरदास जी के भतीजे से विवाहित थी। गुरु जी ने बीबी अमरो जी को कहा कि पुत्री मुझे अपने पिता गुरु के पास ले चलो। मैं उनके दर्शन करके अपना जीवन सफल करना चाहता हूँ। पिता समान वृद्ध श्री अमरदास जी की बात को सुनकर बीबी जी अपने घर वालों से आज्ञा लेकर अमरदास जी को गाड़ी में बिठाकर खडूर साहिब ले गई। गुरु अंगद देव जी ने सुपुत्री से कुशल मंगल पूछा और कहा कि बेटा! जिनको साथ लेकर आई हो, उनको अलग क्यों बिठाकर आई हो। गुरु जी उन्हें अपना सम्बन्धी जानकर आगे आकर मिले। पर अमरदास जी कहने लगे कि मैं आपका सिख बनने आया हूँ। आप मुझे उपदेश देकर अपना सिख बनाएँ।
लंगर के तैयार होते ही आपको लंगर वाले स्थान पर ले गये। अमरदास जी मन ही मन में सोचने लगे मैं तो कभी मांस नहीं खाता, अगर खा लिया तो प्रण टूट जायेगा। लेकिन अगर वापिस कर दिया तो गुरु अपना अनादर समझकर नाराज़ हो जायेगें। हाँ! अगर ये गुरु अंतर्यामी हैं तो अपने आप ही मेरे दिल की बात जान लेगा और लांगरी को मेरे आगे मांस रखने को मना कर देगा। अभी आप के मन में ऐसा विचार आ ही रहा था कि श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर बाँटने वाले को इनके आगे मांस रखने को मना कर दिया कि यह वैष्णव भोजन ही करते हैं। इतना सुनते ही अमरदास जी की खुशी का ठिकाना ना रहा और मन ही मन कहने लगे गुरु जी अंतर्यामी, घट घट की जानने वाले हैं। इनको ही गुरु धारण करना चहिये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अंतर्यामी श्री गुरु अंगद साहिब जी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) आध्यात्मिक जगत्। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2013।
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