मन चंगा तो कठौती में गंगा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (मन चंगा तो कठौती में गंगा। का नाम बदलकर मन चंगा तो कठौती में गंगा कर दिया गया है) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ") |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 12: | Line 12: | ||
*एक बार एक एक पंडित ने संत रविदास से गंगा स्नान को चलने के लिए कहा तब उन्होंने कि पंडि़त जी मेरे पास समय नहीं है पर मेरा एक काम कर दीजिए, फिर अपनी जेब में से चार सुपारी निकालते हुए कहा कि ये सुपारियां मेरी ओर से गंगा मईया को दे देना। | *एक बार एक एक पंडित ने संत रविदास से गंगा स्नान को चलने के लिए कहा तब उन्होंने कि पंडि़त जी मेरे पास समय नहीं है पर मेरा एक काम कर दीजिए, फिर अपनी जेब में से चार सुपारी निकालते हुए कहा कि ये सुपारियां मेरी ओर से गंगा मईया को दे देना। | ||
*पंडितजी ने गंगा स्नान के बाद [[गंगा]] में सुपारी डालते हुए कहा कि रविदास ने आपके लिए भेजी है। | *पंडितजी ने गंगा स्नान के बाद [[गंगा]] में सुपारी डालते हुए कहा कि रविदास ने आपके लिए भेजी है। | ||
*तभी गंगा | *तभी गंगा माँ प्रकट हुईं और पंडितजी को एक कंगन देते हुए कहा कि यह कंगन मेरी ओर से रविदास को दे देना। | ||
*हीरे जड़े कंगन को देख कर पंडित के मन में लालच आ गया और उसने कंगन को अपने पास ही रख लिया। | *हीरे जड़े कंगन को देख कर पंडित के मन में लालच आ गया और उसने कंगन को अपने पास ही रख लिया। | ||
*कुछ समय बाद पंडित ने वह कंगन राजा को भेंट में दे दिया। रानी ने जब उस कंगन को देखा तो प्रसन्न होकर दूसरे कंगन की मांग करने लगीं। | *कुछ समय बाद पंडित ने वह कंगन राजा को भेंट में दे दिया। रानी ने जब उस कंगन को देखा तो प्रसन्न होकर दूसरे कंगन की मांग करने लगीं। | ||
*राजा ने पंडित को बुलाकर दूसरा कंगन लाने को कहा। पंडित घबरा गया क्योंकि उसने संत रविदास के लिए दिया गया कंगन खुद रख लिया था और उपहार के लालच में राजा को भेंट कर दिया था। | *राजा ने पंडित को बुलाकर दूसरा कंगन लाने को कहा। पंडित घबरा गया क्योंकि उसने संत रविदास के लिए दिया गया कंगन खुद रख लिया था और उपहार के लालच में राजा को भेंट कर दिया था। | ||
*वह संत रविदास के पास पहुंचा और पूरी बात बताई। | *वह संत रविदास के पास पहुंचा और पूरी बात बताई। | ||
*तब संत रविदास ने अपनी कठौती ( | *तब संत रविदास ने अपनी [[कठौती]] (काठ का बर्तन, जिसमें पानी भरा जाता है) में जल भर कर भक्ति के साथ माँ गंगा का आवाह्न किया। | ||
*गंगा मईया प्रसन्न होकर कठौती में प्रकट हुईं और रविदास की विनती पर दूसरा कंगन भी भेंट किया। | *गंगा मईया प्रसन्न होकर कठौती में प्रकट हुईं और रविदास की विनती पर दूसरा कंगन भी भेंट किया। | ||
;शिक्षा | ;शिक्षा | ||
इसीलिए कहा जाता है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा | इसीलिए कहा जाता है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात् अन्त:करण जो कार्य करने को तैयार हो वही काम करना उचित है। <ref>{{cite web |url=http://religion.bhaskar.com/article/utsav--sant-ravidas-1859462.html|title=मन चंगा तो कठौती में गंगा |accessmonthday=2जून |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}} | {{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}} |
Latest revision as of 07:46, 7 November 2017
thumb|200px|मन चंगा तो कठौती में गंगा
- कहावत -
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
- अर्थ -
मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है।
- सम्बंधित कथा
संत रैदास से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं से एक यह है-
- संत रविदास जूते बनाने का काम करते थे। जिस रास्ते पर वे बैठते थे, वहां से कई ब्राह्मण गंगा स्नान के लिए जाते थे।
- एक बार एक एक पंडित ने संत रविदास से गंगा स्नान को चलने के लिए कहा तब उन्होंने कि पंडि़त जी मेरे पास समय नहीं है पर मेरा एक काम कर दीजिए, फिर अपनी जेब में से चार सुपारी निकालते हुए कहा कि ये सुपारियां मेरी ओर से गंगा मईया को दे देना।
- पंडितजी ने गंगा स्नान के बाद गंगा में सुपारी डालते हुए कहा कि रविदास ने आपके लिए भेजी है।
- तभी गंगा माँ प्रकट हुईं और पंडितजी को एक कंगन देते हुए कहा कि यह कंगन मेरी ओर से रविदास को दे देना।
- हीरे जड़े कंगन को देख कर पंडित के मन में लालच आ गया और उसने कंगन को अपने पास ही रख लिया।
- कुछ समय बाद पंडित ने वह कंगन राजा को भेंट में दे दिया। रानी ने जब उस कंगन को देखा तो प्रसन्न होकर दूसरे कंगन की मांग करने लगीं।
- राजा ने पंडित को बुलाकर दूसरा कंगन लाने को कहा। पंडित घबरा गया क्योंकि उसने संत रविदास के लिए दिया गया कंगन खुद रख लिया था और उपहार के लालच में राजा को भेंट कर दिया था।
- वह संत रविदास के पास पहुंचा और पूरी बात बताई।
- तब संत रविदास ने अपनी कठौती (काठ का बर्तन, जिसमें पानी भरा जाता है) में जल भर कर भक्ति के साथ माँ गंगा का आवाह्न किया।
- गंगा मईया प्रसन्न होकर कठौती में प्रकट हुईं और रविदास की विनती पर दूसरा कंगन भी भेंट किया।
- शिक्षा
इसीलिए कहा जाता है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात् अन्त:करण जो कार्य करने को तैयार हो वही काम करना उचित है। [1]
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मन चंगा तो कठौती में गंगा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2जून, 2011।