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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{"आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-49
{[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है?  
|type="()"}
|type="()"}
+बार्कर
-[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]]
-ब्राइस
+[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]]
-दुवर्जर
-[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]]
-थामस हेयर
-[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]]
||बार्कर का कहना है कि आधुनिक [[राज्य|राज्यों]] में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी।
||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है।


{"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था किसके द्वारा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57
|type="()"}
-जॉर्ज केनन द्वारा
-हेनरी टूमैन द्वारा
+जॉन फॉस्टर डलेस द्वारा
-उपर्युक्त में से किसी के भी द्वारा नहीं
||पूर्व अमेरिकी विदेश सचिव जॉन फोस्टर डलेस द्वारा 'असंलग्नता को अनैतिक' कहा गया था।
{इनमें से कौन-सा ल्यूशियन पाई की राजनीति विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न- 24
|type="()"}
+स्वतंत्रता
-समानता
-क्षमता
-विभिन्नीकरण
||ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक "एसपेक्ट्स ऑफ़ पॉलिटिकल डेवलेपमेंट"  में राजनीतिक विकास का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था में समानता, क्षमता और संरचनात्मक विभेदीकरण (Structural Differentiation) से संबंधित बताया है। 'स्वतंत्रता ल्यूशियन पाई की राजनीतिक विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है।राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है। राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं। माइनर वीनर ने [[भारत]] के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया।
{सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67
|type="()"}
-हीगल के अनुसार
+बेंथम के अनुसार
-ग्राम्सी के अनुसार
-लेनिन के अनुसार
{भारतीय [[संसद]] निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54
|type="()"}
+[[राष्ट्रपति]] [[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा
-[[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा
-राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा
-राज्य सभा, लोक सभा एवं [[निर्वाचन आयोग]] द्वारा
||अनुच्छेद 79 के अनुसार [[संसद|भारतीय संसद]] [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से अर्थात [[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]] से मिलकर बनती है।
{राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113
|type="()"}
-[[राज्य]] के [[राज्यपाल]] के द्वारा
-राज्य [[विधान सभा]] के द्वारा
-[[मुख्यमंत्री]] द्वारा जारी आदेश के द्वारा
+[[उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा।
||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
{[[जवाहर लाल नेहरू|जवाहर लाल नेहरू]] समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63
|type="()"}
-पूंजीवाद के
-साम्यवाद के
+गणतांत्रिक समाजवाद के
-अराजकतावाद के
||[[पं. जवाहरलाल नेहरू]] गणतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। ये आर्थिक नियोजन (समाजवाद) तथा, लोकतंत्र में समंवय स्थापित करना चाहते थे। इसलिए लोकतांत्रिक समाजवाद में निष्ठा व्यक्त की। इसीलिए नेहरू जी ने [[भारत]] में भूमि सुधार को प्राथमिकता  दी तथा जमींदारी, तालुकेदारी प्रथाओं को मिटाने की पहल की। इन्होंने राष्ट्रीयकरण की नीति भी अपनाई और प्रतिरक्षा तथा अन्य प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]]
{सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78
|type="()"}
-[[प्लेटो]]
-हीगल
+मैक्स वेबर
-कार्ल पॉपर
||मैक्स वेबर ने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया था। वेबर का नौकरशाही सिद्धांत सत्ता के सिद्धांत का ही एक अंग है। वेबर ने सत्ता के कुल तीन प्रकार माने हैं- 1. पारंपरिक सत्ता, 2.श्रद्धा पर आधारित सत्ता अथवा करिश्माई सत्ता, तथा 3.वैधानिक प्रभुत्व। नौकरशाही इनमें से अंतिम श्रेणी में आती है। विधिक स्तर से पोषित एवं समर्थिक नौकरशाही को उन्होंने संगठन का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[प्लेटो]]
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[कार्ल मार्क्स]] द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38
|type="()"}
-दास  कैपिटल
+ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स
-कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो
-वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफ़िट


{समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49
{'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25
|type="()"}
|type="()"}
-एडम स्मिथ
-[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से
-रॉबर्ट ओवेन
-[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से
-सेंट साइमन
+[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से
+[[कार्ल मार्क्स]]
-कॉमनवेल्थ की सदस्यता से
||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय [[कार्ल मार्क्स]] को दिया जाता है। इसीलिए उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[कार्ल मार्क्स]]
||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था।




{निम्नलिखित में  से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50
|type="()"}
-'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट
-'राज्य की उच्चतर तार्किकता'- बोसांके
-'राज्य समुदायों का समुदाय'- ग्रीन
+'मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार'- लॉक
||लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे और प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का आदर आता था। इसमें  मुख्य रूप से तीन प्राकृतिक अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के थे।


{"राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन हैं।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-58
{सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34
|type="()"}
|type="()"}
-मैकाइवर
-सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन
-फाइनर
-दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन
-ब्राइस
+माडर्न कांस्टीट्यूशन
+लास्की
-कैबिनेट गवर्नमेंट
||'राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन है।" यह कथन लास्की का है। वास्तव में राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। प्रो मुनरो ने कहा है कि लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। मैकाइवर ने कहा है कि जिस राज्य में दल प्रणाली नहीं होती उसमें क्रांति ही सरकार को बदलने का एक मात्र तरीका है। दल प्रणाली से क्रांति की आवश्यकता नहीं होती और संवैधानिक तरीके से शासन में परिवर्तन किया जा सकता है।"
||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है।


{"समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज नही है। मैं लॉर्ड एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं हूं कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतंत्रता की आशा ही व्यर्थ हो गई है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-25
{यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25
|type="()"}
|type="()"}
-मैजिनी
+संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता
+लास्की
-दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा
-वाल्टेयर
-लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा
-जॉन मिल्टन
-लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी
||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक गलत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य गलत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है। लार्ड ऐक्टन अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाते है। तब इन्होंने लिखा है कि, "विरोधाभाष यह है कि समानता और स्वतंत्रता जो कि परस्पर विरोधी विचार के में प्रारंभ होते हैं, विश्लेषण करने पर एक-दूसरे के लिए आवश्यक हो जाते हैं। यह सत्य है कि समानता के अर्थ की उचित व्याख्या स्वतंत्रता के संदर्भ में की जा सकती है।
||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं।
 
{"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-67
|type="()"}
+लॉर्ड एक्टन
-लॉर्ड ब्राइस
-लॉर्ड बेकन
-लॉर्ड रोजर एक्विनास
||"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन लॉर्ड कथन लॉर्ड ऐक्टन का है। लॉर्ड एक्टन मानते है कि शक्ति ही बुराई की जड़ है। कोई राजा या पोप जिसमें शक्ति केंद्रीकृत होती है वहां उसका दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित होता है। इसी संदर्भ में ऐक्टन ने कहा है कि शक्ति भ्रष्ट करती है।
 
{[[संसद|भारतीय संसद]] के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक किस संबंध में आहूत होती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-55
|type="()"}
-संविधान संशोधन विधेयक
-वित्त विधेयक
-भारत के उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
+साधारण विधेयक
||साधारण विधेयक के संदर्भ में संसद के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद  118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है।
 
{भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य सभा, विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56
|type="()"}
-अनुच्छेद 247
-अनुच्छेद  248
+अनुच्छेद 249
-अनुच्छेद 250
||अनुच्छेद के अनु.249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनाना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा।
 
{भारत में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114
|type="()"}
-मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी
-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) पार्टी
+समाजवादी पार्टी
-बहुजन समाज पार्टी
||समाजवादी पार्टी, भारत में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टिया हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), (4) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, (5) बहुजन समाज पार्टी,
(6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी।
 
{समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64
|type="()"}
-कोई आर्थिक नियोजन न हो
-बहुराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक नियोजन हो
-व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो
+राज्य के द्वारा नियोजन हो
||समाजवाद राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन का पक्षधर है। पूंजीवाद का विरोधी दर्शन होने के नाते समाजवाद भूमि,  उद्योग तथा उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व (राज्य द्वारा स्वामित्व) की वकालत करता है। समाजवादियों के अनुसार वैयक्तिक उद्योग एक वैक्तिक लूटमार है। ब्लैचफोर्ड के अनुसार" भूमि तथा उत्पादन के सभी साधनों को राष्ट्रीय संपत्ति बना दो सभी खेतों, खानों जहाजों, रेलों को राष्ट्रीय नियंत्रण में रख दो। बस व्यावहारिक समाजवाद पूरा हो जायेगा।"
 
{निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65
|type="()"}
-जय प्रकाश नारायण
-आचार्य नरेंद्र देव
+डॉ. राम मनोहर लोहिया
-आचार्य विनोबा भावे
||डॉ. राम मनोहर लोहिया विकेंद्रीकृत समाजवाद के समर्थक थे। पूंजी के संचय तथा बढ़ती हुई बेकारी को रोकने के लिए लोहिया ने छोटी मशीनी पर आधारित उद्योग का समर्थन किया। लोहिया प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के भी समर्थक थे उन्होंने चौखंभा राज्य की कल्पना की। जिसके अंतर्गत गांव, मण्डल (जिला), प्रांत तथा केंद्रीय सरकार इसके चार स्तंभ होगें। 'Wheel of History' इनकी प्रमुख रचना है।
 
 
{मैक्स वेबर, दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79
|type="()"}
-दार्शनिक
-आर्थिक
-आध्यात्मिक
+समाजशास्त्रीय
||समाजशास्त्र, समाज के उद्भव, विकास, संगठनतंत्र और संस्थाओं के साथ-साथ, समाज के सामाजिक व्यवहार को वैज्ञानिक तीरि से समझने का विज्ञान है। मैक्स वेबर, दुर्खीम एवं पेरेटो तीनों ही समकालीन यूरोपीय समाजशास्त्री थे जो तत्कालीन यूरोपीय समाज की समस्याओं को अपने दृष्टिकोणों के आधार पर समझते थे।
 
{"अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39
|type="()"}
+मार्क्स का
-लेनिन का
-स्टालिन का
-माओ का
||मार्क्स ने 'कम्युनिस्ट मैनीफेसटो' (साम्यवादी घोषणा पत्र) में लिखता है कि "अभी तक के समस्त समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।" मार्क्स ने इसमें कुल पांच अवस्थाओं की बात की है जिसमें प्रारंभिक आदिम साम्यवादी अवस्था तथा अंतिम साम्यवादी अवस्था को छोड़कर अन्य तीनों अवस्थाओं में वर्ग विद्यमान रहे तथा उनके बीच संघर्ष चलता रहा। दास व्यवस्था में स्वामी तथा दास के मध्य, सामंती व्यवस्था में सामंत तथा कृषक के मध्य तथा पूंजीवाद व्यवस्था में बुर्जुअ एवं सर्वहारा के मध्य संघर्ष विद्यमान रहा। इस प्रकार मानव इतिहास कुछ नहीं अपितु वर्ग संघर्ष की कहानी मात्र है।
.वर्ग-वर्ग व्यक्तियों के उस समूह को कहते है जो उत्पादन की किसी विशेष प्रक्रिया से संबंधित हो और जिनके साधारणहित एक हों।
.बुर्णुआ वर्ग-पूंजीवाद के अंतर्गत, वह वर्ग जो सामाजिक उत्पादन के प्रमुख साधनों (भूमि, कल कारखानों, कच्चे माल के स्त्रोतों इत्यादि) पर अपना स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर लेता है। अत: यह पूंजीपति-वर्ग का पर्याय है।
.सर्वहारा वर्ग-पूंजीवाद के अंतर्गत, औद्योगिक कामगारों का वह विशाल वर्ग जो जन साधारण की श्रेणी में आता है। अत: यह कामगार वर्ग (Warking class) का पर्याय है। इसके पास कोई निजी संपत्ति नहीं होती। यह केवल अपनी श्रम शक्ति के बल पर जीवन निर्वाह करने के लिए विवस होता है।
 
{ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50
|type="()"}
-फॉसीवाद
-अराजकतावाद
-आदर्शवाद
+समाजवाद
||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं  वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के अवशेष तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो।
 
 
 
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Latest revision as of 12:56, 17 March 2018

1 भारतीय संविधान को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है?

तीसरी अनुसूची
चौथी अनुसूची
पांचवीं अनुसूची
छठीं अनुसूची

2 'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25

भारत-चीन वार्ता से
भारत-पाक वार्ता से
संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से
कॉमनवेल्थ की सदस्यता से

3 सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34

सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन
दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन
माडर्न कांस्टीट्यूशन
कैबिनेट गवर्नमेंट

4 यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25

संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा
लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा
लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी