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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
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| {श्रेणी समाजवाद समर्थन करता है? | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -एक व्यक्ति, दो मत | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -एक व्यक्ति, एक मत | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| +एक व्यक्ति, जितने हित-उतने मत
| | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -उपर्युक्त में से कोई नहीं | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||श्रेणी समाजवाद का विकास ब्रिटेन में हुआ। इसके अनुसार, राज्य संप्रभु होगा, सभी शक्तियों का स्त्रोत होगा किंतु वह उसका उपभोग नहीं करेगा वरन् शक्तियों का प्रयोग विभिन्न आर्थिक श्रेणियां करेंगी। श्रेणी समाजवादी व्यावसायिक प्रतिनिधित्व की मांग करते हैं। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65
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| -[[जयप्रकाश नारायण]]
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| -[[आचार्य नरेंद्र देव]]
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| +[[डॉ. राम मनोहर लोहिया]]
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| -[[आचार्य विनोबा भावे]]
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| ||डॉ. राम मनोहर लोहिया विकेंद्रीकृत समाजवाद के समर्थक थे। पूंजी के संचय तथा बढ़ती हुई बेकारी को रोकने के लिए लोहिया ने छोटी मशीनी पर आधारित उद्योग का समर्थन किया। लोहिया प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के भी समर्थक थे उन्होंने चौखंभा राज्य की कल्पना की। जिसके अंतर्गत गांव, मण्डल (ज़िला), प्रांत तथा केंद्रीय सरकार इसके चार स्तंभ होगें। 'Wheel of History' इनकी प्रमुख रचना है।
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| {"रक्त संबंध समाज को जन्म देता है और कालांतर में समाज राज्य को" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-52
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| -लीकॉक का
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| +मैकाइवर का
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| -जैक्स का
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| -गैटल का
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| ||राज्य की उत्पत्ति का सर्वाधिक मान्य सिद्धांत 'विकासवादी सिद्धांत है, जिसके अनुसार राज्य की अचानक उत्पत्ति (जैसा दैवीय सिद्धांत और सामाजिक समझौता सिद्धांत मानते हैं) न होकर क्रमिक विकास का फल है इसमें रक्त संबंध ने भी अंशत: योगदान दिया है। रक्त संबंध एकता का प्रथम और दृढतम बंधन रहा है। मैकाइवर का कथन है कि "रक्त संबंध समाज को जन्म देता है और कालांतर में समाज राज्य को। "सर हेनरी मेन ने लिखा है कि "समाज के प्राचीनतम इतिहास की आधुनिकतम गवेषणाएं इस निष्कर्ष की ओर इंगित करती हैं कि समूहों को एकता के सूत्र में बांधने वाला प्रारंभिक बंधन रक्त बंधन ही था।"
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| {वह अभिमत कि "प्रतिस्पर्धा संघर्ष और शोषण पर आधारित भौतिक प्रगति समाज को अमानवीयकरण की ओर ले जाती है"। किस विचारक से संबंधित है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-60
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| -कांट
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| -रूसो
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| +[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]]
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| -एरिक फ्रॉम
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| ||[[कार्ल मार्क्स]] ने पूंजीवाद की आलोचना सिर्फ आर्थिक आधार पर नहीं की है। मार्क्स के अनुसार, प्रतिस्पर्धा पर आधारित पूंजीवादी समाज उस भौतिक प्रगति को बढ़ावा देता है जो संघर्ष एवं शोषण पर आधारित है तथा अमानवीयकरण की ओर ले जाती है।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[कार्ल मार्क्स]]
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| {समानता के उदारवादी विचार से निम्नलिखित में किस प्रकार की समानता अनुरूप नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-88,प्रश्न-27
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| -कानूनी समानता
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| -सामाजिक समानता
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| -राजनीतिक समानता
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| +आर्थिक समानता
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| ||समानता का उदारवादी विचार 'आर्थिक समानता' के ऊपर सामाजिक समानता, कानूनी समानता, राजनीतिक समानता व नागरिक समानता को मान्यता देता है। 'आर्थिक समानता' समाजवादी समाज की मुख्य विशेषता है। इसके अभाव में राजनीतिक व नागरिक समानता का कोई मूल्य नहीं है। आर्थिक समानता धन के समान वितरण पर बल देती है।
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| {इनमें से कौन राजनीतिक संस्कृति का संघटक नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-71
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| |type="()"}
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| -आनुभविक विश्वास
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| +व्यक्तिपरक हित
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| -मूल्य अभिरुचियां
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| -प्रभावी अनुक्रियाएं
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| ||आमंड ने अपने एक निबंध 'कम्पेरेटिव पॉलिटिकल सिस्टम' में 'राजनीतिक संस्कृति' शब्द का उल्लेख किया था। राजनीतिक संस्कृति मोटे तौर पर तीन तत्त्वों का समूह होती हैं-
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| .आनुभविक विश्वास, मूल्य अभिरुचियां, प्रभावी अनुक्रियाएं,
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| {[[लोक सभा]] में किसी विधेयक पर आम बहस किस स्तर पर होती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-58
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| |type="()"}
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| -विधेयक की प्रस्तुति के समय
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| +द्वितीय वाचन के समय
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| -तृतीय वाचन के समय
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| -प्रतिवेदन स्तर पर
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| ||विधेयक को पुर:स्थापित करने का प्रक्रम उसका प्रथम वाचन होता है। द्वितीय वाचन में विधेयक पर विचार-दिमर्श होता है। सभा के सदस्य उसी स्तर पर आम बहस करते हैं। द्वितीय वाचन में ही सभा विधेयक को प्रवर समिति या दोनों सभाओं की संयुक्त समिति को सौंप सकती है। द्वितीय वाचन में ही विधेयक पर खंडश: विचार भी होता है। प्रभारी सदस्य का यह प्रस्ताव कि विधेयक या यथासंशोधित विधेयक पारित किया जाए विधेयक का तृतीय वाचन कहलाता है।
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| {संघ [[लोक सेवा आयोग]] का प्रधान कौन होता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-116
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| -एक [[राष्ट्रपति]]
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| +एक अध्यक्ष
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| -[[सर्वोच्च न्यायालय]] का एक न्यायाधीश
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| -मंत्रिमंडल का एक मंत्री
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| ||संघ लोक सेवा अयोग [[भारत]] के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार की लोक सेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन करता है। संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष तथा दस सदस्य होते हैं। आयोग का प्रधान, अध्यक्ष होता है। [[22 नवंबर]], [[2014]] से दीपक गुप्ता संघ सेवा आयोग के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
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| {समाजवादी विचार का संबंध है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-63,प्रश्न-67
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| |type="()"}
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| -राजनीतिक समानता से
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| +आर्थिक समानता से
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| -शैक्षिक समानता से
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| -सांस्कृतिक समानता से
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| ||समाजवादी विचार धारा उदारवाद-व्यक्तिवाद के प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न हुई। जहां पूंजीवाद स्वतंत्रता को केन्द्रीय धारणा मानता है, वहीं समाजवाद व्यक्ति की समानता को आधारभूत मानता है। समानता में भी यह आर्थिक समानता पर सार्वधिक बल देता है। व्यक्तिवाद जहां व्यक्ति को महत्त्व देता है, वहीं समाजवाद समाजकेन्द्रित अवधारणा को समाजवाद उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व का पक्षधर है। समाजवाद आर्थिक व्यवस्था को नियोजित करके सबके उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। इसी संदर्भ में लैडलर ने कहा है कि "प्रजातांत्रिक आदर्श का आर्थिक पक्ष वास्तव में समाजवादी ही है।"
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| {"मंत्रिपरिषद जहाजरूपी शासन को चलाने वाला पहिया है।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-81
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| -मेरियट
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| -लास्की
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| +रैम्जे म्योर
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| -बेजहाट
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| ||संसदीय व्यवस्था में मंत्रिमण्डल ([[प्रधानमंत्री]] के नेतृत्व) कार्यपालिका की शक्तियों का प्रयोग करती है। शासन संचालन का पूरा दायित्व इसी पर होता है। इसी संदर्भ में रैम्जेम्योर ने कहा है कि "यह जहाज रूपी राज्य को घुमाने वाला चक्र है।" मंत्रिमण्डल के उत्तर दायित्व के बारे में मार्ले ने लिखा है कि "मंत्रिमण्डल के सब मंत्री साथ-साथ डूबते है तथा साथ-साथ तैरते हैं।"
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| {लाखों लोग [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] को देवता के रूप में पूजते हैं और अन्य लाखों लोग एक दुष्ट के रूप में घृणा करते हैं", यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-41
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| +मैक्सी
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| -सेबाइन
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| -कार्ल पॉपर
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| -ऑकशाट
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| ||मार्क्स वैज्ञानिक समाजवाद का जन्मदाता है यद्यपि मार्क्स से पहले अनेक ब्रिटिश तथा फ्रेंच विचारक थे जिनके द्वारा समाजवादी विचार व्यक्त किए गए। इनमें फ्रांस के नॉयल बाबेफ, सेण्ड साइमन, चार्ल्सफोरियर, और इग्लैण्ड में जॉन, डी. सिसमेण्डी, बिलियम थॉम्पसन तथा रावर्ट आवेन प्रमुख थे। लेकिन मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन करने वाली शक्तियों की व्याख्या कर उसे वैज्ञानिकता प्रदान की। मार्क्स के विचार इतने हुए मैक्सी ने लिखा है कि "निष्पक्ष रूप से उस व्यक्ति के बारे में कुछ भी कहना बहुत कठिन हो जाता है जिसे लाखों लोग ईश्वर की भांति पूजते हो और लाखों पिशाच मानकर घृणा करते हों।"
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| {फ़ेबियन समाजवाद समर्थक नहीं था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-52
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| |type="()"}
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| +उग्र परिवर्तनों का
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| -म्यूनिसिपल सुधारों का
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| -अविलंब सामाजिक पुन: संरचना का
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| -मजदूरों के आंदोलन का
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| ||फ़ेबियन समाजवद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था।
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| {राज्य के कार्यों की परंपरागत विचारधारा के अनुसार अनिवार्य तथा ऐच्छिक दो भागों में बांटा गया है लेकिन वर्तमान समय में समय की अवधारणा के अनुसार अनिवार्य और ऐच्छिक का भेद समाप्त है तथा समस्त कार्य अनिवार्य ही माने जा रहे हैं।(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-53
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| |type="()"}
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| +लोक कल्याणकारी राज्य
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| -अनिवार्य सेवा राज्य
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| -लोकतांत्रिक राज्य
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| -आदर्शवादी राज्य
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| ||परंपरागत विचारधारा राज्य के कार्यों को दो वर्गों (अनिवार्य तथा ऐच्छिक) में विभाजित करने की रही है और यह माना जाता रहा है कि अनिवार्य कार्य तो राज्य के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाने जरूरी हैं, किंतु ऐच्छिक कार्य राज्य की जनता के हित में होते हुए भी राज्य के द्वारा उनका दिया जाना तत्कालीन समय की विशेष परिस्थितियों और शासन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन लोक-कल्याणकारी राज्य की धारणा के विकास के परिणामस्वरूप अनिवार्य और ऐच्छिक कार्यों की वह सीमा-रेखा समाप्त हो गई है और अब यह माना जाने लगा है कि परंपरागत रूप में ऐच्छिक कहे जाने वाले कार्य भी राज्य के लिए उतने ही अवश्यक हैं, जितने कि अनिवार्य समझे जाने वाले कार्य्।
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| {"इतिहास कुलीन वर्गों का श्मशान है।" यह कथन किस विचारक का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-61
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| -प्लेटो
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| +पैरेटो
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| -मोस्का
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| -बर्नहम
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| ||पैरेटो 'अभिजन वर्ग' सिद्धांत का प्रवक्ता है। इसके अनुसार, अभिजनों में संरचण होता है। कोई भी राजनीतिक अभिजन स्थायी नहीं होता है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति और अभिजन वर्ग जनवरत रूप से ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर, और नीचे स्तर से ऊंचे स्तर की ओर जाते रहते हैं। पतनकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ती रहती है और दूसरी ओर शासित वर्गों में ऊंचे गुणों से संपन्न तत्त्व उभरते रहते हैं। पैरेटो का कहना हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से अमाज का प्रत्येक अभिजन वर्ग अंतत: नष्ट हो जाता है और उसके स्थान पर दूसरे लोग आ जाते हैं। इसके पैरेटो ने इतिहास को 'कुलीन वर्गों का शमशान' कहा है।
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| {यह कथन किसका है "ईश्वर जिसने हमें जन्म दियाअ उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-88,प्रश्न-28
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| -गांधीजी
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| -लास्की
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| -मिल
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| +जेफरसन
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| ||थामस जेफरसन अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति और 'अमेरिकी' 'स्वतंत्रता की घोषणा' के मुख्य लेखक थे। उन्होंने कहा था कि "ईश्वर जिसने हमें जन्म दिया उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की।" जेदरसन का ही कथन है कि जहां प्रेस की आजादी होती है और सभी पढ़ने के योग्य होने हैं वहा सभी सुरक्षित होते हैं।
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| अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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| महात्मा गांधी के प्रमुख कथन निम्नलिखित हैं-
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| .आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।
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| .जब तक गलती करने की स्वतंत्रता न हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।
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| .पृथ्वी सभी मनुष्यों की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं।
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| .मिल ने स्वतंत्रा का नकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। 'ऑन लिबर्टी' में मिल ने स्वतंत्रता संबंधी विचार दिए। मिल के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन में राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम संभव सीमा तक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की छूट ही स्वतंत्रता है।"
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| .लास्की के अनुसार, "राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति ही राजनीतिक स्वतंत्रता है।"
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| {इनमें से कौन राजनीतिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-72 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +राजनीतिक व्यवस्था के अंग एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते।
| | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -राजनीतिक व्यवस्था की सीमा होती है। | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| -राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण होता है। | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| -राजनीतिक व्यवस्था का वैध बाह्मकारी शक्ति होती है।
| | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार बताए हैं- | | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
| .भागों की अंतनिर्भरता या अंत:संबंधित गतिविधियां, .राजनीतिक व्यवस्था की सीमा, .राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण, और .वैध बाध्यकारी शक्ति।
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| {लोक लेखा-समिति अपना प्रतिवेदन सौंपती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-59
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| |type="()"}
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| -[[राष्ट्रपति]] को
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| -[[प्रधानमंत्री]] को
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| +लोक सभा को
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| -वित्त मंत्री को
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| ||लोक सभा समिति अपना प्रतिवेदन लोक सभा के स्पीकर (अध्यक्ष) को प्रस्तुत करती है क्योंकि यह वित्तीय समिति है साथ ही यह समिति लोक सभा की समिति है। राज्य सभा के सदस्य इसमें सहयुक्त होते हैं जिससे समिति सुदृढ़ हो जाए।
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| {इनमें से कौन-सा तथ्य संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के संदर्भ में सत्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-117
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| |type="()"}
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| -वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं
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| -उनकी नियुक्ति 6 वर्ष या जब तक वे 65 वर्ष के हों, जो भी पहले हो, के लिए होती है
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| +वे प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त होते हैं
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| -वे निष्पक्ष होते हैं
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| ||संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष या जब तक वह 65 वर्ष आयु के हों, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान निष्पक्षा से कार्य करने हेतु वे कर्त्तव्यबद्ध होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि कथन-3 असत्य है।
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| {विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना कहां हुई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-63,प्रश्न-68 | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -चीन में | | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| +सोवियत संघ में | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -क्यूबा में | | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| -चेकोस्लोवालिया में
| | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना सोवियत संघ में 1917 में हुई थी। लेनिन सोवियत संघ की बोल्शेविक क्रांति (1917) के कर्णधार थे। यह प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) का समय था जब लेनिन ने अपनी विख्यात कृति 'साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है' (1916) लिखी। इसमें लेनिन ने तर्क दिया है कि पूंजीवाद राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा का शोषण तो करता ही है पर यह साम्राज्यवाद का जाल विछाकर अल्प विकसित देशों का शोषण भी करता है। इसी नारे के साथ लेनिन ने रूस में क्रांन्ति कर समाजवादी राज्य की स्थापना की। | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| {"समाज की उन्नति के लिए 'विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही" आवश्यक है।" निम्नलिखित विचारकों में से किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न- 82 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +फ्रांसिस बेकन | | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -ज्यां जाक रूसो | | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| -ल्यूकाच | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -सी.बी. मैक्फर्सन | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| | | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
| ||फ्रांसिस बेकन के अनुसार "समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक है"। | |
| </quiz> | | </quiz> |
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