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| {सामूहिक उत्तरदायित्व की विशेषता किस शासन पद्धति में पाई जाती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-99,प्रश्न-2 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +संसदीय | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -अध्यक्षात्मक | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| -मिश्रित | | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -इनमें से कोई नहीं | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||संसदीय प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका [[मंत्रिपरिषद]] होती है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से [[लोक सभा]] के प्रति उत्तरदायी होती है। अत: लोक सभा का विश्वास खोते ही मंत्रिपरिषद पद-त्याग देती है। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {[[ब्रिटेन]] में महिलाओं को वोट देने का अधिकार किस शताब्दी में मिला? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-104,प्रश्न-2 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -17वीं | | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -18वीं | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| -19वीं | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| +20वीं
| | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||[[ब्रिटेन]] में महिलाओं को मताधिकार [[1928|वर्ष 1928]] में (20 वीं सदी) 'जनप्रतिनिधि कानून' के माध्यम से प्रदान किया गया।
| | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
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| {दबाव समूहों ने "तीसरे सदन" का नाम प्राप्त कर लिया है, यह किसका विचार है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-109,प्रश्न-32
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| +फाइनर
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| -ब्राइस
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| -डायसी
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| -लास्की
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| ||दबा समूहों को 'तृतीय सदन' की संज्ञा फाइनर द्वारा दी गई थी, क्योंकि दबाव समूह [[अमेरिका]] में विधि निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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| | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| {किसने इस बात पर जोर दिया कि नौकरशाही एक स्वतंत्र अस्तित्व है और समाज चाहे पूंजीवादी हो या समाजवादी वह बनी रहेगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-132,प्रश्न-22 | |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[मैक्स वेबर]]
| | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| -[[कार्ल मार्क्स]] | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -साइमन
| | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| -लियो ट्राट्स्की | | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||"नौकरशाही एक स्वतंत्र अस्तित्व है और समाज चाहे पूंजीवादी हो या समाजवादी वह बनी रहेगी", यह चिंतन मैक्स वेबर का है। वेबर के सूत्रीकरण में, नौकरशाही को लोक सेवा के साथ नहीं मिलाया जाता। इसका अर्थ सामूहिक गतिविधियों के तर्क संगतिकरण की समाजशास्त्रीय अवधारणा है। मैक्स बेवर ने नौकरशाही के अपने सूत्रीकरण को 'आदर्श प्रकार' कहा है। नौकरशाही का सर्वप्रथम सुव्यस्थित अध्ययन इन्हीं ने किया तथा नौकरशाही को परिभाषित किया।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[मैक्स वेबर]] | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| {[[संसद]] के संयुक्त अधिवेशन को कौन संबोधित करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-138,प्रश्न-12 | |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[सभापति]], [[राज्य सभा]]
| | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -[[लोक सभा अध्यक्ष]]
| | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| +[[राष्ट्रपति]] | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -विरोधी दल का नेता | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||अनुच्छेद 87 (1) के अनुसार [[राष्ट्रपति]], [[लोक सभा]] के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत [[संसद]] के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
| | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
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| {[[भारत]] में [[संघ लोक सेवा आयोग]] द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन किसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-172,प्रश्न-202
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| -[[प्रधानमंत्री]] | |
| -मुख्य न्यायाधीश
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| +[[राष्ट्रपति]]
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| -महान्यायावादी
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| ||[[संविधान]] के अनुच्छेद 323 (1) के अनुसार [[संघ लोक सेवा आयोग]] द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन (आयोग द्वारा किए गए कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट) [[राष्ट्रपति]] के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति इस प्रतिवेदन को ससंद के समक्ष रखता है। राज्य लोक सेवा आयोग वार्षिक प्रतिवेदन [[राज्यपाल]] को प्रस्तुत करते हैं। ऐसे प्रतिवेदन राज्यपाल द्वारा [[राज्य]] [[विधानमण्डल]] के समक्ष रखवाए जाते हैं [अनुच्छेद-323 (2)]।
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| {[[संविधान]] के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ग्राम पंचायतों के गठन का प्रावधान है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-186,प्रश्न-2
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| -अनुच्छेद 39
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| +अनुच्छेद 40
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| -अनुच्छेद 41
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| -अनुच्छेद 42
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| ||संविधान का अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों के गठन का प्रावधान करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों। | |
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| {"जिसे राजनीति में जातिवाद कहा जाता है। इसी जातीयों के राजनीतिकरण से अधिक और कुछ नहीं है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-189,प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -लायड रूडाल्फ
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| -मोरेस जोंस
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| -एम.एन. श्रीनिवास
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| +रजनी कोठारी
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| ||प्रो. रजनी कोठारी ने अपनी पुस्तक 'कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स' में भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण किया है। [[भारत]] की जनता जातियों के आधार पर संगठित है। अत: न चाहते हुए भी राजनीति को जाति संस्था का उपयोग करना ही पड़ेगा। अत: जिसे राजनीति में 'जातिवाद' कहा जाता है, वह जातियों के राजनीतिकरण से अधिक और कुछ नहीं है। जाति को अपने दायरे में खींचकर राजनीति उसे अपने कम में लाने का प्रयत्न करती है।
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| {निम्नलिखित में से कौन अधिकारों का सर्वाधिक पुराना सिद्धांत हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-90,प्रश्न-13
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| |type="()"}
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| -अधिकारों का आर्थिक सिद्धांत
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| -अधिकारों का वैधानिक सिद्धांत
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| +प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत
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| -अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत
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| ||अधिकारों के संबंध में प्राकृतिक सिद्धांत सबसे अधिक प्राचीन है। इस सिद्धांतानुसार" मानवीय अधिकार पूर्णतया प्राकृतिक और जन्मसिद्ध है। अधिकार उसी प्रकार मनुष्य की प्रकृति के अंग होते हैं जिस प्रकार उसकी चमड़ी कर रंग। इनकी विस्तृत व्याख्या करने या औचित्य बताने की कोई आवश्यकता नहीं है, ये तो स्वयंसिद्ध हैं।"
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| {संघीय व्यवस्था में प्राय: निम्न की आवश्यकता होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-97,प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| +लिखित [[संविधान]] और शक्ति विभाजन
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| -लिखित संविधान और संसदीय संप्रभुता
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| -मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत
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| -मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य
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