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| {निम्नलिखित में से कितने अधिकारी तंत्र (नौकरशाही) को विवेकपूर्ण विविध सत्ता के रूप में चित्रित किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-134,प्रश्न-34 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -एफ.एम. मार्क्स | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -विल्फ्रेडो पैरेटो | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| +[[मैक्स वेबर]] | | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -हरबर्ड ए. सीमों | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||[[मैक्स वेबर]] ने नौकरशाही को 'विवेकपूर्ण विविध सत्ता' के रूप में चित्रित किया। उन्होंने प्राधिकार (नौकरशाही) के तीन रूप बताए हैं-(1) पारंपरिक प्राधिकार, (2) करिश्माई प्राधिकार, (3) कानूनी-तार्किक प्राधिकार। इनमें से तीसरा प्राधिकार 'विवेकपूर्ण विविक सत्ता' से संबंधित है। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {[[फ्रांस]] की राज्य-क्रांति का स्वरूप क्या था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-16
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| +बुर्जुआ (मध्यवर्ग)
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| -सर्वहारा
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| -समाजवादी
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| -नव लोकतांत्रिक
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| ||फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) फ्रांस के इतिहास में राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल और आमूल परिवर्तन की अवधि थी। इसके दौरान फ्रांस की सरकारी संरचना, जो पहले कुलीन और कैथोलिक पादरियों के लिए सामंती विशेषाधिकारों के साथ पूर्णतया राजशाही पद्धति पर आधारित थी, में आमूल परिवर्तन हुए और यह नागरिकता और अविच्छेद्य अधिकारों के प्रबोधन सिद्धान्तों पर आधारित हो गई। फ्रांस की राज्य-क्रांति का स्वरूप बुर्जुआ (मध्य वर्ग) था।
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| {जान रॉल्स की प्रसिद्ध पुस्तक का शीर्षक क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-13
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| +ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस
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| -हाउ टू इस्टेब्लिश ए जस्ट सोसायटी
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| -माई व्यूज ऑन जस्टिस
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| -दि जस्ट एंड अनजस्ट
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| ||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई।
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| {निम्न में से किस तत्व को [[प्लेटो]] ने अधिक महत्त्व नहीं दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-36 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +उद्यमिता
| | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -क्षुधा या उत्पादन | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| -शौर्य | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| -विवेक | | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||प्लेटो ने उद्यमिता को अधिक महत्त्व नहीं दिया। [[प्लेटो]] के अनुसार, राज्य व्यक्ति का ही वृहत् रूप है। इसलिए राज्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझना जरूरी है। [[प्लेटो]] के अनुसार, मनुष्य के व्यवहार के तीन मनुष्य स्त्रोत हैं- इच्छा या तृष्णा (Desire), भावना या मनोवेग (Emotion) और ज्ञान (Knowledge) या विवेक (Wisdom) प्लेटो के अनुसार, ये सभी गुण सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं परंतु विभिन्न मनुष्यों में भिन्न-भिन्न गुणों की प्रधानता रहती है। इस आधार पर प्लेटो ने समाज में तीन वर्गों की पहचान की है- जिनमें इच्छा या तृष्णा की प्रधानता होती है, वे उद्योग-व्यापार को तत्पर होते हैं। जिनमें भावना की प्रमुखता है वे सैनिक का व्यवसाय अपनाते हैं तथा जो ज्ञान से संपन्न हैं। वे दार्शनिक के रूप में ख्याति अर्जित करते हैं।
| | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
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| {जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रर्भुसत्ता सिद्धांत को कहा जाता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-13
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| -लोकप्रिय प्रभुसत्ता सिद्धान्त
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| -बहुलवादी सिद्धांत
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| +एकलवादी सिद्धांत
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| -प्रत्ययवादी सिद्धांत
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| ||जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रभुसत्ता सिद्धांत को 'एकलवादी सिद्धांत' कहा जाता है। ऑस्टिन ने सकारात्मक कानून (Positive Law) का सिद्धांत भी प्रस्तुत किया था जो राज्य की कानूनी प्रभुसत्ता से जुड़ा है।
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| {राजनीति विज्ञान में व्यवहारवाद एक प्रवृत्ति थी जिसने- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34, प्रश्न-23
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| +राजनीतिक विज्ञान को मानव प्रकृति पर आधारित किया।
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| -राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान में बदलने का प्रयास किया।
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| -शक्ति के अवधारणा को प्रक्रिया की अवधारणा के लिए स्वीकार किया।
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| -व्याख्या को प्रतिमानों के लिए प्रतिस्थापित किया।
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| ||राजनीति विज्ञान में व्यवहारवाद एक आंदोलन के रूप में 20वीं सदी में उभरा। इसका मुख्य ध्येय मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को अध्ययन का केंद्र बिन्दु बनाना था जिससे यह तथ्य प्राप्त हो सके कि विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य किस प्रकार का व्यवहार करता है। इस प्रकार व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान को मानव प्रकृति पर आधारित किया व्यवहारवाद राजनीति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने के लिए इसे मूल्य निरपेक्ष बनाया तथा इसके अध्ययन में वैज्ञानिक प्रविधियों का प्रयोग किया। इसका उद्देश्य राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान जैसा बनाना था, न कि राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान में बदलना था।
| | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
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| {"मेरा प्रोग्राम (कार्यक्रम) कार्य है बात नहीं" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-14 | |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -मार्क्स | | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| -स्टालिन | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| +मुसोलिनी | | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| -[[महात्मा गांधी]] | | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||फॉसीवाद एक सुनिश्चित एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में 'नहीं' उभरा। यह एक कार्यक्रम के रूप में सामने आया। मुसोलिनी ने स्वयं कहा है कि "हम निश्चित सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। फॉसीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य काम करना है, बात करना नहीं। देश काल की परिस्थितियों के अनुसार हम कुलीनतंत्रीय और जनतंत्रीय, रूढ़िवादी और प्रगतिवादी, प्रतिक्रियावादी और क्रांतिकारी तथा कानूनी और गैरकानूनी बन सकते हैं। इस प्रकार फॉसीवाद का कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है। | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| {इनमें से कौन राजनीतिक दलों का आवश्यक कार्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-48,प्रश्न-24 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +वे गुप्त रूप से जनता की सेवा करते हैं | | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -वे चुनाव लड़ते हैं | | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| -वे राजनीतिक शक्ति के लिए प्रयास करते हैं | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -वे राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||'गुप्त रूप से जनता की सेवा करना' राजनीतिक दलों का आवश्यक कार्य नहीं है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों के कार्य, लोकमत का निर्माण करना, चुनावों का संचालन करना, सरकार का निर्माण करना, राजनीतिक चेतना का प्रसार करना, जनता व शासन के मध्य संबंध स्थापित करना, शासन सत्ता को मर्यादित रखना तथा सरकार के विभिन्न भागों के मध्य समंवय तथा सामंजस्य स्थापित करना आदि हैं।
| | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
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| {"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह निम्न में से किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-26
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| |type="()"}
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| +ऑस्टिन ने
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| -लास्की ने | |
| -क्रैब ने
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| -मैकाइवर ने।
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| ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (1) संप्रभुता (2) आदेश (समादेश) (3) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु का आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवादी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। | |
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| {'मार्शल योजना' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-113,प्रश्न-14
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| |type="()"}
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| -जर्मनी की सहायता से
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| -सोवियत संघ की सहायता से
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| +पश्चिमी यूरोप की सहायता से
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| -पूर्वी यूरोप की सहायता से
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| ||अमेरिकी विदेश सचिव जार्ज मार्शल ने 5 जून, 1947 को अपनी योजना की घोषणा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में की। इस योजना को 'यूरोपीय पुनरुत्थान योजना' (Eutopean Recovery Plan) के नाम से जाना जाता है, जिसे सामान्यत: 'मार्शल योजना' (Marshal Plan) कहते हैं।
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