दीन सबन को लखत है -रहीम: Difference between revisions

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गरीब की दृष्टि सब पर पड़ती है, पर गरीब को कोई नहीं देखता। जो गरीब को प्रेम से देखता है, उसकी मदद करता है, वह दीनबन्धु भगवान के समान हो जाता है।
गरीब की दृष्टि सब पर पड़ती है, पर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो ग़रीब को प्रेम से देखता है, उसकी मदद करता है, वह दीनबन्धु भगवान के समान हो जाता है।


{{लेख क्रम3| पिछला=थोरी किए बड़ेन की -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=दोनों रहिमन एक से -रहीम}}
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Latest revision as of 09:16, 12 April 2018

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखे न कोय ।
जो ‘रहीम’ दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय ॥

अर्थ

गरीब की दृष्टि सब पर पड़ती है, पर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो ग़रीब को प्रेम से देखता है, उसकी मदद करता है, वह दीनबन्धु भगवान के समान हो जाता है।


left|50px|link=थोरी किए बड़ेन की -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=दोनों रहिमन एक से -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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