रहिमन कीन्ही प्रीति -रहीम: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:20, 12 April 2018
‘रहिमन’ कीन्ही प्रीति, साहब को भावै नहीं।
जिनके अगनित मीत, हमें ग़रीबन को गनैं॥
- अर्थ
मैंने स्वामी से प्रीति जोड़ी, पर लगता है कि उसे वह अच्छी नहीं लगी। मैं सेवक तो ग़रीब हूं, और, स्वामी के अगणित मित्र हैं। ठीक ही है, असंख्य मित्रों वाला स्वामी ग़रीबों की तरफ क्यों ध्यान देने लगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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