अह्रिमन: Difference between revisions
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'''अह्रिमन''' ज़रथुस्त्र धर्म में आगे चलकर वासना की प्रतीक अह्रिमन संज्ञा हुई। गाथा साहित्य के अवेस्ता ग्रंथ में इस संज्ञा का मौलिक रूप 'अंग्र मैन्यु' (वैदिक मन्यु) एवं पहलवी में 'अह्रिमन' है। जब से धर्म के संसार में इस महाभयंकर राक्षस का आगमन हुआ, विनाश और प्रलय की सृष्टि हुई। इसमें तथा 'स्पेंत मैन्यु' में, जो कल्याणकारी शक्ति है, संघर्ष का बीज भी बो दिया गया। पैगंबर का अपने अनुयायियों के लिए अनुशासन इसी वासना की शक्ति से अनवरत लड़ते रहना है जिसका अंतिम परिणाम कल्याणकारी शक्ति की जीत एवं अह्रिमन का पलायन एवं पाताल लोक में शरण लेना है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A8 |title=अह्रिमन|accessmonthday=10 नवंबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | '''अह्रिमन''' [[ज़रथुस्त्र|ज़रथुस्त्र धर्म]] में आगे चलकर वासना की प्रतीक अह्रिमन संज्ञा हुई। गाथा साहित्य के अवेस्ता ग्रंथ में इस संज्ञा का मौलिक रूप 'अंग्र मैन्यु' (वैदिक मन्यु) एवं पहलवी में 'अह्रिमन' है। | ||
*जब से [[धर्म]] के संसार में इस महाभयंकर राक्षस का आगमन हुआ, विनाश और [[प्रलय]] की सृष्टि हुई। | |||
*इसमें तथा 'स्पेंत मैन्यु' में, जो कल्याणकारी शक्ति है, संघर्ष का बीज भी बो दिया गया। | |||
*पैगंबर का अपने अनुयायियों के लिए अनुशासन इसी वासना की शक्ति से अनवरत लड़ते रहना है जिसका अंतिम परिणाम कल्याणकारी शक्ति की जीत एवं अह्रिमन का पलायन एवं [[पाताल लोक]] में शरण लेना है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A8 |title=अह्रिमन|accessmonthday=10 नवंबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | |||
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अह्रिमन ज़रथुस्त्र धर्म में आगे चलकर वासना की प्रतीक अह्रिमन संज्ञा हुई। गाथा साहित्य के अवेस्ता ग्रंथ में इस संज्ञा का मौलिक रूप 'अंग्र मैन्यु' (वैदिक मन्यु) एवं पहलवी में 'अह्रिमन' है।
- जब से धर्म के संसार में इस महाभयंकर राक्षस का आगमन हुआ, विनाश और प्रलय की सृष्टि हुई।
- इसमें तथा 'स्पेंत मैन्यु' में, जो कल्याणकारी शक्ति है, संघर्ष का बीज भी बो दिया गया।
- पैगंबर का अपने अनुयायियों के लिए अनुशासन इसी वासना की शक्ति से अनवरत लड़ते रहना है जिसका अंतिम परिणाम कल्याणकारी शक्ति की जीत एवं अह्रिमन का पलायन एवं पाताल लोक में शरण लेना है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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