अर्ल हेनरी बेनेट: Difference between revisions

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'''आर्लिग्टन, हेनरी बेनेट, अर्ल''' (1618-85), गृहयुद्धकालीन अंग्रेज राजनीतिज्ञ। वह राजा की ओर से लड़ा था और राजा के शिरश्छेदन के बाद राजपरिवार के साथ ही विदेश चला गया था। चार्ल्स द्वितीय के स्वदेश लौटने और राज्यारोहण के बाद आर्लिग्टन राजकीय धनसचिव हुआ और क्लेयरेंडन मंत्रिमंडल के पतन के बाद 'केबल' मंत्रिमंडल का सदस्य और वैदेशिक मंत्री हुआ। फ्रांस के लुई चतुर्दश के साथ जो चार्ल्स द्वितीय की डोवर की गुप्त संधि हुई थी उसका रहस्य राजा के अतिरक्ति बस दो व्यक्ति और जानते थे, विलफर्ड और आर्लिग्टन। आर्लिग्टन चार्ल्स के सभी धन संबंधी कुकृत्यों का सहायक था जिसके लिए उसे राजा ने 'अर्ल', 'गार्टर के वीर' आदि की उपाधियां दीं। आर्लिग्टन नितांत स्वार्थपरक व्यक्ति था। उसे दल परिवर्तित करने में देर नहीं लगती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=443 |url=}}</ref> फलत: वह सभी दलों का विश्वास खो बैठा और उसके प्रबल शत्रु बकिंघम ने उसपर पार्लमेंट में मुकदमा चलाया। मुकदमा तो वह जीत गया पर अपने पद से उसने इस्तीफा दे दिया। उसे पद बराबर मिलते गए, पर उसके प्रभाव का अंत हो गया। देशप्रेम उसे छू तक न गया था और लाभ तथा सुख ही उसके उपास्य थे। उसे अपने देश के संविधान तक का ज्ञान न था, पर उसकी सफलता का रहस्य उसका संमोहक व्यक्तित्व और आकर्षक वार्तालाप था। उसे यूरोप की अनेक भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था।<ref>सं.ग्रं.-लाडरडेल पेपर्स; ओरिजिनल लेटर्स ऑव सर आर. फैन्शा, 1725।</ref>
'''आर्लिग्टन, हेनरी बेनेट, अर्ल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Henry Bennet, 1st Earl of Arlington'', जन्म- 1618; मृत्यु- [[28 जुलाई]], 1685) गृहयुद्धकालीन [[अंग्रेज़]] राजनीतिज्ञ था। वह राजा की ओर से लड़ा और राजा के शिरश्छेदन के बाद राजपरिवार के साथ ही विदेश चला गया। चार्ल्स द्वितीय के स्वदेश लौटने और राज्यारोहण के बाद आर्लिग्टन राजकीय धनसचिव हुआ और क्लेयरेंडन मंत्रिमंडल के पतन के बाद 'केबल' मंत्रिमंडल का सदस्य और वैदेशिक मंत्री हुआ।<br />
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*[[फ़्राँस]] के लुई चतुर्दश के साथ जो चार्ल्स द्वितीय की डोवर की गुप्त संधि हुई थी, उसका रहस्य राजा के अतिरक्ति बस दो व्यक्ति और जानते थे, विलफर्ड और आर्लिग्टन हेनरी बेनेट।
*आर्लिग्टन हेनरी बेनेट चार्ल्स के सभी धन संबंधी कुकृत्यों का सहायक था, जिसके लिए उसे राजा ने 'अर्ल', 'गार्टर के वीर' आदि की उपाधियां दीं। हेनरी बेनेट नितांत स्वार्थपरक व्यक्ति था। उसे दल परिवर्तित करने में देर नहीं लगती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=443 |url=}}</ref> फलत: वह सभी दलों का विश्वास खो बैठा और उसके प्रबल शत्रु बकिंघम ने उस पर पार्लमेंट में मुकदमा चलाया।
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*देशप्रेम उसे छू तक न गया था और लाभ तथा सुख ही उसके उपास्य थे। उसे अपने देश के संविधान तक का ज्ञान न था, पर उसकी सफलता का रहस्य उसका संमोहक व्यक्तित्व और आकर्षक वार्तालाप था।
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Latest revision as of 13:03, 22 February 2021

आर्लिग्टन, हेनरी बेनेट, अर्ल (अंग्रेज़ी: Henry Bennet, 1st Earl of Arlington, जन्म- 1618; मृत्यु- 28 जुलाई, 1685) गृहयुद्धकालीन अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ था। वह राजा की ओर से लड़ा और राजा के शिरश्छेदन के बाद राजपरिवार के साथ ही विदेश चला गया। चार्ल्स द्वितीय के स्वदेश लौटने और राज्यारोहण के बाद आर्लिग्टन राजकीय धनसचिव हुआ और क्लेयरेंडन मंत्रिमंडल के पतन के बाद 'केबल' मंत्रिमंडल का सदस्य और वैदेशिक मंत्री हुआ।

  • फ़्राँस के लुई चतुर्दश के साथ जो चार्ल्स द्वितीय की डोवर की गुप्त संधि हुई थी, उसका रहस्य राजा के अतिरक्ति बस दो व्यक्ति और जानते थे, विलफर्ड और आर्लिग्टन हेनरी बेनेट।
  • आर्लिग्टन हेनरी बेनेट चार्ल्स के सभी धन संबंधी कुकृत्यों का सहायक था, जिसके लिए उसे राजा ने 'अर्ल', 'गार्टर के वीर' आदि की उपाधियां दीं। हेनरी बेनेट नितांत स्वार्थपरक व्यक्ति था। उसे दल परिवर्तित करने में देर नहीं लगती थी।[1] फलत: वह सभी दलों का विश्वास खो बैठा और उसके प्रबल शत्रु बकिंघम ने उस पर पार्लमेंट में मुकदमा चलाया।
  • मुकदमा तो हेनरी बेनेट जीत गया, पर अपने पद से उसने इस्तीफा दे दिया। उसे पद बराबर मिलते गए, पर उसके प्रभाव का अंत हो गया।
  • देशप्रेम उसे छू तक न गया था और लाभ तथा सुख ही उसके उपास्य थे। उसे अपने देश के संविधान तक का ज्ञान न था, पर उसकी सफलता का रहस्य उसका संमोहक व्यक्तित्व और आकर्षक वार्तालाप था।
  • हेनरी बेनेट को यूरोप की अनेक भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 443 |
  2. सं.ग्रं.-लाडरडेल पेपर्स; ओरिजिनल लेटर्स ऑव सर आर. फैन्शा, 1725।

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