हरेकला हजब्बा: Difference between revisions
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हरेकला हजब्बा के पास रहने के लिए ढंग का मकान तक नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी सारी कमाई गांव के बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दी। यूं तो वह खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उनकी तमन्ना थी कि उनका गांव शिक्षित हो। हर घर में शिक्षा का उजियारा फैले। एक रिपोर्ट के | हरेकला हजब्बा के पास रहने के लिए ढंग का मकान तक नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी सारी कमाई गांव के बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दी। यूं तो वह खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उनकी तमन्ना थी कि उनका गांव शिक्षित हो। हर घर में शिक्षा का उजियारा फैले। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हरेकला हजब्बा के गांव में साल [[2000]] तक कोई स्कूल नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल खोलने की ठानी। हर दिन करीब 150 [[रुपया|रुपये]] कमाने वाले हजब्बा ने अपनी जीवन भर की पूंजी इस काम में लगा दी। पहले एक मस्जिद में छोटे से स्कूल की शुरुआत हुई। फिर कारवां बढ़ता गया। | ||
हरेकला हजब्बा के अनुसार- "एक बार एक विदेशी ने मुझसे [[अंग्रेज़ी]] में [[फल]] का दाम पूछा। चूंकि मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती थी, इसलिये फल का दाम नहीं बता पाया। उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया। इसके बाद मैंने तय किया कि अपने गांव में स्कूल खोलूंगा, ताकि यहां के बच्चों को इस स्थिति का सामना न करना पड़े।" हरेकला हजब्बा के पास जो जमा-पूंजी थी, उससे एक मस्जिद के अंदर छोटी सी पाठशाला की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, बड़ी जगह की जरूरत भी महसूस हुई। फिर स्थानीय लोगों की मदद से गांव में ही दक्षिण कन्नड़ा जिला पंचायत हायर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की। | हरेकला हजब्बा के अनुसार- "एक बार एक विदेशी ने मुझसे [[अंग्रेज़ी]] में [[फल]] का दाम पूछा। चूंकि मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती थी, इसलिये फल का दाम नहीं बता पाया। उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया। इसके बाद मैंने तय किया कि अपने गांव में स्कूल खोलूंगा, ताकि यहां के बच्चों को इस स्थिति का सामना न करना पड़े।" हरेकला हजब्बा के पास जो जमा-पूंजी थी, उससे एक मस्जिद के अंदर छोटी सी पाठशाला की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, बड़ी जगह की जरूरत भी महसूस हुई। फिर स्थानीय लोगों की मदद से गांव में ही दक्षिण कन्नड़ा जिला पंचायत हायर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की। | ||
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thumb|200px|हरेकला हजब्बा हरेकला हजब्बा (अंग्रेज़ी: Harekala Hajabba) कर्नाटक के मेंगलोर में रहने वाले ऐसे निर्धन व्यक्ति हैं, जिन्होंने संतरे बेचकर एक-एक पैसा जोड़ा और गाँव के गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा दिया। अब हरेकला हजब्बा उन व्यक्तियों की सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्हें भारत सरकार ने वर्ष 2020 में 'पद्म श्री' सम्मान से पुरस्कृत किया है।
परिचय
कर्नाटक में मेंगलोर के रहने वाले हरेकला हजब्बा कहने के लिए तो अनपढ़ हैं, लेकिन समाज में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। अक्षरा सांता (अक्षरों के संत) के नाम से मशहूर हरेकला हजब्बा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। पिछले 30 साल से संतरे बेचकर अपना गुजारा चलाने वाले हजब्बा ने पाई-पाई जोड़कर अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा दिया है। अब वह एक कॉलेज बनाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।
स्कूल का निर्माण
left|thumb|200px|संतरे बेचते हरेकला हजब्बा हरेकला हजब्बा के पास रहने के लिए ढंग का मकान तक नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी सारी कमाई गांव के बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दी। यूं तो वह खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उनकी तमन्ना थी कि उनका गांव शिक्षित हो। हर घर में शिक्षा का उजियारा फैले। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हरेकला हजब्बा के गांव में साल 2000 तक कोई स्कूल नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल खोलने की ठानी। हर दिन करीब 150 रुपये कमाने वाले हजब्बा ने अपनी जीवन भर की पूंजी इस काम में लगा दी। पहले एक मस्जिद में छोटे से स्कूल की शुरुआत हुई। फिर कारवां बढ़ता गया।
हरेकला हजब्बा के अनुसार- "एक बार एक विदेशी ने मुझसे अंग्रेज़ी में फल का दाम पूछा। चूंकि मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती थी, इसलिये फल का दाम नहीं बता पाया। उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया। इसके बाद मैंने तय किया कि अपने गांव में स्कूल खोलूंगा, ताकि यहां के बच्चों को इस स्थिति का सामना न करना पड़े।" हरेकला हजब्बा के पास जो जमा-पूंजी थी, उससे एक मस्जिद के अंदर छोटी सी पाठशाला की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, बड़ी जगह की जरूरत भी महसूस हुई। फिर स्थानीय लोगों की मदद से गांव में ही दक्षिण कन्नड़ा जिला पंचायत हायर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की।
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