|
|
(One intermediate revision by one other user not shown) |
Line 1: |
Line 1: |
| *सामवेदीय [[ब्राह्मण]] ग्रन्थों में ताण्ड्य ब्राह्मण सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। इसमें पच्चीस अध्याय हैं। इसलिए यह पंचर्विश ब्राह्मण भी कहलाता है।
| | #REDIRECT[[ताण्ड्य ब्राह्मण]] |
| *इसके प्रथम अध्याय में यजुराजत्मक मंत्रसमूह है, दूसरे और तीसरे अध्याय में बहुस्तोम का विषय है। छठे अध्याय में अग्निष्टोम की प्रशंसा है। इस तरह अनेक प्रकार के याग-यज्ञों का वर्णन है।
| |
| *पूर्ण न्याय, प्रकृति-विकृतिलक्षण, मूल प्रकृति विचार, भावना का कारणादि ज्ञान, षोडश ऋत्विक्परिचय, सोमप्रकाशपरिचय, सहस्र संवत्सरसाध्य तथा विश्वसृष्टसाध्य सूत्रों के सम्पादन की विधि इसमें पाई जाती है।
| |
| *इनके सिवा तरह-तरह के उपाख्यान और इतिहास की जानने योग्य बातें लिखी गयीं हैं।
| |
| *इन ग्रन्थ में सोमयाग की विधि और उस सम्बन्ध के सामगान विशेष रूप से हैं, साथ ही कौन सत्र एक दिन रहेगा, कौन सौ दिन रहेगा और साल भर रहेगा, कौन सौ वर्ष रहेगा और कौन एक हज़ार वर्ष रहेगा इस बात की व्यवस्थाएँ भी हैं।
| |
| *[[सायणाचार्य]] इसके भाष्यकार और हरिस्वामी वृत्तिकार हैं।
| |
| | |
| | |
| {{लेख प्रगति
| |
| |आधार=
| |
| |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
| |
| |माध्यमिक=
| |
| |पूर्णता=
| |
| |शोध=
| |
| }}
| |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| |
| <references/>
| |
| [[Category:नया पन्ना]]
| |
| __INDEX__
| |