Difference between revisions of "सिंहासन बत्तीसी दस"

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एक दिन विक्रमादित्य अपने बगीचे में बैठा हुआ था। वसन्त ऋतु थी। टेसू फूले हुए थे। कोयल कूक रही थीं। इतने में एक आदमी राजा के पास आया। उसका शरीर सूखकर कांटा हो रहा था। खाना पीना उसने छोड़ दिया था, आंखों से कम दिखता था। व्याकुल होकर वह बार-बार रोता था। राजा ने उसे धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा।  
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[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
 
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==सिंहासन बत्तीसी दस==
''उसने कहा:'' मैं कालिंजर का रहने वाला हूँ। एक यती ने बताया कि अमुक जगह एक बड़ी सुन्दर स्त्री तीनों लोकों में नहीं है। लाखों राजा-महाराज और दूसरे लोग आते हैं। उसके बाप ने एक कढ़ाव में तेल खौलवा रक्खा है। कहता है कि कढ़ाव में स्नान करके जो निकल आयगा, उसी के साथ वह अपनी पुत्री का विवाह करेगा। वहाँ कई राजा जल चुकें है। जबसे उस स्त्री को देखा है, तबसे मेरी यह हालत हो गई है।"
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<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
 
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एक दिन विक्रमादित्य अपने बगीचे में बैठा हुआ था। [[बसंत ऋतु|बसंत]] ऋतु थी। टेसू फूले हुए थे। [[कोयल]] कूक रही थीं। इतने में एक आदमी राजा के पास आया। उसका शरीर सूखकर कांटा हो रहा था। खाना पीना उसने छोड़ दिया था, आंखों से कम दिखता था। व्याकुल होकर वह बार-बार रोता था। राजा ने उसे धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा।  
''राजा ने :'' घबराओ मत। कल हम दोनों साथ-साथ वहाँ चलेंगे।
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उसने कहा: मैं कालिंजर का रहने वाला हूँ। एक यती ने बताया कि अमुक जगह एक बड़ी सुन्दर स्त्री तीनों लोकों में नहीं है। लाखों राजा-महाराज और दूसरे लोग आते हैं। उसके बाप ने एक कढ़ाव में तेल खौलवा रखा है। कहता है कि कढ़ाव में स्नान करके जो निकल आयगा, उसी के साथ वह अपनी पुत्री का [[विवाह]] करेगा। वहाँ कई राजा जल चुके हैं। जबसे उस स्त्री को देखा है, तबसे मेरी यह हालत हो गई है।"
 
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राजा ने कहा: घबराओ मत। कल हम दोनों साथ-साथ वहाँ चलेंगे।
 
अगले दिन राजा ने स्नान पूजा आदि से छूट्टी पाकर दोनों वीरों को बुलाया।
 
अगले दिन राजा ने स्नान पूजा आदि से छूट्टी पाकर दोनों वीरों को बुलाया।
 
 
राजा के कहने पर वे उन्हें वहीं ले चले, जहाँ वह सुन्दर स्त्री रहती थी। वहाँ पहुंचकर वे देखते क्या हैं कि बाजे बज रहे है। और राजकन्या माला हाथ में लिये घूम रही है। जो कढ़ाव में कूदता है, वही भून जाता है।
 
राजा के कहने पर वे उन्हें वहीं ले चले, जहाँ वह सुन्दर स्त्री रहती थी। वहाँ पहुंचकर वे देखते क्या हैं कि बाजे बज रहे है। और राजकन्या माला हाथ में लिये घूम रही है। जो कढ़ाव में कूदता है, वही भून जाता है।
 
 
राजा उस कन्या के रूप को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और कढ़ाव के पास जाकर झट उसमें कूद पड़ा। कूदते ही भुनकर राख हो गया।
 
राजा उस कन्या के रूप को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और कढ़ाव के पास जाकर झट उसमें कूद पड़ा। कूदते ही भुनकर राख हो गया।
 
 
राजा के दोनों वीरों ने यह देखा तो अमृत ले आये और जैसे ही राजा पर छिड़का, वह जी उठा।
 
राजा के दोनों वीरों ने यह देखा तो अमृत ले आये और जैसे ही राजा पर छिड़का, वह जी उठा।
 
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फिर क्या था! सबको बड़ा आनन्द हुआ। राजकन्या का विवाह राजा के साथ हो गया। करोड़ों की सम्पत्ति मिली।
फिर क्या था! सबको बड़ा आनन्द हुआ। राजकन्या का विवाह राजा के साथ हो गया। करोड़ो की सम्पत्ति मिली।
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राजकन्या ने हाथ जोड़कर राजा से कहा: हे राजन्! तुमने मुझे दु:ख से छुड़ाया। मेरे बाप ने ऐसा पाप किया था कि वह नरक में जाता और मैं उम्र भर क्वारी रहती।
 
 
''राजकन्या ने हाथ जोड़कर राजा से कहा:'' हे राजन्! तुमने मुझे दु:ख से छुड़ाया। मेरे बाप ने ऐसा पाप किया था कि वह नरक में जाता और मैं उम्र भर क्वांरी रहती।
 
 
 
 
राजा के साथ जो आदमी गया था, वह अब भी साथ था। राजा ने उस स्त्री को बहुत-से माल-असबाब सहित उसे दे दिया।
 
राजा के साथ जो आदमी गया था, वह अब भी साथ था। राजा ने उस स्त्री को बहुत-से माल-असबाब सहित उसे दे दिया।
 
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इतना कहकर पुतली बोली: देखा तुमने! राजा विक्रमादित्य ने कितना पराक्रम करके पाई हुई राजकन्या को दूसरे आदमी को देते तनिक भी हिचक न की। तुम ऐसा कर सकोगे तभी सिंहासन पर बैठने के योग्य होगे।
''इतना कहकर पुतली बोली:'' देखा तुमने! राजा विक्रमादित्य ने कितना पराक्रम करके पाई हुई राजकन्या को दूसरे आदमी को देते तनिक भी हिचक न की। तुम ऐसा कर सकोगे तभी सिंहासन पर बैठने के योग्य होगे।
 
 
 
 
राजा बड़े असमंजस में पड़ा। सिहांसन पर बैठने की उसकी इच्छा इतनी बढ़ गई थी कि अगले दिन वह फिर वहाँ पहुँच गया, लेकिन पैर रखने को जैसे ही बढ़ा कि ग्यारहवीं पुतली पद्मावती ने उसे रोक दिया।  
 
राजा बड़े असमंजस में पड़ा। सिहांसन पर बैठने की उसकी इच्छा इतनी बढ़ गई थी कि अगले दिन वह फिर वहाँ पहुँच गया, लेकिन पैर रखने को जैसे ही बढ़ा कि ग्यारहवीं पुतली पद्मावती ने उसे रोक दिया।  
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पुतली बोली: ठहरो मेरी बात सुनो।
  
''पुतली बोली:'' ठहरो मेरी बात सुनो।
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राजा रूक गया। पुतली ने अपनी बात सुनायी।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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{{सिंहासन बत्तीसी}}
 
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
 
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:कहानी]]   
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[[Category:लोककथाएँ]]   
 
[[Category:कथा साहित्य]]   
 
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[[Category:कथा साहित्य कोश]]
 
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Latest revision as of 10:18, 25 February 2013

sianhasan battisi ek lokakatha sangrah hai. maharaja vikramadity bharatiy lokakathaoan ke ek bahut hi charchit patr rahe haian. prachinakal se hi unake gunoan par prakash dalane vali kathaoan ki bahut hi samriddh parampara rahi hai. sianhasan battisi bhi 32 kathaoan ka sangrah hai jisamean 32 putaliyaan vikramadity ke vibhinn gunoan ka katha ke roop mean varnan karati haian.

sianhasan battisi das

ek din vikramadity apane bagiche mean baitha hua tha. basant rritu thi. tesoo phoole hue the. koyal kook rahi thian. itane mean ek adami raja ke pas aya. usaka sharir sookhakar kaanta ho raha tha. khana pina usane chho d diya tha, aankhoan se kam dikhata tha. vyakul hokar vah bar-bar rota tha. raja ne use dhiraj bandhaya aur rone ka karan poochha.
usane kaha: maian kalianjar ka rahane vala hooan. ek yati ne bataya ki amuk jagah ek b di sundar stri tinoan lokoan mean nahian hai. lakhoan raja-maharaj aur doosare log ate haian. usake bap ne ek kadhav mean tel khaulava rakha hai. kahata hai ki kadhav mean snan karake jo nikal ayaga, usi ke sath vah apani putri ka vivah karega. vahaan kee raja jal chuke haian. jabase us stri ko dekha hai, tabase meri yah halat ho gee hai."
raja ne kaha: ghabarao mat. kal ham donoan sath-sath vahaan chaleange.
agale din raja ne snan pooja adi se chhootti pakar donoan viroan ko bulaya.
raja ke kahane par ve unhean vahian le chale, jahaan vah sundar stri rahati thi. vahaan pahuanchakar ve dekhate kya haian ki baje baj rahe hai. aur rajakanya mala hath mean liye ghoom rahi hai. jo kadhav mean koodata hai, vahi bhoon jata hai.
raja us kanya ke roop ko dekhakar bahut prasann hua aur kadhav ke pas jakar jhat usamean kood p da. koodate hi bhunakar rakh ho gaya.
raja ke donoan viroan ne yah dekha to amrit le aye aur jaise hi raja par chhi daka, vah ji utha.
phir kya tha! sabako b da anand hua. rajakanya ka vivah raja ke sath ho gaya. karo doan ki sampatti mili.
rajakanya ne hath jo dakar raja se kaha: he rajanh! tumane mujhe du:kh se chhu daya. mere bap ne aisa pap kiya tha ki vah narak mean jata aur maian umr bhar kvari rahati.
raja ke sath jo adami gaya tha, vah ab bhi sath tha. raja ne us stri ko bahut-se mal-asabab sahit use de diya.
itana kahakar putali boli: dekha tumane! raja vikramadity ne kitana parakram karake paee huee rajakanya ko doosare adami ko dete tanik bhi hichak n ki. tum aisa kar sakoge tabhi sianhasan par baithane ke yogy hoge.
raja b de asamanjas mean p da. sihaansan par baithane ki usaki ichchha itani badh gee thi ki agale din vah phir vahaan pahuanch gaya, lekin pair rakhane ko jaise hi badha ki gyarahavian putali padmavati ne use rok diya.
putali boli: thaharo meri bat suno.

age padhane ke lie sianhasan battisi gyarah par jaean


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh