बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-3 ब्राह्मण-6: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ") |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 4: | Line 4: | ||
गार्गी—'जब सभी कुछ जल में ओत-प्रोत है, तब जल किसमें ओत-प्रोत है?' इसी क्रम में उसने एक में से एक प्रश्न निकालकर पूछे। | गार्गी—'जब सभी कुछ जल में ओत-प्रोत है, तब जल किसमें ओत-प्रोत है?' इसी क्रम में उसने एक में से एक प्रश्न निकालकर पूछे। | ||
याज्ञवल्क्य—'जल वायु में, वायु अन्तरिक्षलोक में, अन्तरिक्ष गन्धर्वलोक में, गन्धर्वलोक आदित्यलोकों में, आदित्यलोक चन्द्रलोकों में, चन्द्रलोक नक्षत्र लोकों में, नक्षत्रलोक देवलोकों में, देवलोक इन्द्रलोक में, इन्द्रलोक प्रजापतिलोक में तथा प्रजापतिलोक [[ब्रह्मलोक]] में ओत-प्रोत है।'<br /> | याज्ञवल्क्य—'जल वायु में, वायु अन्तरिक्षलोक में, अन्तरिक्ष गन्धर्वलोक में, गन्धर्वलोक आदित्यलोकों में, आदित्यलोक चन्द्रलोकों में, चन्द्रलोक नक्षत्र लोकों में, नक्षत्रलोक देवलोकों में, देवलोक इन्द्रलोक में, इन्द्रलोक प्रजापतिलोक में तथा प्रजापतिलोक [[ब्रह्मलोक]] में ओत-प्रोत है।'<br /> | ||
किन्तु जब गार्गी ने पूछा कि ब्रह्मलोक किस में ओत-प्रोत है, तो याज्ञवल्क्य ने उसे रोक दिया और कहा-'गार्गी! जिसे वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता, उसके विषय में अहंकारपूर्ण तर्क करना उचित नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि अनर्गल प्रश्नों के कारण तुम्हें अपना मस्तक गिराना पड़े, | किन्तु जब गार्गी ने पूछा कि ब्रह्मलोक किस में ओत-प्रोत है, तो याज्ञवल्क्य ने उसे रोक दिया और कहा-'गार्गी! जिसे वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता, उसके विषय में अहंकारपूर्ण तर्क करना उचित नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि अनर्गल प्रश्नों के कारण तुम्हें अपना मस्तक गिराना पड़े, अर्थात् अपमानित होना पड़े। याज्ञवल्क्य के द्वारा लताड़ने पर गार्गी चुप हो गयी। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
[[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]] | {{बृहदारण्यकोपनिषद}} | ||
[[Category:दर्शन | [[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]][[Category:हिन्दू दर्शन]] | ||
[[Category:उपनिषद]] | [[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] [[Category:दर्शन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Latest revision as of 07:48, 7 November 2017
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय तीसरा का यह छठा ब्राह्मण है।
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
- इस ब्राह्मण में वचक्रुसुता गार्गी और ऋषि याज्ञवल्क्य के मध्य प्रश्नोत्तर है।
गार्गी—'जब सभी कुछ जल में ओत-प्रोत है, तब जल किसमें ओत-प्रोत है?' इसी क्रम में उसने एक में से एक प्रश्न निकालकर पूछे।
याज्ञवल्क्य—'जल वायु में, वायु अन्तरिक्षलोक में, अन्तरिक्ष गन्धर्वलोक में, गन्धर्वलोक आदित्यलोकों में, आदित्यलोक चन्द्रलोकों में, चन्द्रलोक नक्षत्र लोकों में, नक्षत्रलोक देवलोकों में, देवलोक इन्द्रलोक में, इन्द्रलोक प्रजापतिलोक में तथा प्रजापतिलोक ब्रह्मलोक में ओत-प्रोत है।'
किन्तु जब गार्गी ने पूछा कि ब्रह्मलोक किस में ओत-प्रोत है, तो याज्ञवल्क्य ने उसे रोक दिया और कहा-'गार्गी! जिसे वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता, उसके विषय में अहंकारपूर्ण तर्क करना उचित नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि अनर्गल प्रश्नों के कारण तुम्हें अपना मस्तक गिराना पड़े, अर्थात् अपमानित होना पड़े। याज्ञवल्क्य के द्वारा लताड़ने पर गार्गी चुप हो गयी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख