सिंहासन बत्तीसी इक्कीस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "फौज" to "फ़ौज")
No edit summary
 
(4 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा गुणी था। एक बार वह घूमते-घूमते कामानगरी में पहुंचा। वहां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी। जिस दिन ब्राह्मण वहां पहुंचा, कामकंदला का नाच हो रहा था। मृदंग की आवाज आ रही थी। आवाज सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि राज की सभा के लोग बड़े मूर्ख हैं, जो गुण पर विचार नहीं करते। पूछने पर उसने बताया कि जो मृदंग बजा रहा है, उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। राजा ने सुना तो मृदंग बजाने वाले को बुलाया और देखा कि उसका एक अंगूठा मोम का है। राजा ने ब्राह्मण को बहुत-सा धन दिया और अपनी सथा में बुला लिया। नाच चल रहा था। इतने में ब्राह्मण ने देखा कि एक भौंरा आया और कामकंदला को काट कर उड़ गया, लेकिन उस नर्तकी ने किसी को मालूम भी न होने दिया। ब्राह्मण ने खुश होकर अपना सबकुछ उसे दे डाला। राजा बड़ा गुस्सा हुआ कि उसकी दी हुई चीज उसने क्यों दे दी और ब्राह्मण को देश निकाला दे दिया। कामकंदला चुपचाप उसके पीछे गई और उसे छिपाकर अपने घर में ले आयी। लेकिन दोनों डरकर वहां रहते थे।  
[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
 
==सिंहासन बत्तीसी इक्कीस==
''एक दिन ब्राह्मण ने कहा'': अगर राजा को मालूम हो गया तो हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायंगे। इसलिए मैं कहीं और ठिकाना करके तुम्हें ले जाऊंगा।
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
 
किसी नगर में एक [[ब्राह्मण]] रहता था। वह बड़ा गुणी था। एक बार वह घूमते-घूमते कामानगरी में पहुंचा। वहां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी। जिस दिन ब्राह्मण वहां पहुंचा, कामकंदला का नाच हो रहा था। [[मृदंग]] की आवाज़ आ रही थी। आवाज़ सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि राज की सभा के लोग बड़े मूर्ख हैं, जो गुण पर विचार नहीं करते। पूछने पर उसने बताया कि जो मृदंग बजा रहा है, उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। राजा ने सुना तो मृदंग बजाने वाले को बुलाया और देखा कि उसका एक अंगूठा मोम का है। राजा ने ब्राह्मण को बहुत-सा धन दिया और अपनी सभा में बुला लिया। नाच चल रहा था। इतने में ब्राह्मण ने देखा कि एक भौंरा आया और कामकंदला को काट कर उड़ गया, लेकिन उस नर्तकी ने किसी को मालूम भी न होने दिया। ब्राह्मण ने खुश होकर अपना सबकुछ उसे दे डाला। राजा बड़ा गुस्सा हुआ कि उसकी दी हुई चीज़ उसने क्यों दे दी और ब्राह्मण को देश निकाला दे दिया। कामकंदला चुपचाप उसके पीछे गई और उसे छिपाकर अपने घर में ले आयी। लेकिन दोनों डरकर वहां रहते थे।  
इतना कहकर वह उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के यहां गया और उससे सब हाल कहा। राजा ब्राह्मण को लेकर अपनी फ़ौज सहित कामानगरी की तरफ बढ़ा। दस कोस इधर ही डेरा डाला। इसके बाद विक्रमादित्य ने किया क्या कि वैद्य का भेस बनाकर कामकंदला के पास पहुंचा। ब्राह्मण की याद में वह बड़ी बेचैन हो रही थी।  
एक दिन ब्राह्मण ने कहा: अगर राजा को मालूम हो गया तो हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायंगे। इसलिए मैं कहीं और ठिकाना करके तुम्हें ले जाऊंगा।
 
इतना कहकर वह [[उज्जैन]] में राजा विक्रमादित्य के यहां गया और उससे सब हाल कहा। राजा ब्राह्मण को लेकर अपनी फ़ौज सहित कामानगरी की तरफ बढ़ा। दस कोस इधर ही डेरा डाला। इसके बाद विक्रमादित्य ने किया क्या कि वैद्य का भेस बनाकर कामकंदला के पास पहुंचा। ब्राह्मण की याद में वह बड़ी बेचैन हो रही थी।  
''राजा ने कहा'': ऐसे ही हमारे यहां माधव नाम का एक ब्राह्मण था, जो विरह का दु:ख पाकर मर गया। इतना सुनकर कामकंदला ने एक आह भरी और उसके प्राण निकल गये।
राजा ने कहा: ऐसे ही हमारे यहां माधव नाम का एक ब्राह्मण था, जो विरह का दु:ख पाकर मर गया। इतना सुनकर कामकंदला ने एक आह भरी और उसके प्राण निकल गये।
 
राजा ने लौटकर यह खबर ब्राह्मण को सुनायी तो उसकी भी जान निकल गई। राजा को बडा दु:ख हुआ और वह चंदन की चिता बनाकर खुद जलने को तैयार हो गया। इसी बीच राजा के दोनों वीर आ गये और उन्होंने कहा, "हे राजा! तुम दु:खी मत हो, हम अभी अमृत लाकर ब्राह्मण और कामकंदला को ज़िन्दा कर देंगे।"
राजा ने लौटकर यह खबर ब्राह्मण को सुनायी तो उसकी भी जान निकल गई। राजा को बडा दु:ख हुआ और वह चंदन की चिता बनाकर खुद जलने को तैयार हो गया। इसी बीच राजा के दोनों वीर आ गये और उन्होंने कहा, "हे राजा! तुम दु:खी मत हो, हम अभी अमृत लाकर ब्राह्मण और कामकंदला को जिन्दा कर देंगे।"
 
इसके बाद विक्रमादित्य ने कामानगरी के राजा से युद्ध किया और उसे हरा किया। कामकंदला उसे मिल गई और उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह ब्राह्मण से कर दिया।
इसके बाद विक्रमादित्य ने कामानगरी के राजा से युद्ध किया और उसे हरा किया। कामकंदला उसे मिल गई और उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह ब्राह्मण से कर दिया।
 
पुतली बोली: हे राजन्! तुममें इतना साहस हो तो सिंहासन पर बैठो।
''पुतली बोली'': हे राजन्! तुममें इतना साहस हो तो सिंहासन पर बैठो।
 
राजा चुप रह गया।
राजा चुप रह गया।
अगले दिन उसे बाईसवीं पुतली अनूपरेखा ने रोककर यह कहानी सुनायी


अगले दिन उसे बाईसवीं पुतली अनूपरेखा ने रोककर यह कहानी सुनायी:
;आगे पढ़ने के लिए [[सिंहासन बत्तीसी बाईस]] पर जाएँ
</poem>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{सिंहासन बत्तीसी}}
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:कहानी]]   
[[Category:लोककथाएँ]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 09:14, 26 February 2013

सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी इक्कीस

किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा गुणी था। एक बार वह घूमते-घूमते कामानगरी में पहुंचा। वहां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी। जिस दिन ब्राह्मण वहां पहुंचा, कामकंदला का नाच हो रहा था। मृदंग की आवाज़ आ रही थी। आवाज़ सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि राज की सभा के लोग बड़े मूर्ख हैं, जो गुण पर विचार नहीं करते। पूछने पर उसने बताया कि जो मृदंग बजा रहा है, उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। राजा ने सुना तो मृदंग बजाने वाले को बुलाया और देखा कि उसका एक अंगूठा मोम का है। राजा ने ब्राह्मण को बहुत-सा धन दिया और अपनी सभा में बुला लिया। नाच चल रहा था। इतने में ब्राह्मण ने देखा कि एक भौंरा आया और कामकंदला को काट कर उड़ गया, लेकिन उस नर्तकी ने किसी को मालूम भी न होने दिया। ब्राह्मण ने खुश होकर अपना सबकुछ उसे दे डाला। राजा बड़ा गुस्सा हुआ कि उसकी दी हुई चीज़ उसने क्यों दे दी और ब्राह्मण को देश निकाला दे दिया। कामकंदला चुपचाप उसके पीछे गई और उसे छिपाकर अपने घर में ले आयी। लेकिन दोनों डरकर वहां रहते थे।
एक दिन ब्राह्मण ने कहा: अगर राजा को मालूम हो गया तो हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायंगे। इसलिए मैं कहीं और ठिकाना करके तुम्हें ले जाऊंगा।
इतना कहकर वह उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के यहां गया और उससे सब हाल कहा। राजा ब्राह्मण को लेकर अपनी फ़ौज सहित कामानगरी की तरफ बढ़ा। दस कोस इधर ही डेरा डाला। इसके बाद विक्रमादित्य ने किया क्या कि वैद्य का भेस बनाकर कामकंदला के पास पहुंचा। ब्राह्मण की याद में वह बड़ी बेचैन हो रही थी।
राजा ने कहा: ऐसे ही हमारे यहां माधव नाम का एक ब्राह्मण था, जो विरह का दु:ख पाकर मर गया। इतना सुनकर कामकंदला ने एक आह भरी और उसके प्राण निकल गये।
राजा ने लौटकर यह खबर ब्राह्मण को सुनायी तो उसकी भी जान निकल गई। राजा को बडा दु:ख हुआ और वह चंदन की चिता बनाकर खुद जलने को तैयार हो गया। इसी बीच राजा के दोनों वीर आ गये और उन्होंने कहा, "हे राजा! तुम दु:खी मत हो, हम अभी अमृत लाकर ब्राह्मण और कामकंदला को ज़िन्दा कर देंगे।"
इसके बाद विक्रमादित्य ने कामानगरी के राजा से युद्ध किया और उसे हरा किया। कामकंदला उसे मिल गई और उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह ब्राह्मण से कर दिया।
पुतली बोली: हे राजन्! तुममें इतना साहस हो तो सिंहासन पर बैठो।
राजा चुप रह गया।
अगले दिन उसे बाईसवीं पुतली अनूपरेखा ने रोककर यह कहानी सुनायी

आगे पढ़ने के लिए सिंहासन बत्तीसी बाईस पर जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख