एकता का बल: Difference between revisions
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'''एकता का बल''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] | '''एकता का बल''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] हैं। | ||
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एक समय की बात हैं कि [[कबूतर|कबूतरों]] का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उड़ता हुआ जा रहा था। ग़लती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर [[अकाल]] पड़ा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना | एक समय की बात हैं कि [[कबूतर|कबूतरों]] का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उड़ता हुआ जा रहा था। ग़लती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर [[अकाल]] पड़ा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना ज़रूरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड़ रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सूचित करना था। बहुत समय उड़ने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उड़ान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’ | ||
सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकड़ने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड़ पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए। | सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकड़ने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड़ पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए। | ||
कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा 'ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत?' | कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा 'ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत?' | ||
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युवा कबूतर फड़फडाया 'चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड़ रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?' | युवा कबूतर फड़फडाया 'चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड़ रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?' | ||
सरदार बोला 'तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ ज़ोर लगाकर उड़ना।' | सरदार बोला 'तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ ज़ोर लगाकर उड़ना।' | ||
सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतरों को फंसा देख उसकी | सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतरों को फंसा देख उसकी आँखेंं चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मज़बूती से पकडा व जाल की ओर दौडा। | ||
बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला 'फुर्रर्रर्र!' | बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला 'फुर्रर्रर्र!' | ||
सारे कबूतर एक साथ ज़ोर लगाकर उड़े तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौड़ने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौड़ते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उड़ते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाड़ी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को | सारे कबूतर एक साथ ज़ोर लगाकर उड़े तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौड़ने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौड़ते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उड़ते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाड़ी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेज़ीसे उस पहाड़ी की ओर उड़ने का आदेश दिया। पहाड़ी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे। | ||
सरदार ने मित्र चूहे को आवाज़ दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आज़ाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आज़ादी की उडान भरने लगा। | सरदार ने मित्र चूहे को आवाज़ दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आज़ाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आज़ादी की उडान भरने लगा। | ||
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एकता का बल पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।
कहानी
एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उड़ता हुआ जा रहा था। ग़लती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पड़ा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना ज़रूरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड़ रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सूचित करना था। बहुत समय उड़ने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उड़ान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’
सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकड़ने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड़ पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।
कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा 'ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत?'
एक कबूतर रोने लगा 'हम सब मारे जाएंगे।'
बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा 'सुनो, जाल मज़बूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोड़े तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।'
युवा कबूतर फड़फडाया 'चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड़ रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?'
सरदार बोला 'तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ ज़ोर लगाकर उड़ना।'
सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतरों को फंसा देख उसकी आँखेंं चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मज़बूती से पकडा व जाल की ओर दौडा।
बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला 'फुर्रर्रर्र!'
सारे कबूतर एक साथ ज़ोर लगाकर उड़े तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौड़ने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौड़ते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उड़ते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाड़ी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेज़ीसे उस पहाड़ी की ओर उड़ने का आदेश दिया। पहाड़ी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे।
सरदार ने मित्र चूहे को आवाज़ दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आज़ाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आज़ादी की उडान भरने लगा।
- सीख- एकजुट होकर बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना किया जा सकता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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