खालिकबारी: Difference between revisions
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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Latest revision as of 14:34, 31 August 2014
खालिकबारी
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विवरण | 'खालिकबारी' अरबी-फ़ारसी और हिन्दी का पद्यमय पर्यायवाची शब्दकोश है। |
रचनाकाल | तेरहवीं शताब्दी |
रचनाकार | अमीर ख़ुसरो |
अन्य जानकारी | 'खालिकबारी' परंपरा में इस प्रकार के कई ग्रंथ लिखे गए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध रचना अमीर ख़ुसरो की कही जाती है, यद्यपि इस संबंध में पर्याप्त विवाद हैं। |
खालिकबारी अमीर ख़ुसरो द्वारा रचित अरबी-फ़ारसी और हिन्दी का पद्यमय पर्यायवाची शब्दकोश है। भारत के अतिरिक्त ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश इत्यादि देशों में अमीर ख़ुसरो की रचनाओं को बड़े उत्साह से पढ़ा जाता है। उन्हें 'तूतिया-ए-हिन्द' कहा जाता है।
उद्देश्य
इस शब्दकोश की रचना अमीर ख़ुसरो ने उस काल की ऐतिहासिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए की थी। तत्कालीन समय में राजभाषा फ़ारसी थी। आम जनता को इस भाषा का ज्ञान होना आवश्यक था एवं भारत में आने वाले शरणार्थियों को यहाँ की आम बोलचाल की भाषा का भी ज्ञान होना आवश्यक था। इन दोनों की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए अमीर ख़ुसरो ने अरबी-फ़ारसी तथा हिन्दी के छन्दबद्ध पर्यायवाची शब्दकोश की रचना की, जो मदरसों में बच्चों को पढ़ाई जाने लगी। इस प्रकार 1061 हिजरी में भी 'खालिकबारी' अमीर ख़ुसरो के नाम से ही प्रचलित थी। इसलिए तजल्ली अमीर ख़ुसरो तथा उनके गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की आत्मा से सहायता माँगते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।[1]
खालिकबारी परंपरा
'खालिकबारी' परंपरा में इस प्रकार के कई ग्रंथ लिखे गए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध रचना अमीर ख़ुसरो की कही जाती है, यद्यपि इस संबंध में पर्याप्त विवाद हैं। अनेक विद्वानों के अनुसार 'खालिकबारी' किसी 'खुसरोशाह' की रचना है, जो प्रसिद्ध कवि अमीर ख़ुसरो के बहुत बाद में हुए थे। शिवाजी ने भी राजनीति की फ़ारसी-संस्कृत शब्दावली बनाई थी, जिसमें लगभग 1500 शब्द थे। उसके बाद खालिकबारी परंपरा में हिन्दी-फ़ारसी के कई कोश लिखे गए। किंतु वैज्ञानिक ढंग से यह कार्य अंग्रेज़ों के संपर्क के बाद प्रारंभ हुआ।
अमीर ख़ुसरो की अन्य रचनाएँ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख