स्वयं के स्वामी -स्वामी विवेकानंद: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |चित्र=Swami Vivekananda.gif| |चित्र ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "सन्न्यासी" to "संन्यासी") |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
|चित्र=Swami Vivekananda.gif| | |चित्र=Swami Vivekananda.gif| | ||
|चित्र का नाम=स्वामी | |चित्र का नाम=स्वामी विवेकानन्द | ||
|विवरण= [[स्वामी | |विवरण= [[स्वामी विवेकानन्द]] | ||
|शीर्षक 1=भाषा | |शीर्षक 1=भाषा | ||
|पाठ 1=[[हिंदी]] | |पाठ 1=[[हिंदी]] | ||
Line 29: | Line 29: | ||
}} | }} | ||
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
स्वामी | [[स्वामी विवेकानन्द]] के पूना प्रवास के दौरान एक विलक्षण घटना घटी, जिससे उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। गाड़ी में स्वामीजी को द्वितीय श्रेणी से भ्रमण करते देख कर कुछ शिक्षित लोग [[अंग्रेज़ी]] भाषा में सन्न्यासियों की निंदा करने लगे। उन्होंने सोचा स्वामीजी को अंग्रेज़ी नहीं आती है। उनका सोचना था कि [[भारत]] के अधःपतन के लिए एकमात्र संन्यासी-संप्रदाय ही उत्तरदायी है। चर्चा जब पराकाष्ठा पर पहुंच गई तब स्वामीजी चुप नहीं रह सके। | ||
वे बोले- युग-युग से सन्न्यासियों ने ही तो संसार की आध्यात्मिक भाव धारा को सतेज और अक्षुण्ण बना रखा है। [[बुद्ध]] क्या थे, [[शंकराचार्य]] क्या थे? उनकी आध्यात्मिक देन को क्या भारत अस्वीकार कर सकता है, स्वामीजी के मुख से धर्म का क्रम विकास, देश विदेश के धर्मों की प्रगति का इतिहास तथा अनेक गंभीर दार्शनिक बातें सुनकर सहयात्रियों को विवश होकर हथियार डाल देना पड़ा। | |||
यह वही समय था जब स्वामीजी को [[शिकागो]] की विश्व धर्म परिषद सम्मेलन का पता चला था और यह सर्वविदित है कि उस धर्म सभा में स्वामीजी ने किसी भी धर्म की निंदा या समालोचना नहीं की अपितु उन्होंने कहा- '[[ईसाई]] को [[हिन्दू]] या [[बौद्ध]] नहीं बनना होगा, और न हिन्दू अथवा बौद्ध को ईसाई ही। पर हां प्रत्येक धर्म को अपनी स्वतंत्रता और वैशिष्टय को बनाए रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते हुए क्रमशः उन्नत होना होगा। उन्नति या विकास का यही एकमात्र नियम है।' | |||
स्वामी की शिकागो वक्तृता भारत वर्ष की मुक्ति का संक्षिप्त लेखा है। [[सिस्टर निवेदिता|भगिनी निवेदिता]] लिखती हैं- शिकागो की धर्म महासभा में जब स्वामीजी ने अपना भाषण आरंभ किया तो उनका विषय था- हिन्दुओं के प्राचीन विचार, पर जब उनका भाषण समाप्त हुआ तो आधुनिक [[हिन्दू धर्म]] की सृष्टि हो चुकी थी। | |||
;[[स्वामी विवेकानन्द]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ | |||
;[[स्वामी | |||
</poem> | </poem> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{| | |||
| | |||
| | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category: | {{प्रेरक प्रसंग}} | ||
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:प्रेरक प्रसंग]][[Category:स्वामी विवेकानन्द]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
Latest revision as of 11:46, 3 August 2017
स्वयं के स्वामी -स्वामी विवेकानंद
| |
विवरण | स्वामी विवेकानन्द |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
स्वामी विवेकानन्द के पूना प्रवास के दौरान एक विलक्षण घटना घटी, जिससे उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। गाड़ी में स्वामीजी को द्वितीय श्रेणी से भ्रमण करते देख कर कुछ शिक्षित लोग अंग्रेज़ी भाषा में सन्न्यासियों की निंदा करने लगे। उन्होंने सोचा स्वामीजी को अंग्रेज़ी नहीं आती है। उनका सोचना था कि भारत के अधःपतन के लिए एकमात्र संन्यासी-संप्रदाय ही उत्तरदायी है। चर्चा जब पराकाष्ठा पर पहुंच गई तब स्वामीजी चुप नहीं रह सके।
वे बोले- युग-युग से सन्न्यासियों ने ही तो संसार की आध्यात्मिक भाव धारा को सतेज और अक्षुण्ण बना रखा है। बुद्ध क्या थे, शंकराचार्य क्या थे? उनकी आध्यात्मिक देन को क्या भारत अस्वीकार कर सकता है, स्वामीजी के मुख से धर्म का क्रम विकास, देश विदेश के धर्मों की प्रगति का इतिहास तथा अनेक गंभीर दार्शनिक बातें सुनकर सहयात्रियों को विवश होकर हथियार डाल देना पड़ा।
यह वही समय था जब स्वामीजी को शिकागो की विश्व धर्म परिषद सम्मेलन का पता चला था और यह सर्वविदित है कि उस धर्म सभा में स्वामीजी ने किसी भी धर्म की निंदा या समालोचना नहीं की अपितु उन्होंने कहा- 'ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं बनना होगा, और न हिन्दू अथवा बौद्ध को ईसाई ही। पर हां प्रत्येक धर्म को अपनी स्वतंत्रता और वैशिष्टय को बनाए रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते हुए क्रमशः उन्नत होना होगा। उन्नति या विकास का यही एकमात्र नियम है।'
स्वामी की शिकागो वक्तृता भारत वर्ष की मुक्ति का संक्षिप्त लेखा है। भगिनी निवेदिता लिखती हैं- शिकागो की धर्म महासभा में जब स्वामीजी ने अपना भाषण आरंभ किया तो उनका विषय था- हिन्दुओं के प्राचीन विचार, पर जब उनका भाषण समाप्त हुआ तो आधुनिक हिन्दू धर्म की सृष्टि हो चुकी थी।
- स्वामी विवेकानन्द से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ
|
|
|
|
|