जेहि रहीम मन आपनो -रहीम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('<div class="bgrahimdv"> जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।<br /> न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
<div class="bgrahimdv">
<div class="bgrahimdv">
जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।<br />
जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।<br />
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥1॥
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥


;अर्थ
;अर्थ
जिस किसी ने अपने मन को सुन्दर चकोर बना लिया, वह नित्य निरन्तर, रात और दिन, श्रीकृष्णरूपी चन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है।<ref>सन्दर्भ-चन्द्र का उदय रात को होता है, पर यहाँ वासर अर्थात दिन भी आया है, अत: वासर का आशय है नित्य निरन्तर से।</ref>
जिस किसी ने अपने मन को सुन्दर चकोर बना लिया, वह नित्य निरन्तर, रात और दिन, श्रीकृष्णरूपी चन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है।<ref>सन्दर्भ-चन्द्र का उदय रात को होता है, पर यहाँ वासर अर्थात् दिन भी आया है, अत: वासर का आशय है नित्य निरन्तर से।</ref>


{{लेख क्रम3| पिछला=रहीम के दोहे |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन कोऊ का करै -रहीम }}
{{लेख क्रम3| पिछला=रहीम के दोहे |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन कोऊ का करै -रहीम }}

Latest revision as of 07:47, 7 November 2017

जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥

अर्थ

जिस किसी ने अपने मन को सुन्दर चकोर बना लिया, वह नित्य निरन्तर, रात और दिन, श्रीकृष्णरूपी चन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है।[1]


left|50px|link=रहीम के दोहे|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=रहिमन कोऊ का करै -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सन्दर्भ-चन्द्र का उदय रात को होता है, पर यहाँ वासर अर्थात् दिन भी आया है, अत: वासर का आशय है नित्य निरन्तर से।

संबंधित लेख