चाह गई चिंता मिटी -रहीम: Difference between revisions

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जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।


{{लेख क्रम3| पिछला=खीरा सिर ते काटिये -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जे गरीब पर हित करैं -रहीम }}
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Latest revision as of 09:19, 12 April 2018

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।

अर्थ

जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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