रहिमन राज सराहिए -रहीम: Difference between revisions
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ऐसे ही राज्य की सराहना करनी चाहिए, जो [[चन्द्रमा]] के समान सभी को सुख देने वाला हो। वह राज्य किस काम का, जो [[सूर्य]] के समान होता है, जिसमें एक भी [[तारा]] देखने में नहीं आता। वह अकेला ही अपने-आप तपता रहता है।<ref>।तारों से आशय प्रजाजनों से है, जो राजा के आतंक के मारे उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं कर सकते, मुंह खोलने की बात तो दूर।</ref> | ऐसे ही राज्य की सराहना करनी चाहिए, जो [[चन्द्रमा]] के समान सभी को सुख देने वाला हो। वह राज्य किस काम का, जो [[सूर्य]] के समान होता है, जिसमें एक भी [[तारा]] देखने में नहीं आता। वह अकेला ही अपने-आप तपता रहता है।<ref>।तारों से आशय प्रजाजनों से है, जो राजा के आतंक के मारे उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं कर सकते, मुंह खोलने की बात तो दूर।</ref> | ||
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Latest revision as of 13:40, 26 February 2016
‘रहिमन’ राज सराहिए, ससि सम सुखद जो होय ।
कहा बापुरो भानु है, तप्यो तरैयन खोय ॥
- अर्थ
ऐसे ही राज्य की सराहना करनी चाहिए, जो चन्द्रमा के समान सभी को सुख देने वाला हो। वह राज्य किस काम का, जो सूर्य के समान होता है, जिसमें एक भी तारा देखने में नहीं आता। वह अकेला ही अपने-आप तपता रहता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ।तारों से आशय प्रजाजनों से है, जो राजा के आतंक के मारे उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं कर सकते, मुंह खोलने की बात तो दूर।
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