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{{सूचना बक्सा पर्यटन
'''अभिप्रेरण''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Motivation'') का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।
|चित्र=Sheshnag-Lake-Amarnath.jpg
 
|चित्र का नाम=शेषनाग झील, अमरनाथ
अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में [[आयु]] और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।
|विवरण=[[अमरनाथ]] [[शिव|भगवान शिव]] के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने माँ [[पार्वती]] को अमरत्व का रहस्य बताया था।
 
|राज्य=[[जम्मू एवं कश्मीर]]
==== आवश्यक अंग ====
|केन्द्र शासित प्रदेश=
अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।<ref>सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।</ref><ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%A3 |title=अभिप्रेरण|accessmonthday=09 फरवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref>
|ज़िला=
 
|निर्माता=
 
|स्वामित्व=
 
|प्रबंधक=
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|निर्माण काल=
<references/>
|स्थापना=
==संबंधित लेख==
|भौगोलिक स्थिति=
__INDEX__
|मार्ग स्थिति=यह [[जम्मू]] - [[कश्मीर]] राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर - पूर्व में 141 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 3,888 मीटर (12,756 फुट) की ऊंचाई पर स्थित है।
__NOTOC__
|मौसम=
|तापमान=
|प्रसिद्धि=यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ़ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इस 'स्वयंभू हिमानी शिवलिंग' भी कहते हैं।
|कब जाएँ=कभी भी
|कैसे पहुँचें=
|हवाई अड्डा=
|रेलवे स्टेशन=
|बस अड्डा=
|यातायात=बस, कार, ऑटो आदि
|क्या देखें=
|कहाँ ठहरें=
|क्या खायें=
|क्या ख़रीदें=
|एस.टी.डी. कोड=
|ए.टी.एम=
|सावधानी=
|मानचित्र लिंक=
|संबंधित लेख= [[जम्मू]], [[कश्मीर]], [[शिव|भगवान शिव]], [[हिमालय पर्वत]], [[शिवलिंग]]
|शीर्षक 1=जनश्रुति
|पाठ 1=जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को [[शिव|भगवान शिव]] ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक – शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए।<ref> पवित्र अमरनाथ मन्दिर और और पौराणिक कहानियाँ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) चिंतन। अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर, 2010।</ref>
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=[[अमरनाथ|बाबा अमरनाथ]] दर्शन का महत्त्व पुराणों में भी मिलता है। पुराणनुसार काशी में लिंग दर्शन और पूजन से दस गुना, [[प्रयाग]] से सौ गुना और [[नैमिषारण्य]] से हज़ार गुना पुण्य देने वाले श्री अमरनाथ के दर्शन है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|13:12, 19 अगस्त 2016 (IST)}}
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Latest revision as of 11:01, 9 February 2017

अभिप्रेरण (अंग्रेज़ी: Motivation) का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।

अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में आयु और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।

आवश्यक अंग

अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।[1][2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।
  2. अभिप्रेरण (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 09 फरवरी, 2017।

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