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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
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|चित्र=Blankimage.png 
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|चित्र का नाम=
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|पूरा नाम=सुंदरदास
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|
|जन्म= 1596
<quiz display=simple>
|जन्म भूमि=द्यौसा, [[जयपुर]]
|मृत्यु=1689
|मृत्यु स्थान=सांगानेर
|अभिभावक=
|पालक माता-पिता=
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|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=साहित्य, काव्य
|मुख्य रचनाएँ='ज्ञानसमुद्र', 'सुंदर विलास', 'सर्वागयोग प्रदीपिका', 'पंचेंद्रिय-चरित्र', 'सुख समाधि', 'अद्भुत उपदेश', 'स्वप्न प्रबोध', 'वेद विचार'
|विषय=
|भाषा=[[हिंदी]], [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] तथा [[संस्कृत]]
|विद्यालय=
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=साहित्यकार
|विशेष योगदान=
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|संबंधित लेख=
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|अन्य जानकारी=सुंदरदास की कृतियों का एक अच्छा संस्करण पुरोहित हरिनारायण शर्मा द्वारा सम्पादित होकर 'सुंदर ग्रंथावली' नाम से दो भागों में राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, [[कलकत्ता]] से सन [[1936]] ई. में प्रकाशित किया गया।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''सुंदरदास''' (अंग्रेज़ी: ''Sundar Das'', जन्म-1596 ई., द्यौसा, [[जयपुर]]; मृत्यु-1689 ई.,सांगानेर) निर्गुण [[संत]] [[कवि|कवियों]] में सर्वाधिक व्युत्पन्न व्यक्ति थे। इनकी छोटी-बड़ी कुल 42 रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। ये प्रसिद्ध संत दादूदयाल के शिष्य थे।
==परिचय==
'सुंदरदास का जन्म 1596 ई. को [[जयपुर]] राज्य की प्राचीन [[राजधानी]] द्यौसा नगर से एक खण्डेलवाल [[वैश्य]] परिवार में हुआ था। ये प्रसिद्ध [[संत]] दादूदयाल के शिष्य थे। निर्गुण संत कवियों में ये सर्वाधिक व्युत्पन्न व्यक्ति थे। दादूदयाल ने ही इनके रूप से प्रभावित होकर इनका नाम 'सुंदर' रखा था। दादू के एक अन्य शिष्य का नाम भी सुंदर था, इसलिए इन्हें छोटे सुंदरदास कहा जाने लगा। कहते हैं कि 6 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था। 11 वर्ष की अवस्था में ये अध्ययन के लिये काशी आये और 18 वर्ष तक वेदान्त, [[साहित्य]] और [[व्याकरण]] का अध्ययन करते रहे। अध्ययन के उपरांत फतेहपुर (शेखावटी) लौटकर इन्होंने 12 वर्ष तक निरन्तर योगाभ्यास किया। फतेहपुर रहते हुए इनकी मैत्री वहाँ के नवाब अलिफ खाँ से हो गयी थी। अलिफ खाँ स्वयं भी [[काव्य]] प्रेमी थे। सुंदरदास जी ने देशाटन भी खूब किया था, विशेषत: [[पंजाब]] और [[राजस्थान]] के सभी स्थानों में ये रम चुके थे।
==प्रसिद्ध रचनाएँ ==
सुंदरदास की छोटी-बड़ी कुल 42 रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें 'ज्ञानसमुद्र', 'सुंदर विलाछा संस्करण पुरोहित हरिनारायण शर्मा द्वारा सम्पादित होकर 'सुंदर ग्रंथावली' नाम से दो भागों में राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, [[कलकत्ता]] से सन [[1936]] ई. में प्रकाशित हो चुका है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दी साहित्य कोश|लेखक= धीरेंद्र वर्मा (प्रधान)|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी |संकलन=भारत डिस्कवरी |संपादन= |पृष्ठ संख्या=632 |url=|ISBN=}}</ref>


सुंदरदास ने भारतीय तत्त्वज्ञान के सभी रूपों को शास्त्रीय ढंग से हिंदी-भाषा में प्रस्तुत कर दिया है किंतु यह समझना भूल होगी कि ये षट्-दर्शनों के शास्त्रनिर्णीत मतवादों में एक पंडित जैसी आस्था रखते थे। इन्होंने शास्त्रीय तत्त्वज्ञान से अधिक महत्त्व अनुभव-ज्ञान को देते हुए कहा है- "जाके अनुभव-ज्ञान बाद मैं न बह्यों है।" इनका जीवन के प्रति सामान्य दृष्टिकोण वही था, जो अन्य संतों का। ये योग मार्ग के समर्थक और अद्वैत वेदांत पर पूर्ण आस्था रखने वाले थे। व्युत्पन्न होने के कारण इनकी रचनाएँ छंदतुक आदि की दृष्टि से निर्दोष अस', 'सर्वागयोग प्रदीपिका', 'पंचेंद्रिय-चरित्र', 'सुख समाधि', 'अद्भुत उपदेश', 'स्वप्न प्रबोध', 'वेद विचार', 'उत्त-अनूप', 'पंच प्रभाव' और 'ज्ञान झूलना', आदि प्रमुख है। इन कृतियों का एक अच्वश्य हैं किंतु उनका स्वतंत्रभावोन्मेष रीत्यधीनता के कारण दब-सा गया। इनकी भाषा व्याकरणसम्मत है और इन्होंने अलंकारादि का प्रयोग भी सफलतापूर्वक किया है। रीति-कवियों का अनुसरण करते हुए इन्होंने चित्र-काव्य की रचना भी की है। वस्तुत: सुंदरादास जी की रचनाएँ संतकाव्य के शास्त्रीय संस्करण के रूप में मान्य हो सकती है।<ref>सहायक ग्रंथ-सुंदर ग्रंथावली: (सम्पादक) पुरोहित हरिनारायण शर्मा: उत्तरी भारत की संत-परम्परा: पशुराम चतुर्वेदी; सुंदर-दर्शन: त्रिलोकी नारायण दीक्षित: हिंदी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल।</ref>
==मृत्यु==
सुंदरदास की मृत्यु सांगानेर में सन 1689 ई. में हुई थी।


 
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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 12:56, 17 March 2018