|
|
(149 intermediate revisions by 2 users not shown) |
Line 6: |
Line 6: |
| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
|
| |
|
| {"युद्ध की स्थिति राज्य के व्यक्तित्व की सर्वशक्तिमता को प्रकट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-56 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -ग्रीन | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -मुसोलिनी | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| +हीगल
| | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -हिटलर | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||हीगल का कथन है कि "युद्ध की स्थिति राज्य के व्यक्तित्व की सर्वशक्तिमत्ता को प्रकट करती है"। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
|
| |
|
| {निम्न में कौन-सा कथन सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-23
| |
| |type="()"}
| |
| -स्वतंत्रता और समानता विरोधी हैं
| |
| +स्वतंत्रता और समानता पूरक हैं
| |
| -स्वतंत्रता और समानता असंगत हैं
| |
| -स्वतंत्रता और सत्ता विरोधी हैं
| |
| ||स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के पूरक हैं। इसके समर्थक रूसो, ग्रीन, टॉनी, लास्की, मैक्फर्सन आदि विद्बान रहे हैं। स्वतंत्रता और समानता दोनों का ही उद्देश्य मानवीय व्यक्तित्व का उच्चतम विकास है। स्वतंत्रता जहां एक तरफ व्यक्तियों के जीवन पर न्यूनतम प्रतिबंध को स्वीकार करते हुए उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर समानता सभी को समान अवसर प्रदान करती है, अत: स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के सहायक व पूरक हैं, परस्पर विरोधी नहीं।
| |
|
| |
| {"कर्त्तव्यों के उचित क्रम निर्धारण का नाम नागरिकता है।" नागरिकता की उपर्युक्त परिभाषा किसकी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-66
| |
| |type="()"}
| |
| +विलियम आयड
| |
| -[[अरस्तू]]
| |
| -लास्की
| |
| -जे.एस. मिल
| |
| ||विलियम बायड ने नागरिकता को परिभाषित करते हुए कहा है कि कर्त्तव्यों के उचित क्रम निर्धारण का नाम नागरिकता है"।
| |
|
| |
| {[[भारत]] के [[उपराष्ट्रपति]] को कौन पदमुक्त कर सकता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-53
| |
| |type="()"}
| |
| -[[राज्य सभा]]
| |
| -[[लोक सभा]]
| |
| +[[राज्य सभा]] व [[लोक सभा]] दोनों
| |
| -[[निर्वाचन आयोग]]
| |
| ||अनुच्छेद 67 के अनुसार, [[उपराष्ट्रपति]] को उसके पद से तभी हटाया जा सकता है जब इस हेतु संकल्प राज्य सभा के तत्कालीन सभी सदस्यों के बहुमत से पारित हो जाता है और जिससे लोक सभा सहमत हो। {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[उपराष्ट्रपति]]
| |
|
| |
|
| {संविधान के किस अनुच्छेद के तहत यह उपबंधित है कि 'निर्वाचक नामावली' धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर तैयार नहीं की जाएगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-112 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -अनुच्छेद 17 | | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -अनुच्छेद 29 | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| +अनुच्छेद 325
| | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| -अनुच्छेद 326 | | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार, [[संसद]] के प्रत्येक सदन या किसी [[राज्य]] के [[विधान मंडल]] के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन के लिए प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र के लिए एक साधारण निर्वाचक-नामावली होगी और केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या इनमें से किसी के आधार पर कोई व्यक्ति ऐसी किसी नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र नहीं होगा या ऐसे किसी निर्वाचन-क्षेत्र के लिए किसी विशेष निर्वाचन-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा नहीं करेगा।
| | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
|
| |
|
| {"पूंजीवाद के सागर के बीच का समाजवादी द्वीप सारे संसार के सर्वहारा वर्ग के क्रांतिकारी आंदोलन के लिए एक प्रकाश पुंज का कार्य करेगा।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-61
| |
| |type="()"}
| |
| -माओत्सेतुंग
| |
| -[[कार्ल मार्क्स]]
| |
| +लेनिन
| |
| -स्टालिन
| |
|
| |
|
| {"समाजवाद परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलने वाला गिरगिट का सा धर्म है।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-62
| |
| |type="()"}
| |
| -सी.ई.एम. जोड
| |
| -एच.जे. लास्की
| |
| -सी.एल. वेपर
| |
| +रैम्जे म्योर
| |
| ||समाजवाद एक प्रगतिशील और परिवर्तनशील दर्शन तथा कार्यक्रम है। यह बदलते हुए आर्थिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं के साथ-साथ अपने स्वरूप में परिवर्तन करता रहता है। समाजवाद के इस परिवर्तनशील स्वरूप को दृष्टि में रखते हुए रैम्जे म्योर ने कहा है कि, "समाजवाद परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलने वाला गिरगिट का सा धर्म है।" [[जयप्रकाश नारायण]] ने कहा था- 'समाजवादी समाज एक ऐसा वर्ग विहीन समाज होगा, जिसमें सब श्रमजीवी होंगे। इस समाज में वैयक्तिक संपत्ति के हित के लिए मनुष्य के श्रम का शोषण नहीं होगा। इस समाज को सारी संपत्ति सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय अथवा सार्वजनिक संपत्ति होगी तथा अनार्जित आय और आय संबंधी भीषण असामनताएं अदैव के लिए समाप्त हो जाएगी। ऐसे समाज में मानव जीवन तथा उसकी प्रगति योजनाबद्ध होगी और सब लोग सबके हित के लिए जीयेंगे।"
| |
|
| |
|
| {'उपलब्ध समय के अनुसार काम का विस्तार होता जाता है।" यह कथन किसका है?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-77 | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -पीटर ड्रकर | | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| +नॉर्थकोर्ट पार्किन्सन | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -फ्रेडरिक टेलर | | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| -एल्टन मेयो
| | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||नॉर्थकोर्ट पार्किन्सन के अनुसार, "उपलब्ध समय के अनुसार काम का विस्तार होता जाता है"। | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
|
| |
|
| {किसने कहा था, 'हस्त चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से सामंतवादी समाज और वाष्प चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से पूंजीवादी समाज निर्मित होता है?" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-36 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[महात्मा गाँधी]]
| | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| +[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| -[[प्लेटो]] | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -लेनिन | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||मार्क्स 'इतिहास की आर्थिक व्याख्या' में उत्पादन प्रणाली को निर्णायक बताते हुए कहते हैं कि "हस्त चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से सामंतवादी समाज और वाष्प चालित मशीनों से निर्मित वस्तुओं से पूंजीवादी समाज निर्मित होता है।" मार्क्स के इतिहास की आर्थिक व्याख्या को 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' या 'इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या' भी कहा जाता है। यह द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का पूरक सिद्धांत है। इसके अनुसार, किसी राष्ट्र या समाज के विकास की प्रक्रिया में आर्थिक तत्व अर्थात वस्तुओं के उत्पादन, विनिमय और वितरण प्रणाली की भूमिका सबसे प्रधान होती है। {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[कार्ल मार्क्स]] | | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
| | |
| {'समाजवाद' का संबंध मुख्यतया निम्न में से किस वर्ग से है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-47
| |
| |type="()"}
| |
| -पूंजीपति
| |
| -सैनिक
| |
| +श्रमिक
| |
| -उत्पादक
| |
| ||अपने आधुनिक रूप में समाजवाद का उद्भव 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में माना जाता है। यह व्यक्तिवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया एवं प्रगतिशील आंदोलन है। यह पूंजीवाद का विरोधी तथा उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है। इसका संबंध मुख्यतया श्रमिक वर्ग से है।
| |
| | |
| </quiz> | | </quiz> |
| |} | | |} |
| |} | | |} |