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| {निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| -'राज्य की उच्चतर तार्किकता'- बोसांके | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| -'राज्य समुदायों का समुदाय'- ग्रीन | | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| +'मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार'- लॉक
| | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे और प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का आदर आता था। इसमें मुख्य रूप से तीन प्राकृतिक अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के थे। | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {"राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन हैं।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-58
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| -मैकाइवर
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| -फाइनर
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| -ब्राइस
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| +लास्की
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| ||'राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन है।" यह कथन लास्की का है। वास्तव में राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। प्रो मुनरो ने कहा है कि लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। मैकाइवर ने कहा है कि जिस राज्य में दल प्रणाली नहीं होती उसमें क्रांति ही सरकार को बदलने का एक मात्र तरीका है। दल प्रणाली से क्रांति की आवश्यकता नहीं होती और संवैधानिक तरीके से शासन में परिवर्तन किया जा सकता है।"
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| {"समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज नही है। मैं लॉर्ड एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं हूं कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतंत्रता की आशा ही व्यर्थ हो गई है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-25
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| -मैजिनी
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| +लास्की
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| -वाल्टेयर
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| -जॉन मिल्टन
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| ||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक गलत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य गलत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है। लार्ड ऐक्टन अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाते है। तब इन्होंने लिखा है कि, "विरोधाभाष यह है कि समानता और स्वतंत्रता जो कि परस्पर विरोधी विचार के में प्रारंभ होते हैं, विश्लेषण करने पर एक-दूसरे के लिए आवश्यक हो जाते हैं। यह सत्य है कि समानता के अर्थ की उचित व्याख्या स्वतंत्रता के संदर्भ में की जा सकती है।
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| {"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69
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| +लॉर्ड एक्टन
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| -लॉर्ड ब्राइस
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| -लॉर्ड बेकन
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| -लॉर्ड रोजर एक्विनास
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| ||"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन लॉर्ड कथन लॉर्ड ऐक्टन का है। लॉर्ड एक्टन मानते है कि शक्ति ही बुराई की जड़ है। कोई राजा या पोप जिसमें शक्ति केंद्रीकृत होती है वहां उसका दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित होता है। इसी संदर्भ में ऐक्टन ने कहा है कि शक्ति भ्रष्ट करती है।
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| {[[संसद|भारतीय संसद]] के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक किस संबंध में आहूत होती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-55 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -संविधान संशोधन विधेयक | | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -वित्त विधेयक | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| -[[भारत]] के [[उपराष्ट्रपति|उप-राष्ट्रपति]] का निर्वाचन | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| +साधारण विधेयक | | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||साधारण विधेयक के संदर्भ में [[संसद]] के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है।
| | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
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| {भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य सभा, विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56
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| |type="()"}
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| -अनुच्छेद 247
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| -अनुच्छेद 248
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| +अनुच्छेद 249
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| -अनुच्छेद 250
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| ||अनुच्छेद के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनाना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण [[भारत]] या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा।
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| {[[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114
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| |type="()"}
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| -मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी
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| -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] (इ) पार्टी
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| +[[समाजवादी पार्टी]]
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| -[[बहुजन समाज पार्टी]]
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| ||[[समाजवादी पार्टी]], [[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), (4) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, (5) बहुजन समाज पार्टी, (6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी।
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| {समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64 | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -कोई आर्थिक नियोजन न हो | | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| -बहुराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक नियोजन हो | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो | | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| +राज्य के द्वारा नियोजन हो
| | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||समाजवाद राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन का पक्षधर है। पूंजीवाद का विरोधी दर्शन होने के नाते समाजवाद भूमि, उद्योग तथा उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व (राज्य द्वारा स्वामित्व) की वकालत करता है। समाजवादियों के अनुसार वैयक्तिक उद्योग एक वैक्तिक लूटमार है। ब्लैचफोर्ड के अनुसार" भूमि तथा उत्पादन के सभी साधनों को राष्ट्रीय संपत्ति बना दो सभी खेतों, खानों जहाजों, रेलों को राष्ट्रीय नियंत्रण में रख दो। बस व्यावहारिक समाजवाद पूरा हो जायेगा।" | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| {निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -जय प्रकाश नारायण
| | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -आचार्य नरेंद्र देव
| | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| +डॉ. राम मनोहर लोहिया | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -आचार्य विनोबा भावे | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||डॉ. राम मनोहर लोहिया विकेंद्रीकृत समाजवाद के समर्थक थे। पूंजी के संचय तथा बढ़ती हुई बेकारी को रोकने के लिए लोहिया ने छोटी मशीनी पर आधारित उद्योग का समर्थन किया। लोहिया प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के भी समर्थक थे उन्होंने चौखंभा राज्य की कल्पना की। जिसके अंतर्गत गांव, मण्डल (जिला), प्रांत तथा केंद्रीय सरकार इसके चार स्तंभ होगें। 'Wheel of History' इनकी प्रमुख रचना है।
| | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
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| {मैक्स वेबर, दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79
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| |type="()"}
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| -दार्शनिक | |
| -आर्थिक
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| -आध्यात्मिक
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| +समाजशास्त्रीय
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| ||समाजशास्त्र, समाज के उद्भव, विकास, संगठनतंत्र और संस्थाओं के साथ-साथ, समाज के सामाजिक व्यवहार को वैज्ञानिक तीरि से समझने का विज्ञान है। मैक्स वेबर, दुर्खीम एवं पेरेटो तीनों ही समकालीन यूरोपीय समाजशास्त्री थे जो तत्कालीन यूरोपीय समाज की समस्याओं को अपने दृष्टिकोणों के आधार पर समझते थे। | |
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| {"अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39
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| |type="()"}
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| +मार्क्स का
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| -लेनिन का
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| -स्टालिन का
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| -माओ का
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| ||मार्क्स ने 'कम्युनिस्ट मैनीफेसटो' (साम्यवादी घोषणा पत्र) में लिखता है कि "अभी तक के समस्त समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।" मार्क्स ने इसमें कुल पांच अवस्थाओं की बात की है जिसमें प्रारंभिक आदिम साम्यवादी अवस्था तथा अंतिम साम्यवादी अवस्था को छोड़कर अन्य तीनों अवस्थाओं में वर्ग विद्यमान रहे तथा उनके बीच संघर्ष चलता रहा। दास व्यवस्था में स्वामी तथा दास के मध्य, सामंती व्यवस्था में सामंत तथा कृषक के मध्य तथा पूंजीवाद व्यवस्था में बुर्जुअ एवं सर्वहारा के मध्य संघर्ष विद्यमान रहा। इस प्रकार मानव इतिहास कुछ नहीं अपितु वर्ग संघर्ष की कहानी मात्र है।
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| .वर्ग-वर्ग व्यक्तियों के उस समूह को कहते है जो उत्पादन की किसी विशेष प्रक्रिया से संबंधित हो और जिनके साधारणहित एक हों।
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| .बुर्णुआ वर्ग-पूंजीवाद के अंतर्गत, वह वर्ग जो सामाजिक उत्पादन के प्रमुख साधनों (भूमि, कल कारखानों, कच्चे माल के स्त्रोतों इत्यादि) पर अपना स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर लेता है। अत: यह पूंजीपति-वर्ग का पर्याय है।
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| .सर्वहारा वर्ग-पूंजीवाद के अंतर्गत, औद्योगिक कामगारों का वह विशाल वर्ग जो जन साधारण की श्रेणी में आता है। अत: यह कामगार वर्ग (Warking class) का पर्याय है। इसके पास कोई निजी संपत्ति नहीं होती। यह केवल अपनी श्रम शक्ति के बल पर जीवन निर्वाह करने के लिए विवस होता है।
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| {ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50
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| -फॉसीवाद
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| -अराजकतावाद
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| -आदर्शवाद
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| +समाजवाद
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| ||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के अवशेष तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो।
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| {"राज्य का स्वरूप मूलत: निगम के समान है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-51
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| -लास्की का
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| -मार्क्स का
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| +मैकाइवर का
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| -डुग्वी का
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| ||मैकाइवर ने अपनी पुस्तक 'माडर्न स्टेट' (Modern State) में बहुलवादी विचारधारा का पक्षपोषण किया है। इनके अनुसार, राज्य समाज के अन्य अनेक संस्थाओं में से केवल एक संस्था है। यद्यपि इसके कार्य अनोखे ढंग के हैं। राज्य में एक निगम की सभी अनिवार्य विशेषताएं हैं। उसकी सीमाएं उसके अधिकार क्षेत्र उसकी जिम्मेदारियां सभी निश्चित हैं। निगम की तरह राज्य के भी अधिकार और कर्त्तव्य हैं। ज्ञातव्य है कि लास्की भी राज्य को सामाजिक समंवय करने वाली संस्था या 'सार्वजनिक सेवा निगम' की संज्ञा देते हैं।
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