बादशाही मस्जिद: Difference between revisions

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'''बादशाही मस्जिद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Badshahi Mosque'') [[पाकिस्तान]] के [[लाहौर]] में स्थित है। इस मस्जिद को 1673 ई. में [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] ने बनवाया था। यह मस्जिद [[मुग़ल काल]] की सौंदर्य और भव्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पाकिस्तान की इस दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद में एक साथ 55,000 लोग [[नमाज़]] अदा कर सकते हैं। बादशाही मस्जिद का डिजाइन [[दिल्ली]] की [[जामा मस्जिद दिल्ली|जामा मस्जिद]] से काफी मिलता-जुलता है, जिसे 1648 ई. में औरंगज़ेब के पिता [[शाहजहां]] ने बनवाया था। मस्जिद लाहौर किले के नजदीक स्थित है।
#REDIRECT [[बादशाही मस्जिद, लाहौर]]
==इतिहास==
इस विश्व प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण वर्ष 1671 ई. में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब द्वारा शुरू किया गया था, जिसके बाद उसके बड़े भाई और लाहौर के गवर्नर मुजफ्फर हुसैन (फिदाई खान कोका) ने इस मस्जिद के निर्माण कार्य वर्ष 1673 ई. में पूर्ण करवाया। इस मस्जिद का निर्माण औरंगज़ेब ने [[मराठा|मराठाओं]] पर मिली विजय से प्रसन्न होकर करवाया था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.samanyagyan.com/famous-things/badshahi-mosque-lahore-pakistan-gk-in-hindi.php |title=बादशाही मस्जिद|accessmonthday=27 अप्रॅल|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=samanyagyan.com |language=हिंदी}}</ref>
==रोचक तथ्य==
*इस ऐतिहासिक मस्जिद का निर्माण वर्ष 1673 ई. में प्रसिद्ध [[मुग़ल]] बादशाह औरंगज़ेब के शासन में किया गया था।
*मस्जिद के निर्माण में लगभग 3 वर्षो का समय लगा। निर्माण वर्ष 1671 ई. में शुरू हुआ, जिसे वर्ष 1673 ई. तक लाहौर के गवर्नर मुजफ्फर हुसैन की देख-रेख में पूर्ण कर दिया गया।
*प्रसिद्ध [[सिक्ख]] शासक [[महाराजा रणजीत सिंह]] ने [[7 जुलाई]] [[1799]] ई. में इस मस्जिद और क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था और मस्जिद का उपयोग अपने घोड़ों और इसके 80 हुज्रास (अध्ययन कक्षोंं) का उपयोग अपने सैनिकों के आवास के लिए और सैन्य दुकानों के लिए किया।
*वर्ष [[1818]] में उन्होंने हज़ुरी बाग में मस्जिद के सामने एक संगमरमर के भवन का निर्माण किया, जिसे हज़ुरी बाग बारादारी के नाम से जाना जाता है, यह उनके दर्शकों के आधिकारिक शाही अदालत के रूप में उपयोग किया जाता था।
*वर्ष [[1841]] में प्रथम एंग्लो-सिक्ख युद्ध के दौरान रणजीत सिंह के बेटे शेर सिंह ने इस मस्जिद के बड़े मीनारों का उपयोग चांद कौर के समर्थकों पर हमला करने के लिए हल्की बंदूकें और तोंपो को रखने के लिए किया।
*वर्ष [[1848]] में रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिक्ख शासक शेर सिंह ने उनकी समाधि बनाने के लिए इस मस्जिद के ही समीप के स्थानों का उपयोग किया।
*वर्ष [[1849]] में अंग्रेजों ने [[लाहौर]] से सिक्ख साम्राज्य के नियंत्रण को हटाकर अपना शासन जमा लिया, जिसके बाद मस्जिद और इसके आस-पास के किले को अंग्रेजों ने अपने सैन्य छावनियों के रूप में उपयोग किया।
*वर्ष [[1857]] के भारतीय विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने इस विशाल मस्जिद के आंगन के चारों ओर की दीवारों में निर्मित 80 कोठरियों को ध्वस्त कर दिया, ताकि उन्हें ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने से रोका जा सके। कोठरियों को खुली वीथिकाओं द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिन्हें दलों के नाम से जाना जाता है।
*[[1852]] में मुस्लिम लोगों का विरोध इस मस्जिद का उपयोग सैन्य छावनी के रूप में देखकर और बढ़ गया, जिससे मस्जिद प्राधिकरण की स्थापना की गई, जिसने इस मस्जिद को बाद में पुन: प्रार्थना योग्य बना दिया।
*[[अप्रैल]] [[1919]] में हुये [[जलियांवाला बाग|जलियांवाला हत्याकांड]] के बाद लगभग 25,000 से 35,000 तक [[हिंदू]], [[मुस्लिम]] आदि संप्रदाय के लोग इस मस्जिद के आंगन में अंग्रेजों के विरोध में इकट्ठे हुए थे और खालिफा शुजा-उद-दीन द्वारा [[महात्मा गांधी]] का एक भाषण पढ़ा गया था।
*वर्ष [[1939]] में सिकंदर हायात खान ने इस मस्जिद के नवीनीकरण के उद्देश्य से धन जुटाना शुरू कर दिया। जिसे बाद में प्रसिद्ध वास्तुकार नवाब आलम यार बहादुर द्वारा नवीनीकृत किया गया।
*इस मस्जिद का आंगन काफी विशाल है जो लगभग 276,000 वर्ग फुट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, इस आंगन में बलुआ पत्थर पर पंख के डिजाईनो को बनाया गया है। [[नमाज़]] के समय इस आंगन में लगभग 100,000 और मस्जिद के अन्य भागों में लगभग 56,000 लोगोंं को एक साथ बिठाया जा सकता है।
*मस्जिद के प्रार्थना कक्ष को लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर के पत्थरों से सजाया गया है, इसमें 5 निकासी द्वार, 3 संगमरमर के बड़े गुंबद और 2 छोटे गुंबद सम्मिलित है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ लगभग 10,000 लोगोंं को बिठाया जा सकता है।
*मस्जिद में कुल मीनारों की संख्या 8 है, जिसमें से 4 बड़ी हैं, जिनकी ऊंचाई 196 फुट है और 4 छोटी हैं, जिनकी ऊंचाई लगभग 67 फुट है।
*वर्ष [[1993]] में इसके ऐतिहासिक महत्व, अद्भुत संरचना और लोगों का इसके प्रति प्यार देखकर यूनेस्को द्वारा इसे [[विश्व धरोहर स्थल]] घोषित कर दिया गया है।
*वर्ष [[2000]] में इसके मुख्य प्रार्थना कक्ष में संगमरमर की जड़ की मरम्मत की गई थी तथा वर्ष [[2008]] में इसके बड़े आंगन पर लाल बलुआ पत्थर की टाइलों पर प्रतिस्थापन कार्य भारतीय राज्य [[राजस्थान]] के [[जयपुर]] से आयातित लाल बलुआ पत्थर से किया गया।
*मस्जिद का पूरा नाम 'मस्जिद अबुल जफर मुह-उद-दीन मोहम्मद आलमगीर बादशाह गाज़ी' है, जो यहाँ के प्रवेश द्वार के ऊपर अंदरूनी संगमरमर में लिखा गया है।<ref name="pp"/>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{मुस्लिम धार्मिक स्थल}}
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Latest revision as of 16:43, 27 April 2020