बाबू मेदनी सिंह: Difference between revisions
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बाबू मेदनी सिंह का जन्म सोमवंशी राजपूत परिवार में प्रतापगढ़ राज (वर्तमान में प्रतापगढ़ जिला) में हुआ था। वे प्रतापगढ़ के राजा छत्रधारी सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। | '''बाबू मेदनी सिंह''' का जन्म सोमवंशी राजपूत परिवार में प्रतापगढ़ राज (वर्तमान में प्रतापगढ़ जिला) में हुआ था। वे प्रतापगढ़ के राजा छत्रधारी सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। | ||
बड़े भाई होने के बावजूद, मेदनी सिंह को अपनी उचित विरासत के लिए शुरुआती चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके पिता राजा छत्रधारी सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी सुजान कुंवारी के मोह के वशीभूत होकर अन्यायपूर्वक सुजान कुंवारी से जन्मे पुत्र पृथ्वीपत सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जिससे मेदनी सिंह अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित हो गए। इस पैतृक अन्याय ने मेदनी सिंह के भीतर आक्रोश पैदा कर दिया, जिससे वह उस चीज के लिए संघर्ष को जन्म दिया जिसे वह सही मायनों में अपनी विरासत मानता था। | बड़े भाई होने के बावजूद, मेदनी सिंह को अपनी उचित विरासत के लिए शुरुआती चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके पिता राजा छत्रधारी सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी सुजान कुंवारी के मोह के वशीभूत होकर अन्यायपूर्वक सुजान कुंवारी से जन्मे पुत्र पृथ्वीपत सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जिससे मेदनी सिंह अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित हो गए। इस पैतृक अन्याय ने मेदनी सिंह के भीतर आक्रोश पैदा कर दिया, जिससे वह उस चीज के लिए संघर्ष को जन्म दिया जिसे वह सही मायनों में अपनी विरासत मानता था। | ||
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* [https://archive.org/details/dli.ministry.08771/page/37/mode/2up प्रतापगढ़ गजेटीयर, 1980, पृष्ठ 37 और 38] | |||
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Latest revision as of 09:32, 5 April 2024
बाबू मेदनी सिंह का जन्म सोमवंशी राजपूत परिवार में प्रतापगढ़ राज (वर्तमान में प्रतापगढ़ जिला) में हुआ था। वे प्रतापगढ़ के राजा छत्रधारी सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे।
बड़े भाई होने के बावजूद, मेदनी सिंह को अपनी उचित विरासत के लिए शुरुआती चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके पिता राजा छत्रधारी सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी सुजान कुंवारी के मोह के वशीभूत होकर अन्यायपूर्वक सुजान कुंवारी से जन्मे पुत्र पृथ्वीपत सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जिससे मेदनी सिंह अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित हो गए। इस पैतृक अन्याय ने मेदनी सिंह के भीतर आक्रोश पैदा कर दिया, जिससे वह उस चीज के लिए संघर्ष को जन्म दिया जिसे वह सही मायनों में अपनी विरासत मानता था।
मेदनी सिंह ने अपने पिता छत्रधारी सिंह के अन्यायपूर्ण निर्णय का विरोध किया और अपने पिता के साथ प्रतापगढ़ शहर के पास कई युद्ध लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली। छत्रधारी सिंह की 1795 में मृत्यु हो गई और पृथ्वीपत सिंह ने सिंहासन संभाल लिया।
मेदनी सिंह ने प्रतापगढ़ शहर के पास ही, कटरा मेदनीगंज नाम से एक नगर की स्थापना कि जो उनके ही नाम पर बसाई गई हैं।
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