दूरदर्शन: Difference between revisions

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टेलीविजन जन-संचार का दृश्य-श्रव्य माध्यम है। ध्वनि के साथ-साथ चित्रों के सजीव प्रसारण के कारण यह अपने कार्यक्रम को रुचिकर बना देता है। जिसका समूह पर प्रभावशाली और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। टेलीविजन मुख्य रूप से दृष्टि-निर्बन्ध के सिद्धान्त पर आधारित है। जिस वस्तु या व्यक्ति का बिम्ब टेलीविजन के माध्यम से प्रसारित करना होता है, उस पर बहुत तेज़ प्रकाश डाला जाता है। वस्तु या व्यक्ति की तस्वीर को क्रम में विभक्त कर छोटे-छोटे विभिन्न घनत्वों वाले अवयव में बदल दिये जाते हैं तथा उनकी संगत तरंगों का माडुलन कर एक निश्चित दिशा में प्रेषित द्वारा संचारित किया जाता है। ग्राही द्वारा छोटे-छोटे उसी क्रम में इन अवयवों को जोड़कर मूल तस्वीर प्राप्त कर ली जाती है। जैसा की हमारी आँखों के सामने एक सेकेण्ड में 20-25 क्रमिक परिवर्तन वाले चित्र के गुजरने पर वह गतिमान चित्र के रूप में दिखाई देता है।

इतिहास

टेलीविजन का आविष्कार 1944 में अमेरिका के वैज्ञानिक जॉन लॉगी बेयर्ड ने किया था। भारत में सर्वप्रथम टेलीविजन का प्रयोग 15 सितम्बर, 1959 को दिल्ली में दूरदर्शन केन्द्र की स्थापना के साथ हुआ। इसका व्यापक प्रसार 1982 में भारत में आयोजित एशियाड खेलों के आयोजन से हुआ। वर्तमान में दूरदर्शन की पहुँच 86% लोगों तक है जो इसके माध्यम से अपना मनोरंजन करते हैं।

विधियाँ

टेलीविजन प्रसारण के लिए मुख्य रूप से तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं-

  1. आयन मण्डल से रेडियों तरंगों के परावर्तन द्वारा।
  2. सूक्ष्म तरंगों के प्रयोग से कैरियर फ्रीक्वैंसी ट्रान्समिशन विधि द्वारा।
  3. रेडियो तरंगों के उपयोग पर कृत्रिम उपग्रह के माध्यम से।

कार्य प्रणाली

वास्तव में टेलीविजन प्रणाली द्वारा भेजे गये चित्रों को प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है। फोटो इलेक्ट्रानिक प्रभाव के द्वारा बिम्बों की प्रकाश किरणों को विद्युत तरंगों में परिवर्तित कर दिया जाता है। फिर इन्हें सुदूर स्थानों तक प्रसारित किया जाता है। ये तरंगे टेलीविजन सेट पर फिर चित्रों में बदल जाती हैं। इसी के साथ-साथ रेडियो प्रणाली द्वारा ध्वनि तरंगें भी जाती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ