कणाद: Difference between revisions

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Revision as of 13:41, 13 October 2011

महर्षि कणाद वैशेषिक सूत्र के निर्माता, परम्परा से प्रचलित वैशेषिक सिद्धान्तों के क्रमबद्ध संग्रहकर्ता एवं वैशेषिक दर्शन के समुद्भावक माने जाते हैं। वह उलूक, काश्यप, पैलुक आदि नामों से भी प्रख्यात हैं महर्षि के ये सभी नाम साभिप्राय और सकारण हैं।

कणाद नाम का आधार

कणाद शब्द की व्युत्पत्ति और व्याख्या विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न प्रकार से की है। उनमें से कुछ के मन्तव्य इस प्रकार हैं—

  • व्योमशिव ने 'कणान् अत्तीति कणाद:'- आदि व्युत्पत्तियों की समीक्षा करने के अनन्तर यह कहा कि ये असद व्याख्यान हैं। उन्होंने 'केचन अन्ये' कहकर निम्नलिखित परिभाषा का भी उल्लेख किया- 'असच्चोद्यनिरासार्थं कणान् ददाति दयते इति वा कणाद:।'
  • श्रीधर— कणादमिति तस्य कापोतीं वृत्तिमनुतिष्ठत: रथ्यानिपतित-तण्डुनालादाय प्रत्यहं कृताहारनिमित्ता संज्ञा। निरवकाश: कणान् वा भक्षयतु इति यत्र तत्र उपालम्भस्तत्रभवताम्।[1] श्रीधर का यह विचार चिन्तनीय है कि कणाद की कपोती वृत्ति के आधार पर ही वैशेषिकों के प्रति यह उपालम्भ किया जाता है कि- 'अब कोई उपाय न रहने के कारण कणों को खाइये।'
  • उदयन आदि आचार्यों का यह मत है कि महेश्वर की कृपा को प्राप्त करके कणाद ने इस शास्त्र का प्रणयन किया- 'कणान् परमाणून् अत्ति सिद्धान्तत्वेनात्मसात् करोति इति कणाद:।' अत: उनको कणाद कहा गया।
  • उपर्युक्त सभी व्याख्याओं की समीक्षा के बाद यह कहा जा सकता है कि कणाद संज्ञा एक शास्त्रीय पद्धति के वैशिष्ट्रय के कारण है, न कि कपोती वृत्ति के कारण।

उलूक या औलूक्य नाम का आधार

वैशेषिक सूत्रकार को उलूक या औलूक्य भी कहा जाता है। इनके उलूक नाम के सम्बन्ध में यह किंवदन्ती प्रचलित है कि यह दिन में ग्रन्थों की रचना करते थे और रात में उलूक पक्षी के समान जीविकोपार्जन करते थे।[2]

व्योमशिव भी इस संदर्भ में यह कहते हैं- 'अन्यैस्तु धर्मै: सह धर्मिण उपदेश: कृत:। केनेति-विना पक्षिणा उलूकेन'।

न्यायलीलावती की भूमिका में भी यह उल्लेख है- 'मुनये कणादाय स्वयमीश्वर उलूकरूपधारी प्रत्यक्षीभूय द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायलक्षणं पदार्थषट्कमुपदिदेश।'

जैनाचार्य अभयदेव सूरि ने भी सम्मतितर्क की व्याख्या में यह कहा कि 'एतदेवोक्तं भगवता परमार्षिणा औलूक्येन'। इनको औलूक्य भी कहा जाता है, और इस संदर्भ में कुछ विद्वानों द्वारा यह माना जाता है कि उलूक इनके पिता का नाम था अत: उलूक के पुत्र होने के कारण यह औलूक्य कहलाते हैं।

लिंगपुराण में यह संदर्भ मिलता है कि अक्षपाद मुनि और उलूक मुनि शिव के अवतार थे। महाभारत में उपलब्ध तथ्यों के अनुसार शरशय्या में पड़े हुए भीष्म पितामह की मृत्यु के समय अन्य ऋषियों के साथ उलूक भी थे। वही उलूक या औलूक्य मुनि वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक थे।[3]

नैषधीयचरित महाकाव्य की प्रकाश टीका के रचयिता नारायण भट्ट ने कणाद और उलूक शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची माना है।[4]

पैलुक नाम का आधार

पैलुक नाम से भी कणाद का उल्लेख किया जाता है। परमाणु का एक पर्यायवाची शब्द पीलु भी है। अत: परमाणु-सिद्धान्त के प्रवर्तक को पैलुक और वैशेषिक को पैलुकसम्प्रदाय भी कहा जाता है।

काश्यप नाम का आधार

कश्यप गोत्र में उत्पन्न होने के कारण कणाद को काश्यप भी कहा जाता है। इस नाम का उल्लेख प्रशस्तपाद ने पदार्थ धर्म-संग्रह में इस प्रकार किया है- 'विरुद्धासिद्धसंदिग्धमलिंगं काश्यपोऽब्रवीत्॥'[5]

काश्यप कणाद का गोत्रनाम था। उदयनाचार्य ने भी इस तथ्य का उल्लेख किया है।

वायुपुराण में यह बताया गया है कि कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे और शिव के अवतार थे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न्या. कं. पृ. 4
  2. Vaisheshik Philosopher, UI, p.6
  3. महाभारत, शान्ति पर्व महाभारत 14.11
  4. ध्वान्तस्य वामोरु विचारणायां वैशेषकिं चारुमतं मतं मे। औलूकमाहु: खलु दर्शनं तत् क्षम: तमस्तत्त्वनिरुपणाय॥ नै. च. 12.35
  5. प्रशस्तपादभाष्य (श्रीनिवास शास्त्री सम्पादित संस्करण, पृ. 151