युआन-जुआंग विद्रोह: Difference between revisions
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#राज्याभिषेक के अवसर पर युआन सरदारों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। अंग्रेज़ों ने इस प्रथा को समाप्त दिया था। | #राज्याभिषेक के अवसर पर युआन सरदारों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। अंग्रेज़ों ने इस प्रथा को समाप्त दिया था। | ||
#1867 ई. में क्योंझर के राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने एक से अधिक व्यक्तियों को सिंहासन पर आसीन कर दिया। अंग्रेज़ों की इसी नीति के विरुद्ध यह विद्रोह भड़क उठा। | #1867 ई. में क्योंझर के राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने एक से अधिक व्यक्तियों को सिंहासन पर आसीन कर दिया। अंग्रेज़ों की इसी नीति के विरुद्ध यह विद्रोह भड़क उठा। |
Revision as of 11:24, 27 August 2011
- युआन-जुआंग विद्रोह दो चरणों में सम्पन्न हुआ था।
प्रथम चरण (1867 से 1868 ई.)
- विद्रोह के प्रथम चरण के नेता 'रन्न नायक' थे।
- इस विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे-
- 'युआन' आदिवासियों के आत्सम्मान को अंग्रेज़ों द्वारा आहत करना, जो 'क्योंझर' राज्य के प्रशासन में महत्त्वपूर्ण पदों पर थे।
- राज्याभिषेक के अवसर पर युआन सरदारों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। अंग्रेज़ों ने इस प्रथा को समाप्त दिया था।
- 1867 ई. में क्योंझर के राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने एक से अधिक व्यक्तियों को सिंहासन पर आसीन कर दिया। अंग्रेज़ों की इसी नीति के विरुद्ध यह विद्रोह भड़क उठा।
- अंग्रेज़ों ने शीघ्र ही कार्यवाही करते हुए 1868 ई. में इस विद्रोह को दबा दिया।
- इस विद्रोह में भाग लेने वाले मुख्यतः युआन आदिवासी थे।
- बाद में 'काल' और 'जुआंग' आदिवासी भी इसमें शामिल हो गए।
- 'क्योंझर' का दूसरा विद्रोह 1891 से 1893 ई. में शुरू हुआ।
- अंग्रेज़ों द्वारा सत्तारूढ़ राजा के सामन्तों द्वारा सामन्तवादी और उत्पीड़नकारी व्यवहार इस विद्रोह का प्रमुख कारण था।
द्वितीय चरण (1891 से 1893 ई.)
- 'क्योंझर' के दूसरे चरण के विद्रोह का नेता 'धारणी नायक' था।
- धारणी नायक को स्थानीय जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था।
- इसने राज्य की शासन व्यवस्था को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया।
- क्योंझर के राजा को भागकर कटक में शरण लेनी पड़ी।
- स्थानीय शासन की सहायता से अंग्रेज़ों ने इस विद्रोह का दमन कर दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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