शेषनाग: Difference between revisions

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'''शेषनाग / Sheshnag'''<br />


*शेष नाग स्वर्ण पर्वत पर रहते हैं। शेष नाग के हज़ार मस्तक हैं। वे नील वस्त्र धारण करते हैं तथा समसत देवी-देवताओं से पूजित हैं। उस पर्वत पर तीन शाखाओं वाला सोने का एक ताल वृक्ष है जो महाप्रभु की ध्वजा का काम करता है।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, किष्किंधा कांड,40।50-53" style=color:blue>*</balloon>
*शेष नाग स्वर्ण पर्वत पर रहते हैं। शेष नाग के हज़ार मस्तक हैं। वे नील वस्त्र धारण करते हैं तथा समसत देवी-देवताओं से पूजित हैं। उस पर्वत पर तीन शाखाओं वाला सोने का एक ताल वृक्ष है जो महाप्रभु की ध्वजा का काम करता है।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, किष्किंधा कांड,40।50-53" style=color:blue>*</balloon>

Revision as of 08:09, 16 May 2010

  • शेष नाग स्वर्ण पर्वत पर रहते हैं। शेष नाग के हज़ार मस्तक हैं। वे नील वस्त्र धारण करते हैं तथा समसत देवी-देवताओं से पूजित हैं। उस पर्वत पर तीन शाखाओं वाला सोने का एक ताल वृक्ष है जो महाप्रभु की ध्वजा का काम करता है।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, किष्किंधा कांड,40।50-53" style=color:blue>*</balloon>
  • कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेष नाग था। उसने अपनी छली मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उसकी इच्छा थी कि वह इस शरीर का त्याग कर दे। भाइयों तथा मां का विमाता (विनता) तथा सौतेले भाइयों अरुण और गरुड़ के प्रति द्वेष भाव ही उसकी सांसारिक विरक्ति का कारण था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया कि उसकी बुद्धि सदैव धर्म में लगी रहे। साथ ही ब्रह्मा ने उसे आदेश दिया कि वह पृथ्वी को अपने फन पर संभालकर धारण करे, जिससे कि वह हिलना बंद कर दे तथा स्थिर रह सके। शेष नाग ने इस आदेश का पालन किया। उसके पृथ्वी के नीचे जाते ही सर्पों ने उसके छोटे भाई, वासुकि का राज्यतिलक कर दिया।<balloon title="महाभारत, आदिपर्व, अ0 35,36" style=color:blue>*</balloon>