अण्णा हज़ारे: Difference between revisions

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अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए तथा प्रतिबद्ध और ईमानदार प्रयास के लिए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में [[पद्मश्री]] और 1992 में [[पद्म विभूषण]] शामिल है, दिये गये। अमेरिका के केयर इंटरनेशनल, सियोल ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें 25 लाख रुपए का पुरस्कार भी दिया गया, जिसकी पूरी राशि को उन्होंने स्वामी विवेकानंद कृतादयाता निधि में दान दे दिया। उन्होंने अपने राज्य [[महाराष्ट्र]] में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित [[भारत]] का निर्माण।  

Revision as of 21:52, 16 August 2011

अण्णा हज़ारे
पूरा नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे
अन्य नाम अण्णा हज़ारे/अन्ना हज़ारे
जन्म 15 जून, 1938
जन्म भूमि अहमदनगर के भिंगर क़स्बे में, महाराष्ट्र
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि 1998 और 2005 में तत्कालीन सरकार के कुछ नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी।
पद गांधीवादी समाजसेवक
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
शिक्षा मुंबई में सातवीं तक पढ़ाई की।
पुरस्कार-उपाधि 1990 में पद्मश्री से और 1992 में पद्म विभूषण से, 1986 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, 1989 में महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार, 1986 में विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'
अद्यतन‎ 12:06, 9 अप्रॅल 2011 (IST)

अण्णा हज़ारे / अन्ना हज़ारे (Anna Hazare) गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाजसेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हज़ारे का वास्‍तविक नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है तथा प्यार से लोग इन्हें अन्ना कहते हैं। अण्णा हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं।

जीवन परिचय

15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के भिनगरी क़स्बे में जन्मे अन्ना हज़ारे का बचपन बहुत ग़रीबी और अभावों में गुज़रा। उनके पिता आयुर्वेद आश्रम में एक साधारण मजदूर थे, दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। अन्ना का पुश्‍तैनी गाँव अहमदनगर ज़िले में स्थित रालेगण सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगण आ गया। उनके परिवार की ग़रीबी और तंगी देखकर अन्ना हज़ारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई ले गईं। कुछ समय बाद उनका परिवार भी भिंगर से उनके पुरखों के गाँव रालेगण सिद्धि चला आया था। उनके अलावा उनके परिवार में उनके छः और भाई थे। मुंबई में बुआ के साथ रहते हुए उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। आर्थिक अभाव की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए पर देश की व्यवस्था में व्याप्त गंदगियों का अच्छा अध्ययन कर लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार पर काम करना प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगण से बुला लिया।[1]

सेना में भर्ती

1962 में इंडो-चाइना युद्ध के बाद जब कई सैनिक शहीद हो गए थे, तब भारत सरकार द्वारा युवाओं से सेना में शामिल होने का आग्रह किया। तो अन्ना भी साठ के दशक 1963 में अपने दादा की तरह फौज में भर्ती हो गये। उनकी पहली पोस्टिंग मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। 12 नवंबर 1965 के भारत - पाक युद्ध भी उन्होंने खेमकरण सेक्टर पर लड़ा था। हमले में उनकी यूनिट के सभी साथी शहीद हो गए और एक गोली हजारे के सिर के पास से भी गुजरी, लेकिन वे बच गए। जिस ट्रक को अन्ना चला रहे थे, उस पर गोलाबारी हुई थी। इस पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बाल-बाल बचे थे। अपने साथियों की मौत से दुखी अन्ना ने अपना जीवन समाज के हित में लगाने का संकल्प ले लिया। यहीं से उनका जीवन परिवर्तन का समय शुरू हुआ। सेना में अपने 15 वर्षो के कार्यकाल के दौरान हजारे ने सिक्किम, भूटान, जम्मू-कश्मीर, असम, मिजोरम, लेह और लद्दाख जैसे कई क्षेत्रों में तैनात रहकर देश की सेवा की।

परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण और आदर्श गांव

इस घटना के 13 साल बाद सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर में भिनगरी गांव नहीं गए। पास के रालेगण सिद्धि में रहने लगे। मानव अस्तित्व के बारे में सोचकर हजारे काफी निराश हो गए और एक समय ऐसा आया जब उनकी हताशा चरम पर पहुंच गई। उनके दिमाग में आत्महत्या तक का विचार आ गया। मगर, भाग्य से जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक बुक स्टॉल पर उनकी नजर स्वामी विवेकानंद की लिखी एक पुस्तक पर पड़ी। उन्होंने उस पुस्तक को तत्काल खरीद लिया। स्वामी विवेकानंद की तस्वीर ने उन्हें काफी प्रभावित किया और पुस्तक के अध्ययन के बाद उन्हें अपने सभी सवालों का जवाब मिल गया। पुस्तक ने उन्हें बताया कि मानव जीवन का परम उद्देश्य मानवता की सेवा है और यह परमात्मा की भक्ति से कम नहीं है। उन्होंने गांधीजी और विनोबा को भी पढ़ा और उनके विचारों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया। पारिवारिक दायित्वों को देखते हुए उन्होंने 1970 में 26 वर्ष की आयु में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया।

सेना से रिटायरमेंट

मुंबई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गाँव रालेगण आते-जाते रहे। जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने फौज की नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश (V.R.S.) ले लेकर अपने पारिवारिक गांव रालेगण सिद्धी लौटे तो गांव में लोगों की शराबखोरी और गांव की बदहाली से काफ़ी आहत हुए। लोगों को सुधारने के बहुत जतन किए। उसके बाद उन्होंने गाँव की तस्वीर ही बदल डाली और साथ ही अन्ना भ्रष्ट्राचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में कूद पड़े।

समाज सुधारक कार्य - आदर्श गाँव

अन्ना हज़ारे का विचार है कि भारत की असली ताकत गाँवों में है और इसीलिए उन्होंने गाँवों में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोला। अन्ना हज़ारे ने सेना से रिटायरमेंट के तुरंत बाद 1975 से सूखा प्रभावित रालेगाँव सिद्धि में काम शुरू किया। इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। इस गांव में गरीबी अपने चरम पर थी। गांव में शराब आदि का अवैध व्यापार होता था। इस गांव में मौजूद इकलौता डैम भी टूट चुका था। लोगों का जीवन कठिन था। जहाँ औसतन सालाना वर्षा 400 से 500 मि. मी. ही होती थी, गाँव में जल संचय के लिए कोई तालाब नहीं थे। उनका गाँव पानी के टैंकरों और पड़ोसी गाँवों से मिले खाद्यान्न पर निर्भर रहता था। अन्ना ने लोगों को समझाया। उनका सहयोग लिया और छोटी-छोटी नहरों द्वारा पास की पहाड़ी से पानी लाकर सिचाई की अच्छी व्यवस्था की। अण्णा ने गांव वालों को गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया। हजारे ने गांव के लोगों से अपील की कि वे सामूहिक रूप से मिलकर डैम का पुन: निर्माण करें। लोगों ने मिलकर डैम को दोबारा बनाया और सात नए कुएं खोदकर गांव के लोगों ने पहली बार इसमें पानी भरा। इसके बाद से वर्तमान में गांव के लोगों के पास सालभर पानी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है। अब अच्छी फ़सलें उगने लगीं। अण्णा के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। इसके साथ ही आज गांव में अनाज बैंक, मिल्क बैंक और स्कूल है। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। अब गांव से गरीबी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। लोगों के जीवन में खुशियां आने लगीं और रालेगन सिद्धी एक आदर्श गांव बन गया, जो देश के सामने एक मिसाल था। उन्होंने अपने बलबूते वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायोगैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गाँव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गाँव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है। विश्व बैंक ने भी इस गांव के बारे में कहा है कि इस गांव में जबरदस्त परिवर्तन हुआ और कभी गरीब रहा यह गांव आज देश के सबसे अमीर गांव में से एक है। पहले इस गांव के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 250 रुपए थी और वर्तमान में लोगों की प्रति व्यक्ति 2500 रुपए है। ये हजारे के ही प्रयास हैं कि गांव के गरीब आज नशेबाजी छोड़कर आत्मनिर्भर बन गए हैं। गांव में ग्रामीणों ने शराब पूरी तरह से छोड़ दी है और वहां शराब की बिक्री नहीं होती है। दुकानदार पिछले 13 वर्षो से सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू आदि नहीं बेच रहे हैं। पहले गांव में 300 लीटर दूध रोजाना बेचा जाता था, जो कि अब 4,000 लीटर बेचा जाता है।

हजारे के नेतृत्व में यहां लोगों ने अनगिनत पेड़ लगाए, मिट्टी के कटाव को रोकने के प्रयास किए, बारिश का पानी रोकने के लिए नहरें बनवाईं। हजारे के प्रयासों ने इस गांव को पूरी दुनिया के सामने मिसाल बना दिया है। यहां के लोग आज अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा यहां बायोगैस और पवन चक्की का भी प्रयोग किया जाता है। गांव की असली ताकत यहां गैर-परंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल करना है। उदाहरण के लिए यहां की सड़कों पर लगी सभी लाइटें सौर ऊर्जा से जलती हैं और प्रत्येक लाइट के लिए एक अलग सोलर पैनल है।

पुश्तैनी ज़मीन का दान

उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास में ख़र्च होता है। संपत्ति के नाम पर उनके पास कपड़ों की कुछ जोड़ियाँ हैं। कोई बैंक बैलेंस नहीं हैं। वह गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख़्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। गाँव में एक तरह का रामराज है। गाँव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है।

सम्मान और पुरस्कार

अण्णा हज़ारे को मिले सम्मान और पुरस्कार[2]
क्रमांक सन सम्मान और पुरस्कार
(1) 6 अप्रैल 1992 पद्म भूषण - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
(2) 24 मार्च 1990 पद्म श्री - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
(3) 19 नवंबर 1986 इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार - तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा।
(4) 1989 महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार
(5) 1988 मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड
(6) 2000 पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड
(7) 2003 ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटी अवार्ड
(8) 1994 विवेकानंद सेवा पुरस्कार
(9) 1996 शिरोमणि अवार्ड
(10) 1997 महावीर पुरस्कार
(11) 1999 दिवालीबेन मेहता अवार्ड
(12) 1998 केयर इन्टरनेशनल अवार्ड
(13) 2000 जाइण्ट्स इन्टरनेशनल अवार्ड
(14) 2000 वासवश्री प्रशस्ति अवार्ड
(15) 1999 नेशनल इंटरग्रेसन अवार्ड
(16) 1998 जनसेवा पुरस्कार
(17) 1998 रोटरी इन्टरनेशनल मानव सेवा पुरस्कार
(18) 2008 विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'
(18) यंग इंडिया अवॉर्ड

अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए तथा प्रतिबद्ध और ईमानदार प्रयास के लिए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में पद्मश्री और 1992 में पद्म विभूषण शामिल है, दिये गये। अमेरिका के केयर इंटरनेशनल, सियोल ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें 25 लाख रुपए का पुरस्कार भी दिया गया, जिसकी पूरी राशि को उन्होंने स्वामी विवेकानंद कृतादयाता निधि में दान दे दिया। उन्होंने अपने राज्य महाराष्ट्र में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित भारत का निर्माण।

पद्मश्री अन्ना हज़ारे महाराष्ट्र के रालेगाँव में ग्राम स्वराज के अपने अनुभव बांटने B. H. U. में आमंत्रित थे। उन्होंने गांधीजी की इस सोच को पूरी मज़बूती से उठाया कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना। व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया।

भ्रष्टाचार के विरोधी

महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। भ्रष्ट प्रशासन की खिलाफवर्जी हो या सूचना के अधिकार का इस्तेमाल, हजारे हमेशा आम आदमी की आवाज उठाने के लिए आगे आते रहे हैं।

अन्ना हजारे ने ठीक ही सोचा था कि भ्रष्टाचार देश के विकास को बाधित कर रहा है। इसके लिए उन्होंने 1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन शुरू किया। उन्होंने पाया कि महाराष्ट्र में 42 वन अधिकारी सरकार को धोखा देकर करोड़ों रुपए की चपत लगा रहे हैं। उन्होंने इसके सबूत सरकार को सौंपे, लेकिन सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि सत्ताधारी दल का एक मंत्री उनके साथ मिला था। इससे व्यथित हजारे ने भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया पद्मश्री पुरस्कार और प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा दिया गया वृक्ष मित्र पुरस्कार लौटा दिया। उन्होंने पुणे के आलंदी गांव में इसी मुद्दे को लेकर भूख हड़ताल कर दी। आखिर में सरकार कुंभकर्णी नींद से जागी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की। हजारे का यह आंदोलन काफी काम आया और 6 मंत्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा जबकि विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तैनात 400 अधिकारियों को वापस उनके घर भेज दिया गया।

हजारे को महसूस हुआ कि सरकार में मौजूद कुछ भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों पर कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा, पूरे सिस्टम को ही बदलना होगा। इसके लिए उन्होंने सूचना का अधिकार कानून के लिए अभियान छेड़ दिया। राज्य सरकार ने इस दिशा में अपनी आंखें बंद रखीं। इसके बाद 1997 में उन्होंने मुंबई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में पहला उग्र आंदोलन किया। युवाओं मे जनजागृति फैलाने के लिए वे राज्यभर में घूमे। सरकार ने उनसे आरटीआई एक्ट बनाने का वादा किया, लेकिन इसे कभी राज्य विधानसभा में नहीं उठाया। हजारे भी नहीं माने और उन्होंने कम से कम 10 बार उग्र प्रदर्शन किए। अंत में वे मुंबई के आजाद मैदान में 9 अगस्त 2003 में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनके 12 दिवसीय भूख हड़ताल के बाद राष्ट्रपति ने आरटीआई एक्ट के मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। साथ ही राज्य सरकार को इसे 2002 से लागू करने के आदेश दिए गए। इसी मसौदे को बाद में देश के आरटीआई एक्ट-2005 को बनाने में आधार दस्तावेज के रूप में प्रयोग किया गया। 12 अक्टूबर 2005 को केंद्र सरकार ने भी इस कानून को लागू कर दिया। अगस्त, 2006 में सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। नतीजतन, सरकार ने संशोधन से हाथ खींच लिए।

[[चित्र:Anna-Hazare-Delhi.jpg|जन लोकपाल क़ानून के लिए आंदोलन के दोरान अण्णा हज़ारे, दिल्ली|thumb|250px|left]] 1995 में अन्ना हज़ारे उस समय चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने तत्कालीन शिवसेना-भाजपा की सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी। सरकार में मंत्री शशिकांत सुतार को अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। उसी समय के रोज़गार मंत्री महादेव शिवणकर को भी सरकार से बाहर होना पड़ा। अण्णा हजारे ने उन पर आय से ज्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था।

युती के कार्यकाल में मंत्री रही शोभाताई फडणविस को भी भ्रष्टाचार के आरोप के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 1998 में सामजिक न्यायमंत्री बबनराव घोलप को ज़मीन घोटाले के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा।

2003 में महाराष्ट्र में कांगेस - एनसीपी गठबंधन सरकार के चार मंत्री सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गवित और पद्म सिंह पाटिल को भी आघाडी सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही अपना पद छोडना पड़ा।

शराब बंदी अभियान, कॉऑपरेटिव घोटाला जैसे कई अहम भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने का श्रेय अन्ना हज़ारे को जाता है। इसी तरह 2005 में अन्ना हज़ारे ने तत्कालीन सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए दबाव डाला था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ अन्ना (अण्णा) हज़ारे ! (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अंधड़ !। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2011
  2. Awards to Anna Hazare (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) annahazare.org। अभिगमन तिथि: 10 अप्रॅल, 2011

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