तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Jaishankar-Prasad....' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 33: Line 33:
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?


नत मस्तक गवर् वहन करते
नत मस्तक गर्व वहन करते
यौवन के घन रस कन झरते
यौवन के घन रस कन झरते
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
मोन बने रहते हो क्यो?
मौन बने रहते हो क्यो?


अधरों के मधुर कगारों में
अधरों के मधुर कगारों में

Revision as of 07:08, 20 August 2011

तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ

तुम कनक किरन के अंतराल में
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?

नत मस्तक गर्व वहन करते
यौवन के घन रस कन झरते
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
मौन बने रहते हो क्यो?

अधरों के मधुर कगारों में
कल कल ध्वनि की गुंजारों में
मधु सरिता सी यह हंसी तरल
अपनी पीते रहते हो क्यों?

बेला विभ्रम की बीत चली
रजनीगंधा की कली खिली
अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल
कलित हो यों छिपते हो क्यों?