देवानंद: Difference between revisions

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बॉलीवुड में कितने ही नायकों का दौर आया और गया। दिलीप कुमार हों या राजेश खन्ना सबका एक दौर था। यहां तक कि अब अमिताभ बच्चन का दौर भी लोगों को ढलता नजर आता है लेकिन बॉलिवुड की दुनिया में एक ऐसा अभिनेता भी है जिसने खुद को कभी उम्र के बंधन में बंधने नहीं दिया और वह है सदाबहार अभिनेता देवानंद। सदाबहार देवानंद का जलवा अब भी बरकरार है। वक्त की करवटें उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। छह दशक से अधिक समय तक रुपहले परदे पर राज करने वाले देवानंद साहब का 26 सितंबर को पङता जन्मदिन है।
बॉलीवुड में कितने ही नायकों का दौर आया और गया। दिलीप कुमार हों या राजेश खन्ना सबका एक दौर था। यहां तक कि अब अमिताभ बच्चन का दौर भी लोगों को ढलता नजर आता है लेकिन बॉलिवुड की दुनिया में एक ऐसा अभिनेता भी है जिसने खुद को कभी उम्र के बंधन में बंधने नहीं दिया और वह है सदाबहार अभिनेता देवानंद। सदाबहार देवानंद का जलवा अब भी बरकरार है। वक्त की करवटें उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। छह दशक से अधिक समय तक रुपहले परदे पर राज करने वाले देवानंद साहब का 26 सितंबर को जन्मदिन पङता है।


कभी अपनी एक फिल्म में उन्होंने एक गीत गुनगुनाया था 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' और शायद यही गीत उनके जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित भी करता है। आज देवानंद 88 साल के हो गए हैं लेकिन एक अभिनेता के तौर पर वह रिटायर नहीं हुए हैं। आने वाले 30 सितंबर को उनकी फिल्म 'चार्टशीट' पर्दे पर आने वाली है।
कभी अपनी एक फिल्म में उन्होंने एक गीत गुनगुनाया था 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' और शायद यही गीत उनके जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित भी करता है। आज देवानंद 88 साल के हो गए हैं लेकिन एक अभिनेता के तौर पर वह रिटायर नहीं हुए हैं। आने वाले 30 सितंबर को उनकी फिल्म 'चार्टशीट' पर्दे पर आने वाली है।

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बॉलीवुड में कितने ही नायकों का दौर आया और गया। दिलीप कुमार हों या राजेश खन्ना सबका एक दौर था। यहां तक कि अब अमिताभ बच्चन का दौर भी लोगों को ढलता नजर आता है लेकिन बॉलिवुड की दुनिया में एक ऐसा अभिनेता भी है जिसने खुद को कभी उम्र के बंधन में बंधने नहीं दिया और वह है सदाबहार अभिनेता देवानंद। सदाबहार देवानंद का जलवा अब भी बरकरार है। वक्त की करवटें उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। छह दशक से अधिक समय तक रुपहले परदे पर राज करने वाले देवानंद साहब का 26 सितंबर को जन्मदिन पङता है।

कभी अपनी एक फिल्म में उन्होंने एक गीत गुनगुनाया था 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' और शायद यही गीत उनके जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित भी करता है। आज देवानंद 88 साल के हो गए हैं लेकिन एक अभिनेता के तौर पर वह रिटायर नहीं हुए हैं। आने वाले 30 सितंबर को उनकी फिल्म 'चार्टशीट' पर्दे पर आने वाली है।

देवानंद का जीवन

देवानंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर ज़िले में 26 सितंबर, 1923 को हुआ था। उनका बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। इस कॉलेज ने फिल्म और साहित्य जगत को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी. आर. चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख्सियतें दी हैं। देव आनंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे। लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास मुंबई आ गए। चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया।

देवानंद का कॅरियर

देव आनंद को पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म ‘हम एक हैं’ से मिला। लेकिन इस फिल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात गुरूदत्त से हुई जो उस समय फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। यह फिल्म चली नहीं। इसके बाद उनका ध्यान गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। उन्होंने अपनी अगली फिल्म बाजी के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरूदत्त को सौंप दी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। इस बीच देव आनंद ने मुनीम जी, दुश्मन, कालाबाजार, सी.आई.डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी जैसी कई सफल फिल्मों में अपनी अदाकारी का जौहर प्रस्तुत किया।

देव आनंद और गुरुदत्त

इसके बाद देव आनंद ने गुरूदत्त के निर्देशन में वर्ष 1952 में फिल्म जाल में भी अभिनय किया। इस फिल्म के निर्देशन के बाद गुरूदत्त ने यह फैसला किया कि वह केवल अपनी निर्मित फिल्मों का निर्देशन करेंगे। बाद में देव आनंद ने अपनी निर्मित फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई विजय आनंद को सौंप दी। विजय आनंद ने देव आनंद की कई फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों में कालाबाजार, तेरे घर के सामने, गाइड, तेरे मेरे सपने, छुपा रूस्तम प्रमुख हैं। फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी। वर्ष 1954 में देव आनंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली।

देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर. के. नारायण से काफी प्रभावित रहा करते थे और उनके उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाना चाहते थे। आर. के. नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हॉलीवुड के सहयोग से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कॅरियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। इन फिल्मों में हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर जैसी फिल्में शामिल हैं।

हाल के सालों में देवानंद अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'नवकेतन' के तले कई फिल्में बनाने में व्यस्त हैं। वह लगातार अपने बैनर के तले फिल्में बना रहे हैं जिसके लीड हीरो वह खुद ही होते हैं। नवकेतन बैनर तले उन्होंने हाल के सालों में 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'अव्वल नंबर' जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं।

देव आनंद ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी. जिसमें वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आंधियां के अलावा हरे रामा हरे कृष्णा, हम नौजवान, अव्वल नंबर, प्यार का तराना, गैंगेस्टर, मैं सोलह बरस की, सेन्सर आदि फिल्में शामिल हैं।

देवानंद एक समय बाद नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारने के लिए मशहूर हो गए। हरे रामा हरे कृष्णा के ज़रिए उन्होंने ज़ीनत अमान की खोज की और टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देव साहब को ही जाता है।

देवानंद और रोमांस

कहते हैं बॉलिवुड में अगर कोई असली रोमांटिक हीरो है तो वह हैं सिर्फ देवानंद। ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी देवानंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है। अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे। चाहे सुरैया हो या जीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे खूब आम हुए। खुद देवानंद भी मानते हैं कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और जीनत को भी वह पसंद करते थे। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देवानंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे। देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज से जिंदगी में काफी परेशानियों से गुजरे।

देवानंद का निजी जीवन

देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। अन्य फिल्मी अभिनेताओं की तरह देवानंद ने भी अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके।

देवानंद और काला कोट

अपने दौर के सबसे सफल अभिनेता देवानंद अपने काले कोट की वजह से बहुत सुर्खियों में आए थे। बात उस समय की है जब देवानंद अपने अलग अंदाज और बोलने के तरीके के लिए काफी मशहूर थे। उनके सफेद कमीज और काले कोट के फैशन को तो जनता ने जैसे अपना ही बना लिया था और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब न्यायालय ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। वजह थी कुछ लडकियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना। दीवानगी में दो-चार लडकियों ने जान दे दी। इससे एक बात साफ थी कि देवानंद का किरदार हो या उनका पहनावा हमेशा सदाबहार ही रहा।

देव आनंद को मिले पुरस्कार

देव आनंद को अपने अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। देव आनंद को सबसे पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म काला पानी के लिए दिया गया। इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।



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