युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (युगपथ पंत का नाम बदलकर युगपथ -पंत कर दिया गया है)
No edit summary
Line 10: Line 10:




{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
Line 16: Line 15:
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =463| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =463| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:कवि]]  
{{सुमित्रानन्दन पंत}}
[[Category:पद्य साहित्य]]
[[Category:सुमित्रानंदन पंत]]
[[Category:आधुनिक साहित्य]]
[[Category:काव्य कोश]]  
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:आधुनिक साहित्य]]
[[Category:सुमित्रानंदन पंत]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 07:15, 31 October 2011

युगपथ सुमित्रानन्दन पंत की 1948 ई. में प्रकाशित रचना है। सुमित्रानन्दन पंत का नवाँ काव्य-संकलन है। इसका पहला भाग 'युगांत' का नवीन और परिवर्द्धित संस्करण है। दूसरे भाग का नाम 'युगांतर' रखा गया है, जिसमें कवि की नवीन रचनाएँ संकलित हैं। अधिकांश रचनाएँ गाँधी जी के निधन पर उनकी पुण्य स्मृति के प्रति श्रद्धांजलियाँ हैं। शेष रचनाओं में कवीन्द्र रवीन्द्र, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और अरविन्द घोष के प्रति लिखी गयी प्रशस्तियाँ भी मिलती हैं। अनेक रचनाओं पर कवि के अरविन्द-साहित्य के अध्ययन की छाप स्पष्ट है। अंतिम रचना 'त्रिवेणी' ध्वनि-रूपक है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती को तीन विचार धाराओं का प्रतिनिधि मानकर उनके संगम में मानव-मात्र के कल्याण की कल्पना की गयी है।

'युगपथ' का आकर्षण

'युगपथ' का सबसे बड़ा आकर्षण 'श्रद्धा के फूल' शीर्षक सोलह रचनाएँ हैं, जिसमें कवि ने बापू के मरण में अभिनव जीवनकल्प की कल्पना की है, और इन्हें अपराजित अहिंसा की ज्योतिर्मयी प्रतिमा के रूप में अंकित किया है। गांधीजी के महान व्यक्तित्व और कृतित्व को सोलह रचनाओं में समेट लेना कठिन है और 'युगांत' तथा 'युगवाणी' में पंत ने उनके तथा उनकी विचारधारा को कवि-हृदय की अपार सहानुभूति देकर चित्रित किया है। परंतु इन सोलह रचनाओं में बापू को श्रद्धांजलि देते हुए कवि काव्य, कला और संवेदना के उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता है फिर शोक-भावना से अभिभूत, परंतु अंत में वह उनकी मृत्यु को 'प्रथम अहिंसक मानव' के बलिदान के रूप में चित्रित कर उनकी महामानवता की विजय घोषित करता है। वह शुभ्र पुरुष (स्वर्ण पुरुष) के रूप में बापू का अभिनन्दन करता और उन्हें भारत की आत्मा मानकर देश को दिव्य जागरण के लिए आहूत करता है। यह सोलह प्रशास्ति-गीतियाँ कवि की 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' साधना की प्रतिनिधि हैं।

भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति पर उद्बोधन

संकलन की कुछ अन्य रचनाएँ भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति पर उद्बोधन अथवा जय-गीत के रूप में सामने आती है। कवि भारत को विश्व की स्वाधीन चेतना का प्रतीक मानता है और उसके स्वातंत्र्य में युग-परिवर्तन की कल्पना करता है। राष्ट्रोन्नति का पर्व उसके लिए 'दीपपर्व' बन जाता है और 'दीपलोक' एवं 'दीपश्री' प्रभृति रचनाओं में वह मृण्मय दीपों में भू-चेतना की निष्कम्प शिखा जलती देखता है।

सबसे सशक्त रचना

गांधीजी की पुण्यस्मृति में लिखी रचनाओं के बाद इस संकलन की सबसे सशक्त रचना 'कवीन्द्र रवीन्द्र के प्रति' है। कविता काफी लम्बी है परंतु कवि अंत तक भावना और विचरणा की उच्च भूमि पर स्थित रह सका है।

भारत की सांस्कृतिक मेघा में आस्था

रचना के अंत में कवि अंतर्मन की सूक्ष्म संगठन की दुहाई देता हुआ भारत की सांस्कृतिक मेघा के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है और कवीन्द्र के आशीर्वाद का आकांक्षी बनता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 463।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख