श्रृंगार निर्णय: Difference between revisions
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Revision as of 06:22, 31 October 2011
भिखारीदास ने 'श्रृंगार निर्णय' की रचना सन 1751 ई. में अरबर (प्रतापगढ़) में की थी। इसकी हस्तलिखित प्रति प्रतापगढ़ नरेश के पुस्तकालय में है और इसका प्रकाशन गुलशन-ए-अहमदी प्रेस, प्रतापगढ़ सन (1892 ई.), भारत जीवन प्रेस, बनारस (1894 ई.) तथा बिहार बन्धु प्रेस, बाँकीपुर (1893 ई.) से हुआ है। जैसा कि नाम से ही प्रकट है, यह श्रृंगार प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें नायक-नायिका भेद तथा संयोग-वियोग आदि का वर्णन है। इसमें 328 पद्य हैं।
- विषय
लेखक ने मतिराम के 'रसराज' के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की है। वैसे इसमें दास जी की न तो वह विद्वत्ता, जो 'काव्य-निर्णय' में दीख पड़ती है, कहीं प्रकट होती है, न ही किसी गम्भीर अध्ययन की झलक दिखाई देती है। फिर भी काव्य में नायक-नायिका के वर्णन की आवश्यकता तथा पति की अनुकूल स्थिति की उपयोगिता की उन्होंने अच्छी विवेचना की है। दूसरे, उन्होंने नख-शिख का वर्णन न करके नायिका के सौन्दर्य वर्णन द्वारा ही व्याज से नखशिख का वर्णन कर दिया है। इसी प्रकार परकीया नायिका का विभाजन उन्होंने कई आधारों पर किया है, किंतु स्वकीया के भेद जैसे औरों ने किये हैं, वैसे ही हैं। इन सबका आलम्बन विभाव के अंतर्गत वर्णन करते हुए उन्होंने विरही के भेदों का विश्लेषण किया है। संयोग श्रृंगार की चर्चा करते हुए उन्होंने उद्दीपन विभाग के अंतर्गत सखी, स्थायी आदि के नाम मात्र गिनाकर उदाहरण दे दिये हैं, हावों का भी चलता सा वर्णन कर दिया है। इसी प्रकार वियोग वर्णन में पूर्वानुराग, दर्शन, स्वप्न, छाया, माया, चित्र, श्रुति, विरह, मान और प्रवास तथा इन सभी में विरह की दस दशा मानते हैं। इसके अनुसार निराशा की अंतिम परिणति ही मृत्यु का कारण होती है।
- महत्व
सम्पूर्ण ग्रंथ काव्यशास्त्र की विवेचना की दृष्टि से उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कि 'काव्य-निर्णय'। हाँ, उदाहरण इसमें इतने पर्याप्त हैं कि कहीं-कहीं लक्षण न देकर केवल उदाहरण ही से काम चला लिया गया है। कविता की दृष्टि से इस ग्रंथ का रीतिकालीन ग्रंथों में प्रमुख स्थान है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 599।