होयसल मूर्तिकला शैली: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Kedareshawara-Tempel-Halebid-1.jpg|thumb|केदारेश्वर मंदिर, हलेबिड]]
'''होयसल शैली''' (1050-1300ई) का विकास [[कर्नाटक]] के दक्षिण क्षेत्र में हुआ। ऐसा कहा जा सकता है कि होयसल कला आरंभ [[ऐहोल]], [[बादामी]] और [[पट्टदकल]] के प्रारंभिक [[चालुक्य]] कालीन मंदिरों में हुआ, लेकिन [[मैसूर]] क्षेत्र में विकसित होने के पश्चात ही इसका विशिष्ट स्वरूप प्रदर्शित हुआ, जिसे होयसल शैली के नाम से जाना गया। अपनी प्रसिद्धि के चरमकाल में इस शैली की एक प्रमुख विशेषता स्थापत्य की योजना और सामान्य व्यवस्थापन से जुड़ी है।
==होयसल मंदिर==
{{tocright}}
{{tocright}}
होयसल शैली (1050-1300ई) का विकास [[कर्नाटक]] के दक्षिण क्षेत्र में हुआ। ऐसा कहा जा सकता है कि होयसल कला आरंभ [[ऐहोल]], [[बादामी]] और [[पट्टदकल]] के प्रारंभिक [[चालुक्य]] कालीन मंदिरों में हुआ, लेकिन [[मैसूर]] क्षेत्र में विकसित होने के पश्चात ही इसका विशिष्ट स्वरूप प्रदर्शित हुआ, जिसे होयसल शैली के नाम से जाना गया। अपनी प्रसिद्धि के चरमकाल में इस शैली की एक प्रमुख विशेषता स्थापत्य की योजना और सामान्य व्यवस्थापन से जुड़ी है।
==होयसल मंदिर==
वास्तविक वास्तुयोजना के हिसाब से होयसल मंदिर केशव मन्दिर और हलेबिड के मन्दिर [[सोमनाथपुर मैसूर|सोमनाथपुर]] और अन्य दूसरों से भिन्न हैं। स्तम्भ वाले कक्ष सहित अंतर्गृह के स्थान पर इसमें बीचो बीच स्थित स्तंभ वाले कक्ष के चारों तरफ बने अनेक मंदिर हैं, जो तारे की शक्ल में बने हैं।  
वास्तविक वास्तुयोजना के हिसाब से होयसल मंदिर केशव मन्दिर और हलेबिड के मन्दिर [[सोमनाथपुर मैसूर|सोमनाथपुर]] और अन्य दूसरों से भिन्न हैं। स्तम्भ वाले कक्ष सहित अंतर्गृह के स्थान पर इसमें बीचो बीच स्थित स्तंभ वाले कक्ष के चारों तरफ बने अनेक मंदिर हैं, जो तारे की शक्ल में बने हैं।  


Line 10: Line 11:


====होयसलेश्वर मन्दिर====
====होयसलेश्वर मन्दिर====
होयसलों की राजधानी [[हलेबिड]] में सबसे प्रमुख भवन होयसलेश्वर मन्दिर है। [[शिव]] को समर्पित है। इसे अलंकृत निर्माण शैली का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। मान्यता है कि इसका निर्माण कार्य 1121 ई. में प्रारंभ हुआ था और विष्णु वर्धन के पुत्र और उसके उत्तराधिकारी नरसिंह प्रथम के वास्तुकारों ने 1160 ई. में इसे पूरा किया था। इसमें दो एकसमान मंदिर हैं, जो एक ही विशाल आधार मंच पर बने हैं। दोनों क्रुसाकार दीर्घा के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं।  
होयसलों की राजधानी [[हलेबिड]] में सबसे प्रमुख भवन होयसलेश्वर मन्दिर है। [[शिव]] को समर्पित है। इसे अलंकृत निर्माण शैली का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। मान्यता है कि इसका निर्माण कार्य 1121 ई. में प्रारंभ हुआ था और विष्णु वर्धन के पुत्र और उसके उत्तराधिकारी नरसिंह प्रथम के वास्तुकारों ने 1160 ई. में इसे पूरा किया था। [[चित्र:Hoysala-Sculpture.jpg|thumb|300px|होयसल मूर्तिकला शैली]] इसमें दो एकसमान मंदिर हैं, जो एक ही विशाल आधार मंच पर बने हैं। दोनों क्रुसाकार दीर्घा के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं।  
====सोमनाथपुर का मंदिर====
====सोमनाथपुर का मंदिर====
नरसिंह तृतीय द्वारा निर्मित मंदिरों में सोमनाथपुर का प्रसिद्ध केशव मंदिर है<ref>जिसे सोमनाथ भी कहा जाता है</ref> यह अलंकृत शैली में बना एक वैष्णव मंदिर है।  
नरसिंह तृतीय द्वारा निर्मित मंदिरों में सोमनाथपुर का प्रसिद्ध केशव मंदिर है<ref>जिसे सोमनाथ भी कहा जाता है</ref> यह अलंकृत शैली में बना एक वैष्णव मंदिर है।  

Revision as of 07:13, 28 June 2012

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

thumb|केदारेश्वर मंदिर, हलेबिड होयसल शैली (1050-1300ई) का विकास कर्नाटक के दक्षिण क्षेत्र में हुआ। ऐसा कहा जा सकता है कि होयसल कला आरंभ ऐहोल, बादामी और पट्टदकल के प्रारंभिक चालुक्य कालीन मंदिरों में हुआ, लेकिन मैसूर क्षेत्र में विकसित होने के पश्चात ही इसका विशिष्ट स्वरूप प्रदर्शित हुआ, जिसे होयसल शैली के नाम से जाना गया। अपनी प्रसिद्धि के चरमकाल में इस शैली की एक प्रमुख विशेषता स्थापत्य की योजना और सामान्य व्यवस्थापन से जुड़ी है।

होयसल मंदिर

वास्तविक वास्तुयोजना के हिसाब से होयसल मंदिर केशव मन्दिर और हलेबिड के मन्दिर सोमनाथपुर और अन्य दूसरों से भिन्न हैं। स्तम्भ वाले कक्ष सहित अंतर्गृह के स्थान पर इसमें बीचो बीच स्थित स्तंभ वाले कक्ष के चारों तरफ बने अनेक मंदिर हैं, जो तारे की शक्ल में बने हैं।

कई मंदिरों में दोहरी संरचना पायी जाती है। इसके प्रमुख अंग दोहैं और नियोजन में प्राय: तीन चार और यहाँ तक कि पांच भी हैं। हर गर्भगृह के ऊपर बने शिखर को जैसे-जैसे ऊपर बढ़ाया गया है, उसमें आड़ी रेखाओं और सज्जा से नयापन लाया गया हैं, जो शिखर को कई स्तरों में बांटते हैं और यह धारे-धीरे कम घेरे वाला होता जाता है। वस्तुत: होयसल मंदिर की एक विशिष्टता संपूर्ण भवन की सापेक्ष लघुता है।

केशव मन्दिर

एक महत्वपूर्ण स्मारक हासन ज़िले में बेलूर स्थित केशव मंदिर है। इसका निर्माण विष्णुवर्धन ने करवाया था। तलकाड़ में चोल शासकों पर उसकी विजय के उपलक्ष्य में निर्मित इस मंदिर के इष्ट देव को- वस्तुत अपने केशव रूप में विष्णु ही- विजय नारायण कहा गया। मन्दिर के मुख्य भवन में हैं- सामान्य कक्ष, अंतर्गृह, जो द्वारमंडप से जुड़ा है, एक खुला स्तंभ मंडप और केंद्रीय कक्ष। तथापि 1117 ई. में बना बेलूर स्थित केशव मंदिर अपनी अधिसंरचना के बिना भी[1] अपने उत्कृष्ट सौंदर्य को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। इस मंदिर की कुछ अतिप्रशंसित मूर्तियां, जिन्हें कन्नड़ भाषा में 'मदनकाइस' कहा जाता है, को मंडप की प्रलम्ब छत के नीचे रखा गया है। मन्दिर का आंतरिक भाग भी उतना ही भव्य है, जितना बाहरी। मंडप के हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। कुछ पर आकृतियां हैं तो कुछ पर अन्य रूप तथा कुछ सहज गोलाई लिए हुए हैं। मंदिर में प्रवेश मार्ग के दोनों तरफ विशाल वैष्णव द्वारपाल हैं।

होयसलेश्वर मन्दिर

होयसलों की राजधानी हलेबिड में सबसे प्रमुख भवन होयसलेश्वर मन्दिर है। शिव को समर्पित है। इसे अलंकृत निर्माण शैली का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। मान्यता है कि इसका निर्माण कार्य 1121 ई. में प्रारंभ हुआ था और विष्णु वर्धन के पुत्र और उसके उत्तराधिकारी नरसिंह प्रथम के वास्तुकारों ने 1160 ई. में इसे पूरा किया था। thumb|300px|होयसल मूर्तिकला शैली इसमें दो एकसमान मंदिर हैं, जो एक ही विशाल आधार मंच पर बने हैं। दोनों क्रुसाकार दीर्घा के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं।

सोमनाथपुर का मंदिर

नरसिंह तृतीय द्वारा निर्मित मंदिरों में सोमनाथपुर का प्रसिद्ध केशव मंदिर है[2] यह अलंकृत शैली में बना एक वैष्णव मंदिर है।

होयसल शैली की विशेषताएँ

वास्तुशिल्प नियोजन के अतिरिक्त होयसल शैली की कुछ अन्य विशेषताएँ भी थीं। इसमें बलुई पत्थर के स्थान पर पटलित या स्तारित चट्टान का प्रयोग किया गया क्योंकि इस पर तक्षण कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है। शिल्पकारों द्वारा एकाश्मक अखंडित चट्टान को बड़ी लेथ पर घुमाकर इच्छित आकार देने की क्रिया के चलते स्तंभों को विशिष्ट रूप मिल जाता था और इन मन्दिरों को निरंतर समृद्ध होते वास्तु अलंकरण से अलंक़ृत किया भी जाता था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिस रूप में यह आज खड़ा है
  2. जिसे सोमनाथ भी कहा जाता है

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख