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[[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]]
          "और सब कुछ तो ठीक है माँ, लेकिन मुझे दूसरे छात्रों के अनुपात में चार गुना दंड दिया जाता है। जबकि दूसरे छात्रों में से कोई भी राजकुमार नहीं है। सभी हमारे राज्य की प्रजा ही हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि जैसे ही आचार्य विद्याधर को मेरी किसी भूल का पता चलता है, तो वे मुझे दूसरे छात्रों की अपेक्षा दोगुना, कभी कभी तीन गुना और कभी चार गुना दंड देते हैं।" [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मानसून का शंख]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012|कहता है जुगाड़ सारा ज़माना]]


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साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012

शर्मदार की मौत
          "और सब कुछ तो ठीक है माँ, लेकिन मुझे दूसरे छात्रों के अनुपात में चार गुना दंड दिया जाता है। जबकि दूसरे छात्रों में से कोई भी राजकुमार नहीं है। सभी हमारे राज्य की प्रजा ही हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि जैसे ही आचार्य विद्याधर को मेरी किसी भूल का पता चलता है, तो वे मुझे दूसरे छात्रों की अपेक्षा दोगुना, कभी कभी तीन गुना और कभी चार गुना दंड देते हैं।" पूरा पढ़ें

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