घाघरा: Difference between revisions

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*घाघरे में नीचे कपड़े को मोड़ने की जगह संजाब या पट्टी लगाते है और ऊपर मगजी।  
*घाघरे में नीचे कपड़े को मोड़ने की जगह संजाब या पट्टी लगाते है और ऊपर मगजी।  
*राजा, सामंत वर्ग और सम्पन्न परिवार की स्त्रियाँ मलमल, साटन और [[किमखाब]] के घाघरे पहनती थीं।  
*राजा, सामंत वर्ग और सम्पन्न परिवार की स्त्रियाँ मलमल, साटन और [[किमखाब]] के घाघरे पहनती थीं।  
*मलमल के घाघरों को रगबा या छ्पवाकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता, फिर गोटा लगाते, जमीन में गोखरू या गोटे का जाल होता है।  
*मलमल के घाघरों को रगबा या छ्पवाकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता, फिर गोटा लगाते, ज़मीन में गोखरू या गोटे का जाल होता है।  
*कभी-कभी केवल जोड़ो पर ही पतला गोटा लगाते थे। राजस्थान, [[पंजाब]] और [[हिमाचल प्रदेश]] में गोटा लगाने का बहुत रिवाज था। ये विशुद्ध [[चांदी]] के तार के बनते थे और स्थियाँ बहुत सम्भाल कर रखतीं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनका उपयोग होता था।  
*कभी-कभी केवल जोड़ो पर ही पतला गोटा लगाते थे। राजस्थान, [[पंजाब]] और [[हिमाचल प्रदेश]] में गोटा लगाने का बहुत रिवाज था। ये विशुद्ध [[चांदी]] के तार के बनते थे और स्थियाँ बहुत सम्भाल कर रखतीं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनका उपयोग होता था।  



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thumb|250px|घाघरा घाघरा कमर से एड़ी तक लम्बी स्कर्ट की तरहा होता है। कलियों को जोड़ कर या चुन्नट के द्वारा इसे ऊपर संकरा और नीचे चौड़ा घेरदार बनाया जाता है। घाघरे ऊँचे रखे जाते है ताकि पाँवों के गहने दिखाई देते रहें।

  • पहले घाघरे अधिक घेरदार नहीं होता था किंतु उन्नीसवीं शताब्दी तक आते-आते इसका घेर बहुत बढ़ गया और कलियों की संख्या सम्पन्नता का परिचायक हो गई।
  • राजस्थान में 80 कली के घाघरे पर गीत गाए जाने लगे।
  • घाघरे में नीचे कपड़े को मोड़ने की जगह संजाब या पट्टी लगाते है और ऊपर मगजी।
  • राजा, सामंत वर्ग और सम्पन्न परिवार की स्त्रियाँ मलमल, साटन और किमखाब के घाघरे पहनती थीं।
  • मलमल के घाघरों को रगबा या छ्पवाकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता, फिर गोटा लगाते, ज़मीन में गोखरू या गोटे का जाल होता है।
  • कभी-कभी केवल जोड़ो पर ही पतला गोटा लगाते थे। राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में गोटा लगाने का बहुत रिवाज था। ये विशुद्ध चांदी के तार के बनते थे और स्थियाँ बहुत सम्भाल कर रखतीं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनका उपयोग होता था।


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