लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions

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''''लोकायतन' कवि पन्त''' का [[महाकाव्य]] है। [[सुमित्रानन्दन पंत]] की कृति '''लोकायतन''' में भारतीय जीवन की, स्वतंत्रता के पहले और बाद की कथा को काव्य रूप दिया गया है। यह दो खण्डों में विभाजित है-
''''लोकायतन''' कवि [[सुमित्रानन्दन पंत]] का [[महाकाव्य]] है। पंत जी की कृति 'लोकायतन' में भारतीय जीवन की स्वतंत्रता के पहले और बाद की कथा को काव्य रूप दिया गया है। पंत जी को अपने [[माता]]-[[पिता]] के प्रति असीम-सम्मान था। इसलिए उन्होंने अपने दो महाकाव्यों में से एक महाकाव्य 'लोकायतन' को अपने पूज्य पिता को और दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' अपनी स्नेहमयी माता को, जो इन्हें जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं, समर्पित किया था।
==खण्ड विभाजन==
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#बाह्य परिवेश  
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#अंतश्चैतन्य।
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इस प्रबन्ध की पट भूमि बहुत ही व्यापक है जिसमें स्वाधीनता के पहले से लेकर उत्तर स्वप्न तक का विशाल भारतीय जीवन अंतर्भुक्त हो उठा है। पंत जी युग जीवन के यथार्थ के हर पहलू को समझते थे, देश-विदेश के समस्त परिवर्तनों को, बदले मूल्यों को, पुरातन और नवीन के संघर्षों को, भौतिकता और आध्यात्मिकता के [[छन्द|छन्दों]] को उन्होंने परखा था। प्रबन्ध को देखकर ऐसा लगता है कि यथार्थ दर्शन और आदर्श कल्पना, ये दोनों अध्ययन और जानकारी के परिणाम के रूप में उनमें संयुक्त हैं।
कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है। 'लोकायतन' में '''गाँधीवाद'''  प्रभाव विद्यमान है।


इस प्रबन्ध की पट भूमि बहुत ही व्यापक है जिसमें स्वाधीनता के पहले से लेकर उत्तर स्वप्न तक का विशाल भारतीय जीवन अंतर्भुक्त हो उठा है। पंत जी युग जीवन के यथार्थ के हर पहलू को समझते थे, देश-विदेश के समस्त परिवर्तनों को, बदले मूल्यों को, पुरातन और नवीन के संघर्षों को, भौतिकता और आध्यात्मिकता के [[छन्द|छन्दों]] को उन्होंने परखा था। प्रबन्ध को देखकर ऐसा लगता है कि यथार्थ दर्शन और आदर्श कल्पना, ये दोनों अध्ययन और जानकारी के परिणाम के रूप में उनमें संयुक्त हैं। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है। 'लोकायतन' में '''गाँधीवाद'''  प्रभाव विद्यमान है।


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Revision as of 11:22, 13 September 2013

'लोकायतन कवि सुमित्रानन्दन पंत का महाकाव्य है। पंत जी की कृति 'लोकायतन' में भारतीय जीवन की स्वतंत्रता के पहले और बाद की कथा को काव्य रूप दिया गया है। पंत जी को अपने माता-पिता के प्रति असीम-सम्मान था। इसलिए उन्होंने अपने दो महाकाव्यों में से एक महाकाव्य 'लोकायतन' को अपने पूज्य पिता को और दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' अपनी स्नेहमयी माता को, जो इन्हें जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं, समर्पित किया था।

खण्ड विभाजन

यह दो खण्डों में विभाजित है-

  1. बाह्य परिवेश
  2. अंतश्चैतन्य

इस प्रबन्ध की पट भूमि बहुत ही व्यापक है जिसमें स्वाधीनता के पहले से लेकर उत्तर स्वप्न तक का विशाल भारतीय जीवन अंतर्भुक्त हो उठा है। पंत जी युग जीवन के यथार्थ के हर पहलू को समझते थे, देश-विदेश के समस्त परिवर्तनों को, बदले मूल्यों को, पुरातन और नवीन के संघर्षों को, भौतिकता और आध्यात्मिकता के छन्दों को उन्होंने परखा था। प्रबन्ध को देखकर ऐसा लगता है कि यथार्थ दर्शन और आदर्श कल्पना, ये दोनों अध्ययन और जानकारी के परिणाम के रूप में उनमें संयुक्त हैं। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा उत्तर प्रदेश शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है। 'लोकायतन' में गाँधीवाद प्रभाव विद्यमान है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 553।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख