पंडित विश्वंभर नाथ: Difference between revisions

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*उनके पिता 'बद्रीनाथ' उच्च सरकारी पद पर थे।  
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*विश्वंभर नाथ की आरंभिक शिक्षा [[हिन्दी]], [[उर्दू]], [[अरबी भाषा|अरबी]] और [[फारसी भाषा|फारसी]] भाषाओं में घर पर हुई।  
*विश्वंभर नाथ की आरंभिक शिक्षा [[हिन्दी]], [[उर्दू]], [[अरबी भाषा|अरबी]] और [[फारसी भाषा|फारसी]] भाषाओं में घर पर हुई।  
*1846 ई. में वे [[अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए स्कूल गए। इस [[भाषा]] पर शीघ्र ही उन्होंने इतना अधिकार कर लिया कि परीक्षा से पहले ही उन्हें आरा. [[बिहार]] के [[अंग्रेज़]] जज का सहायक बनाकर भेज दिया गया।  
*1846 ई. में वे [[अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए स्कूल गए। इस [[भाषा]] पर शीघ्र ही उन्होंने इतना अधिकार कर लिया कि परीक्षा से पहले ही उन्हें [[बिहार]] के [[अंग्रेज़]] जज का सहायक बनाकर भेज दिया गया।  
*[[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के स्वतंत्रता संग्राम]] के बाद विश्वंभर नाथ कुछ दिन पुलिस में रहे और उसके बाद क़ानून की परीक्षा पास करके वकालत करने लगे। फिर उन्होंने वकालत भी छोड़ दी और पूर्ण रूप से सार्वजनिक कार्यों में लग गए।  
*[[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के स्वतंत्रता संग्राम]] के बाद विश्वंभर नाथ कुछ दिन पुलिस में रहे और उसके बाद क़ानून की परीक्षा पास करके वकालत करने लगे। फिर उन्होंने वकालत भी छोड़ दी और पूर्ण रूप से सार्वजनिक कार्यों में लग गए।  
*उस समय के उनके साथियों में काला कांकर के राजा रामपाल सिंह, बाबू गंगाप्रसाद वर्मा, पंडित अयोध्या नाथा, बिशन नारायण दर आदि प्रमुख थे।  
*उस समय के उनके साथियों में काला कांकर के राजा रामपाल सिंह, बाबू गंगाप्रसाद वर्मा, पंडित अयोध्या नाथा, बिशन नारायण दर आदि प्रमुख थे।  
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पंडित विश्वंभर नाथ (जन्म 7 नवम्बर, 1832 ई.- निधन 1908 ई.) एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कार्यकर्ता थे।

संक्षिप्त परिचय

  • पंडित विश्वंभर नाथ का जन्म 7 नवम्बर, 1832 ई. को दिल्ली में एक सम्पन्न और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।
  • उनके पिता 'बद्रीनाथ' उच्च सरकारी पद पर थे।
  • विश्वंभर नाथ की आरंभिक शिक्षा हिन्दी, उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं में घर पर हुई।
  • 1846 ई. में वे अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए स्कूल गए। इस भाषा पर शीघ्र ही उन्होंने इतना अधिकार कर लिया कि परीक्षा से पहले ही उन्हें बिहार के अंग्रेज़ जज का सहायक बनाकर भेज दिया गया।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद विश्वंभर नाथ कुछ दिन पुलिस में रहे और उसके बाद क़ानून की परीक्षा पास करके वकालत करने लगे। फिर उन्होंने वकालत भी छोड़ दी और पूर्ण रूप से सार्वजनिक कार्यों में लग गए।
  • उस समय के उनके साथियों में काला कांकर के राजा रामपाल सिंह, बाबू गंगाप्रसाद वर्मा, पंडित अयोध्या नाथा, बिशन नारायण दर आदि प्रमुख थे।
  • कांग्रेस से उनका संबंध 1888 ई. में हुआ। 1892 ई. की लखनऊ कांग्रेस और 1899 की इलाहाबाद कांग्रेस के स्वागताध्यक्ष वही थे।
  • वे 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' और 'उत्तर प्रदेश कौंसिल' के भी सदस्य रहे।
  • उस समय के नेताओं की भांति उनका अंग्रेजों की न्यायप्रियता पर बड़ा विश्वास था, लेकिन शांत राजनीतिज्ञ गतिविधियां रोकने के लिए जो क़ानून बनाए जाते उनके वे विरोधी थे।
  • अत्यंत कुशल वक्ता पंडित विश्वंभर नाथ सांप्रदायिक सौहार्द के समर्थक थे।
  • 1908 ई. में उनका देहांत हो गया।

 



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 449।

बाहरी कड़ियाँ

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