गीता रहस्य: Difference between revisions

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इस पुस्तक की रचना [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] ने माण्डला जेल ([[बर्मा]]) में की थी। जब भारत पर ब्रिटिश शासन था और [[1910]] के [[नवम्बर]] की शुरुआत थी, तब [[बर्मा]] की माण्डला जेल में बाल गंगाधर तिलक कैद थे। वहीं पर एक सुबह उन्होंने महसूस किया कि वर्षों से जिस 'गीता' पर वह लिखना चाहते थे, वह समय आ गया है। अपने धुआंधार राजनीतिक जीवन से उन्हें कोई वक्त मिल नहीं पाता था। लेकिन जब भी वह जेल में होते, तो गीता उनके जेहन में चली आती। वह गीता से बेहद प्रभावित थे, लेकिन उसकी व्याख्या को लेकर परेशान रहते थे। वे अपने समय और समाज के मुताबिक गीता को देखना और समझना चाहते थे। एक थके हुए ग़ुलाम समाज को जगाने के लिए वह गीता को संजीवनी बनाना चाहते थे। जब उन्हें तीसरी बड़ी जेल हुई, तो उन्होंने उस पर काम शुरू कर दिया। वह काम, जिसकी नींव बहुत पहले शायद उनके मन पर पड़ गई थी। सोलह [[वर्ष]] की उम्र में तिलक ने अपने मरणासन्न [[पिता]] को [[मराठी भाषा|मराठी]] में '[[गीता]]' सुनाई थी। तभी से गीता को लेकर एक किस्म का लगाव हो गया था। 'गीता रहस्य' को बाल गंगाधर तिलक ने महज पांच [[महीने]] में पेंसिल से ही लिख डाला था।  
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==कर्मयोग की वृहद व्याख्या==
==कर्मयोग की वृहद व्याख्या==
इसमें उन्होंने '[[श्रीमद्भगवद गीता]]' के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि [[गीता]] चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है, जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठकर पुस्तक पढ़ने लगते हैं और यह संसारी लोगों के लिए कोई प्रारंभिक शिक्षा है। इसमें यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में तिलक ने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।
इसमें उन्होंने '[[श्रीमद्भगवद गीता]]' के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि [[गीता]] चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है, जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय ख़ाली बैठकर पुस्तक पढ़ने लगते हैं और यह संसारी लोगों के लिए कोई प्रारंभिक शिक्षा है। इसमें यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में तिलक ने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।
====गाँधीजी का कथन====
====गाँधीजी का कथन====
[[महात्मा गाँधी]] तो 'गीता' के जबर्दस्त प्रशंसक थे। उसे वह अपनी माता कहते थे। उन्होंने भी 'गीता रहस्य' को पढ़कर कहा था कि- "गीता पर तिलकजी की यह [[टीका]] ही उनका शाश्वत स्मारक है।"
[[महात्मा गाँधी]] तो 'गीता' के जबर्दस्त प्रशंसक थे। उसे वह अपनी माता कहते थे। उन्होंने भी 'गीता रहस्य' को पढ़कर कहा था कि- "गीता पर तिलकजी की यह [[टीका]] ही उनका शाश्वत स्मारक है।"

Revision as of 11:17, 5 July 2017

गीता रहस्य
लेखक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
मूल शीर्षक गीता रहस्य
देश भारत
भाषा मराठी
विषय बाल गंगाधर तिलक ने इस पुस्तक में 'श्रीमद्भगवद गीता' के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की है। इस ग्रंथ में तिलक ने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।
विशेष इस पुस्तक की रचना बाल गंगाधर तिलक ने माण्डला जेल (बर्मा) में की थी। महात्मा गाँधी तो 'गीता' के जबर्दस्त प्रशंसक थे। उसे वह अपनी माता कहते थे।

गीता रहस्य नामक पुस्तक की रचना भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने की थी। यह पुस्तक भगवान श्रीकृष्ण के निष्काम कर्मयोग के विशाल उपवन से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यों के सुन्दर गुणों का एक गुच्छा है। इस गुच्छे की व्याख्या विभिन्न महापुरुषों द्वारा समय-समय पर की गई, किंतु इसकी जितनी सरल और स्पष्ट व्याख्या व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बाल गंगाधर तिलक ने की, शायद ही अभी तक किसी अन्य महापुरुष ने की हो।

रचना काल

इस पुस्तक की रचना लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने माण्डला जेल (बर्मा) में की थी। जब भारत पर ब्रिटिश शासन था और 1910 के नवम्बर की शुरुआत थी, तब बर्मा की माण्डला जेल में बाल गंगाधर तिलक कैद थे। वहीं पर एक सुबह उन्होंने महसूस किया कि वर्षों से जिस 'गीता' पर वह लिखना चाहते थे, वह समय आ गया है। अपने धुआंधार राजनीतिक जीवन से उन्हें कोई वक्त मिल नहीं पाता था। लेकिन जब भी वह जेल में होते, तो गीता उनके जेहन में चली आती। वह गीता से बेहद प्रभावित थे, लेकिन उसकी व्याख्या को लेकर परेशान रहते थे। वे अपने समय और समाज के मुताबिक गीता को देखना और समझना चाहते थे। एक थके हुए ग़ुलाम समाज को जगाने के लिए वह गीता को संजीवनी बनाना चाहते थे। जब उन्हें तीसरी बड़ी जेल हुई, तो उन्होंने उस पर काम शुरू कर दिया। वह काम, जिसकी नींव बहुत पहले शायद उनके मन पर पड़ गई थी। सोलह वर्ष की उम्र में तिलक ने अपने मरणासन्न पिता को मराठी में 'गीता' सुनाई थी। तभी से गीता को लेकर एक किस्म का लगाव हो गया था। 'गीता रहस्य' को बाल गंगाधर तिलक ने महज पांच महीने में पेंसिल से ही लिख डाला था।

कर्मयोग की वृहद व्याख्या

इसमें उन्होंने 'श्रीमद्भगवद गीता' के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि गीता चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है, जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय ख़ाली बैठकर पुस्तक पढ़ने लगते हैं और यह संसारी लोगों के लिए कोई प्रारंभिक शिक्षा है। इसमें यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में तिलक ने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।

गाँधीजी का कथन

महात्मा गाँधी तो 'गीता' के जबर्दस्त प्रशंसक थे। उसे वह अपनी माता कहते थे। उन्होंने भी 'गीता रहस्य' को पढ़कर कहा था कि- "गीता पर तिलकजी की यह टीका ही उनका शाश्वत स्मारक है।"

तिलक का उद्देश्य

एक दौर में लगता था कि शायद ब्रिटिश हुकूमत बाल गंगाधर तिलक की इस रचना को जब्त ही कर लेगी, लेकिन उन्हें अपनी याददाश्त पर बहुत भरोसा था। इसीलिए अपने बन्धुओं से उन्होंने कहा था- "डरने का कोई कारण नहीं। हालांकि बहियां सरकार के पास हैं। लेकिन तो भी ग्रंथ का एक-एक शब्द मेरे दिमाग में है। विश्राम के समय अपने बंगले में बैठकर मैं उसे फिर से लिख डालूंगा।" तिलक जी ने 'गीता रहस्य' लिखी ही इसलिए थी कि वह मान नहीं पा रहे थे कि गीता जैसी किताब महज मोक्ष की ओर ले जाती है। उसमें सिर्फ संसार छोड़ देने की अपील है। वह तो कर्म को केंद्र में लाना चाहते थे। वही शायद उस वक्त की मांग थी और तिलक का उद्देश्य भी। जब देश ग़ुलाम हो, तब आप अपने लोगों से मोक्ष की बात नहीं कर सकते। उन्हें तो कर्म में लगाना होता है और यही बाल कार्य गंगाधर तिलक ने किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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