एकहि साधै सब सधै -रहीम: Difference between revisions

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रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
;अर्थ
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एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।
एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की ज़रूरत नहीं होती है।


{{लेख क्रम3| पिछला=माली आवत देख के -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन वे नर मर गये -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=माली आवत देख के -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन वे नर मर गये -रहीम}}

Latest revision as of 10:46, 2 January 2018

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥

अर्थ

एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की ज़रूरत नहीं होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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