धनि रहीम जल पंक को -रहीम: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="bgrahimdv"> | <div class="bgrahimdv"> | ||
धनि ‘रहीम’ जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।<br /> | धनि ‘रहीम’ जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।<br /> | ||
उदधि बड़ाई कौन हैं, | उदधि बड़ाई कौन हैं, जगत् पियासो जाय ॥ | ||
;अर्थ | ;अर्थ |
Latest revision as of 13:52, 30 June 2017
धनि ‘रहीम’ जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हैं, जगत् पियासो जाय ॥
- अर्थ
कीचड़ का भी पानी धन्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी तृप्त हो जाते हैं। उस समुद्र की क्या बड़ाई, जहां से सारी दुनिया प्यासी ही लौट जाती है?
left|50px|link=धन थोरो, इज्जत बड़ी -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=अनुचित बचत न मानिए -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख