परशुराम: Difference between revisions

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Revision as of 05:34, 26 March 2010

परशुराम / Parshuram

राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र, विष्णु के अवतार परशुराम शिव के परम भक्त थे इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। एक बार इनके पिता ने अपने सब पुत्रों को माता का वध करने के लिए कहा। परशुराम के अतिरिक्त कोई भी तैयार न हुआ। अत: जमदग्नि ने सबको संज्ञाहीन कर दिया। परशुराम ने पिता की आज्ञा मानकर माता का शीश काट डाला। पिता ने प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा तो उन्होंने चार वरदान माँगे-

  1. माँ पुनर्जीवित हो जायँ,
  2. उन्हें मरने की स्मृति न रहे,
  3. भाई चेतना-युक्त हो जायँ और
  4. मैं परमायु होऊँ। जमदग्नि ने उन्हें चारों वरदान दे दिये।
  • एक बार कार्त्तवीर्य ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम उजाड़ डाला था, जिससे परशुराम ने क्रोधित हो उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला।
  • कार्त्तवीर्य के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध की भावना से जमदग्नि का वध कर दिया।
  • इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया।
  • रामावतार में रामचन्द्र द्वारा शिव का धनुष तोड़ने पर ये क्रुद्ध होकर आये थे। इन्होंने परीक्षा के लिए उनका धनुष रामचन्द्र को दिया। जब राम ने धनुष चढ़ा दिया तो परशुराम समझ गये कि रामचन्द्र विष्णु के अवतार हैं। इसलिए उनकी वन्दना करके वे तपस्या करने चले गये।
  • 'कहि जय जय रघुकुल केतू। भुगुपति गए बनहि तप हेतु॥' यह वर्णन 'राम चरितमानस', प्रथम सोपान में 267 से 284 दोहे तक मिलता है।