मदर इंडिया: Difference between revisions

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==कथावस्तु==
==कथावस्तु==
1940 में फिल्म "औरत" में महबूब एक आम हिंदुस्तानी औरत के संघर्ष और हौसले को सलाम करते हैं और उसे एक ऐसी जीवन वाली महिला के रूप में पेश करते हैं, जो विपरीत हालात में भी डटकर खड़ी रहती है। इस फिल्म में एक गांव की कहानी है, जिसमें एक कुटिल और लालची साहूकार अपनी हवस पूरी करने के लिए किसान परिवार की एक स्त्री पर अत्याचार करता है। सत्रह साल बाद यानी 1957 में महबूब ने इसी फिल्म का नया संस्करण "मदर इंडिया" शीर्षक के साथ बनाया। "औरत" की तरह "मदर इंडिया" को भी अपार सफलता हासिल हुई और इस फ़िल्म ने महबूब को भारतीय सिने इतिहास में अमर कर दिया।
1940 में फिल्म "औरत" में महबूब एक आम हिंदुस्तानी औरत के संघर्ष और हौसले को सलाम करते हैं और उसे एक ऐसी जीवन वाली महिला के रूप में पेश करते हैं, जो विपरीत हालात में भी डटकर खड़ी रहती है। इस फिल्म में एक गांव की कहानी है, जिसमें एक कुटिल और लालची साहूकार अपनी हवस पूरी करने के लिए किसान परिवार की एक स्त्री पर अत्याचार करता है। सत्रह साल बाद यानी 1957 में महबूब ने इसी फिल्म का नया संस्करण "मदर इंडिया" शीर्षक के साथ बनाया। "औरत" की तरह "मदर इंडिया" को भी अपार सफलता हासिल हुई और इस फ़िल्म ने महबूब को भारतीय सिने इतिहास में अमर कर दिया।
==निर्माण=
==निर्माण==
"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण [[गुजरात]] में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फिल्म का कुछ हिस्सा सरार और काशीपुरा गांवों में भी फिल्माया गया था। <ref>(सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था)</ref> आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा जिले में आते हैं।
"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण [[गुजरात]] में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फिल्म का कुछ हिस्सा सरार और काशीपुरा गांवों में भी फिल्माया गया था। <ref>(सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था)</ref> आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा जिले में आते हैं।
==गीत-संगीत==  
==गीत-संगीत==  
फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। शकील बदायूंनी के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक खूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फिल्म के ज्यादातर गीत शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी और मन्ना डे से गवाए, जबकि नर्गिस पर फिल्माए गए गीतों में उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएं उतार दीं और यही वजह है कि फिल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।  
फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। शकील बदायूंनी के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक खूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फिल्म के ज्यादातर गीत शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी और मन्ना डे से गवाए, जबकि नर्गिस पर फिल्माए गए गीतों में उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएं उतार दीं और यही वजह है कि फिल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।  
==छायाकंन==
"मदर इंडिया" के छायाकंन फरदून ए. ईरानी ने किया था। जिनके साथ महबूब की दोस्ती फिल्म "अल हिलाल" के वक्त से ही थी। महबूब की फिल्मों में फरदून की छायाकंन देखते ही बनता है, खास तौर पर महबूब की "अंदाज" और "अमर" जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में तो फरदून ने कमाल की छायाकंन किया है। फरदून ने "मदर इंडिया" के दृश्यों को खूबसूरत बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। आउटडोर लोकेशन के दृश्यों में फरदून का कैमरा कुदरत की खूबसूरत कारीगरी को बखूबी परदे पर चित्रित करता है। फिल्म में गांव-देहात के दृश्य भी बड़े जीवंत होकर उभरते हैं। <blockquote>दूर-दूर तक फैला नीला आसमान....रास्ते में धूल उड़ाती हुई बैलगाड़ी चली जा रही है....बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं की रूनझुन की मधुर ध्वनि आपके दिल को छू जाती है!</blockquote>
==संवाद==
"मदर इंडिया" का स्क्रीनप्ले बहुत प्रभावी था और इसके डायलॉग बेहद असरदार थे। "औरत" के डायलॉग वज़ाहत मिर्जा ने लिखे थे, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि महबूब ने "मदर इंडिया" के संवाद लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा। वजाहत मिर्जा को नाटकीय दृश्यों की संरचना करने में महारत हासिल थी और "मदर इंडिया" के दृश्यों में भी उन्होंने अपना यही कमाल दिखाया। फिल्म के किरदारों की जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा उनके गमों और खुशियों को उन्होंने अपने दमदार संवादों में पिरोया। यही कारण है कि राधा, श्यामू या बिरजू जैसे किरदार इतने विश्वसनीय बनकर परदे पर उभरे।


महबूब और वजाहत मिर्ज़ा दोनों का स्वभाव एक जैसा था, इसलिए उनमें अक्सर झगड़ा हो जाता था। "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान भी ऐसा कई बार हुआ। नौबत यहाँ तक आ गई कि एक मर्तबा तो वजाहत मिर्जा ने महबूब के पास इत्तिला भिजवा दी कि वे फिल्म के लिए डायलॉग नहीं लिखेंगे। तब महबूब ने ही एक रास्ता निकाला। उन्होंने सैयद अली रजा को मध्यस्थ बनाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे वजाहत मिर्जा से संवाद लिखवाएं और सैट पर महबूब के पास पहुंचाएं। अली रजा इससे पहले महबूब के लिए "अंदाज" की कहानी लिख चुके थे। वे वजाहत मिर्जा का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन जब "मदर इंडिया" के क्रेडिट्स देने की बारी आई, तो महबूब ने संवाद लेखक के तौर पर वजाहत मिर्जा के साथ अली रजा का नाम भी देने का फैसला किया। वजाहत मिर्जा को जब यह बात पता लगी, तो उन्होंने एतराज किया और इस बारे में एक चिट्ठी महबूब के पास भेजी....लेकिन तब तक महबूब अपनी फिल्म को अंतिम रूप दे चुके थे और उनके पास इतना वक्त भी नहीं था कि वे फिल्म की के्रडिट लाइन में कुछ फेरबदल कर पाते।
महबूब ने "मदर इंडिया" के टाइटल रोल में नर्गिस को लिया, जिन्हें वे 1943 में बनी अपनी फिल्म "तकदीर" के जरिए जमाने के सामने ला चुके थे। नर्गिस की गिनती पचास के दशक की कामयाब अभिनेत्रियों में होती थी। उस दौर में उन्होंने अनेक फिल्मों में मुख्य नायिका के तौर पर काम किया, लेकिन "मदर इंडिया" का रोल उनके लिए कितना अहम था, यह खुद नर्गिस ने एक इंटरव्यू में बताया था। उन्होंने कहा था, <blockquote>"....जब मुझे "मदर इंडिया" का रोल ऑफर किया गया, तो मुझे लगा कि एक कलाकार होने के नाते मैंने जो उम्मीदें लगा रखी हैं, आखिरकार उनके पूरा होने का वक्त आ गया है।.</blockquote>...." <ref>(फिल्मफेअर / 25 अप्रेल 1958)</ref>
जब कभी लोकप्रिय भारतीय फिल्मों के बारे में रायशुमारी की जाती है, "मदर इंडिया" हमेशा पहली पायदान पर खड़ी नजर आती है। हिंदी सिनेमा की चंद क्लासिक फिल्मों में "मदर इंडिया" की गिनती की जाती है और सिर्फ अपने देश में ही नहीं, दुनिया के बाकी मुल्कों में भी हर पीढ़ी के दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद किया है। <ref>(नियोगी बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक "द डायलॉग ऑफ मदर इंडिया" के कुछ अंश।)</ref>
==मदर इंडिया का चरित्र गढ़ने वाले महारथी==
महबूब खान की मदर इंडिया भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण और सराही जाने वाली फिल्मों में से एक है। मदर इंडिया की पटकथा भी जबर्दस्त थी। फिल्म की कामयाबी में उसकी सशक्त पटकथा का भी अहम योगदान रहा था।
<ref>लेखिका और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने मेहबूब खान की इस क्लासिक फिल्म के संवादों को एक किताब की शक्ल में संजोया है। वे इससे पहले भी सिनेमा पर कई किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं वर्ष 1996 में प्रकाशित गुरुदत्त : अ लाइफ इन सिनेमा, वर्ष 2009 में प्रकाशित लता मंगेशकर : इन हर ओन वॉइस और वर्ष २क्१क् में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ आवारा : राज कपूर्स इम्मोर्टल क्लासिक। उनकी नई किताब में मदर इंडिया के संवादों के साथ ही शकील बदायूंनी के सदाबहार गीतों को भी देवनागरी, उर्दू और रोमन लिपि में जगह दी गई है।
</ref>
हालांकि सिनेमा एक दृश्य माध्यम है, लेकिन फिल्म को कहने की कला में उसके संवादों की भूमिका को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी भी फिल्म के संवाद न केवल उसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का निर्माण करते हैं, बल्कि वे उसके मुख्य किरदारों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। यही बात मदर इंडिया पर भी लागू होती है। वर्ष 1957 में रिलीज हुई यह फिल्म ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित होने वाली पहली हिंदी फिल्म थी।
फिल्म में नरगिस, राजकुमार, सुनील दत्त, कन्हैयालाल और राजेंद्र कुमार के संवादों ने संघर्ष और जुझारूपन की इस अमर गाथा को जीवंत कर दिया था। मदर इंडिया पटकथा वजाहत मिर्जा और सैयद अली रजा ने निर्देशक मेहबूब खान के साथ लिखी थी। वर्ष 1908 में लखनऊ में जन्मे वजाहत मिर्जा ने अपना फिल्मी कैरियर कलकत्ते के न्यू थिएटर में सहायक कैमरामैन की हैसियत से शुरू किया था। 40 के दशक में वे मुंबई चले आए।
उन्होंने मुंबई में अपने कामकाज की शुरुआत अभिनेता और फिल्म निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे पटकथा लेखन में रुचि लेने लगे। वे उर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, हालांकि उनकी शायरी कभी सामने नहीं आ सकी। उन्होंने भारत की कुछ बेहतरीन फिल्मों का स्क्रीन प्ले लिखा है, जिनमें मदर इंडिया के अलावा मुगले आजम, शिकस्त, यहूदी, गंगा जमना और लीडर शामिल हैं। मेहबूब खान के साथ वजाहत मिर्जा ने छह फिल्में की थीं और मदर इंडिया इन दोनों महारथियों का श्रेष्ठतम साझा प्रयास था।
सैयद अली रजा जाने-माने लेखक आगा जानी कश्मीरी के भतीजे थे। रजा की लेखन शैली बहुत विशिष्ट थी और अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने इसकी झलक दिखाई। यह फिल्म थी मेहबूब खान की अंदाज। इस फिल्म में अपने जमाने के दो दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ नजर आए थे। इसके बाद रजा ने मेहबूब खान की आन के संवाद भी लिखे। इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी भेंट अभिनेत्री निम्मी से हुई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली। सैयद अली रजा ने एक पटकथा लेखक के रूप में नए मानक स्थापित किए थे।
==राधा बनीं थीं नर्गिस==
फिल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के ज़रिए भारतीय नारी को एक नया और सशक्त रूप देने वाली नर्गिस हिंदी सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने लगभग दो दशक लंबे फिल्मी सफर में दर्जनों यादगार और संवदेनशील भूमिकाएं कीं और अपने सहज अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। 1940 और 50 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फिल्म 'मदर इंडिया' उनकी सर्वाधिक चर्चित फिल्मों में रही। इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फिल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के लिए नर्गिस को फिल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। इसी फिल्म में शूटिंग के दौरान अभिनेता सुनील दत्त ने आग से उनकी जान बचाई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।
== सुनील दत्त बने बिरजू ==
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सुनील दत्त ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म रेलवे प्लेटफार्म से की लेकिन फिल्म की असफलता से वह अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके। सुनील दत्त की किस्मत का सितारा 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया से चमका। इसमें वह एक ऎसे युवक बिरजू की भूमिका में दिखाई दिए जो गांव में सामाजिक व्यवस्था से काफी नाराज है और विद्रोह कर डाकू बन जाता है। बाद में साहूकार से बदला लेने के लिए वह उसकी पुत्री का अपहरण कर लेता है, लेकिन इस कोशिश में वह अपनी मां के हाथों मारा जाता है। इस फिल्म में एंटी हीरो का किरदार निभाकर वह दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब हो गए।
==मुख्य कलाकार==
* नर्गिस - राधा
* सुनील दत्त - बिरजू
* बलराज साहनी
* राजेन्द्र कुमार - रामू
* राज कुमार
* कन्हैया लाल
* कुमकुम - चंपा
* चंचल
* मुकरी
* सिद्दीकी
* गीता





Revision as of 13:04, 27 August 2010

मदर इंडिया महबूब ख़ान के द्वारा निर्देशित एक विख्यात हिन्दी फ़िल्म है, इसका प्रदर्शन 1957 में हुआ था।

कथावस्तु

1940 में फिल्म "औरत" में महबूब एक आम हिंदुस्तानी औरत के संघर्ष और हौसले को सलाम करते हैं और उसे एक ऐसी जीवन वाली महिला के रूप में पेश करते हैं, जो विपरीत हालात में भी डटकर खड़ी रहती है। इस फिल्म में एक गांव की कहानी है, जिसमें एक कुटिल और लालची साहूकार अपनी हवस पूरी करने के लिए किसान परिवार की एक स्त्री पर अत्याचार करता है। सत्रह साल बाद यानी 1957 में महबूब ने इसी फिल्म का नया संस्करण "मदर इंडिया" शीर्षक के साथ बनाया। "औरत" की तरह "मदर इंडिया" को भी अपार सफलता हासिल हुई और इस फ़िल्म ने महबूब को भारतीय सिने इतिहास में अमर कर दिया।

निर्माण

"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण गुजरात में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फिल्म का कुछ हिस्सा सरार और काशीपुरा गांवों में भी फिल्माया गया था। [1] आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा जिले में आते हैं।

गीत-संगीत

फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। शकील बदायूंनी के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक खूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फिल्म के ज्यादातर गीत शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी और मन्ना डे से गवाए, जबकि नर्गिस पर फिल्माए गए गीतों में उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएं उतार दीं और यही वजह है कि फिल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।

छायाकंन

"मदर इंडिया" के छायाकंन फरदून ए. ईरानी ने किया था। जिनके साथ महबूब की दोस्ती फिल्म "अल हिलाल" के वक्त से ही थी। महबूब की फिल्मों में फरदून की छायाकंन देखते ही बनता है, खास तौर पर महबूब की "अंदाज" और "अमर" जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में तो फरदून ने कमाल की छायाकंन किया है। फरदून ने "मदर इंडिया" के दृश्यों को खूबसूरत बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। आउटडोर लोकेशन के दृश्यों में फरदून का कैमरा कुदरत की खूबसूरत कारीगरी को बखूबी परदे पर चित्रित करता है। फिल्म में गांव-देहात के दृश्य भी बड़े जीवंत होकर उभरते हैं।

दूर-दूर तक फैला नीला आसमान....रास्ते में धूल उड़ाती हुई बैलगाड़ी चली जा रही है....बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं की रूनझुन की मधुर ध्वनि आपके दिल को छू जाती है!

संवाद

"मदर इंडिया" का स्क्रीनप्ले बहुत प्रभावी था और इसके डायलॉग बेहद असरदार थे। "औरत" के डायलॉग वज़ाहत मिर्जा ने लिखे थे, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि महबूब ने "मदर इंडिया" के संवाद लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा। वजाहत मिर्जा को नाटकीय दृश्यों की संरचना करने में महारत हासिल थी और "मदर इंडिया" के दृश्यों में भी उन्होंने अपना यही कमाल दिखाया। फिल्म के किरदारों की जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा उनके गमों और खुशियों को उन्होंने अपने दमदार संवादों में पिरोया। यही कारण है कि राधा, श्यामू या बिरजू जैसे किरदार इतने विश्वसनीय बनकर परदे पर उभरे।

महबूब और वजाहत मिर्ज़ा दोनों का स्वभाव एक जैसा था, इसलिए उनमें अक्सर झगड़ा हो जाता था। "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान भी ऐसा कई बार हुआ। नौबत यहाँ तक आ गई कि एक मर्तबा तो वजाहत मिर्जा ने महबूब के पास इत्तिला भिजवा दी कि वे फिल्म के लिए डायलॉग नहीं लिखेंगे। तब महबूब ने ही एक रास्ता निकाला। उन्होंने सैयद अली रजा को मध्यस्थ बनाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे वजाहत मिर्जा से संवाद लिखवाएं और सैट पर महबूब के पास पहुंचाएं। अली रजा इससे पहले महबूब के लिए "अंदाज" की कहानी लिख चुके थे। वे वजाहत मिर्जा का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन जब "मदर इंडिया" के क्रेडिट्स देने की बारी आई, तो महबूब ने संवाद लेखक के तौर पर वजाहत मिर्जा के साथ अली रजा का नाम भी देने का फैसला किया। वजाहत मिर्जा को जब यह बात पता लगी, तो उन्होंने एतराज किया और इस बारे में एक चिट्ठी महबूब के पास भेजी....लेकिन तब तक महबूब अपनी फिल्म को अंतिम रूप दे चुके थे और उनके पास इतना वक्त भी नहीं था कि वे फिल्म की के्रडिट लाइन में कुछ फेरबदल कर पाते।

महबूब ने "मदर इंडिया" के टाइटल रोल में नर्गिस को लिया, जिन्हें वे 1943 में बनी अपनी फिल्म "तकदीर" के जरिए जमाने के सामने ला चुके थे। नर्गिस की गिनती पचास के दशक की कामयाब अभिनेत्रियों में होती थी। उस दौर में उन्होंने अनेक फिल्मों में मुख्य नायिका के तौर पर काम किया, लेकिन "मदर इंडिया" का रोल उनके लिए कितना अहम था, यह खुद नर्गिस ने एक इंटरव्यू में बताया था। उन्होंने कहा था,

"....जब मुझे "मदर इंडिया" का रोल ऑफर किया गया, तो मुझे लगा कि एक कलाकार होने के नाते मैंने जो उम्मीदें लगा रखी हैं, आखिरकार उनके पूरा होने का वक्त आ गया है।.

...." [2]

जब कभी लोकप्रिय भारतीय फिल्मों के बारे में रायशुमारी की जाती है, "मदर इंडिया" हमेशा पहली पायदान पर खड़ी नजर आती है। हिंदी सिनेमा की चंद क्लासिक फिल्मों में "मदर इंडिया" की गिनती की जाती है और सिर्फ अपने देश में ही नहीं, दुनिया के बाकी मुल्कों में भी हर पीढ़ी के दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद किया है। [3]

मदर इंडिया का चरित्र गढ़ने वाले महारथी

महबूब खान की मदर इंडिया भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण और सराही जाने वाली फिल्मों में से एक है। मदर इंडिया की पटकथा भी जबर्दस्त थी। फिल्म की कामयाबी में उसकी सशक्त पटकथा का भी अहम योगदान रहा था।

[4] हालांकि सिनेमा एक दृश्य माध्यम है, लेकिन फिल्म को कहने की कला में उसके संवादों की भूमिका को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी भी फिल्म के संवाद न केवल उसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का निर्माण करते हैं, बल्कि वे उसके मुख्य किरदारों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। यही बात मदर इंडिया पर भी लागू होती है। वर्ष 1957 में रिलीज हुई यह फिल्म ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित होने वाली पहली हिंदी फिल्म थी।

फिल्म में नरगिस, राजकुमार, सुनील दत्त, कन्हैयालाल और राजेंद्र कुमार के संवादों ने संघर्ष और जुझारूपन की इस अमर गाथा को जीवंत कर दिया था। मदर इंडिया पटकथा वजाहत मिर्जा और सैयद अली रजा ने निर्देशक मेहबूब खान के साथ लिखी थी। वर्ष 1908 में लखनऊ में जन्मे वजाहत मिर्जा ने अपना फिल्मी कैरियर कलकत्ते के न्यू थिएटर में सहायक कैमरामैन की हैसियत से शुरू किया था। 40 के दशक में वे मुंबई चले आए।

उन्होंने मुंबई में अपने कामकाज की शुरुआत अभिनेता और फिल्म निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे पटकथा लेखन में रुचि लेने लगे। वे उर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, हालांकि उनकी शायरी कभी सामने नहीं आ सकी। उन्होंने भारत की कुछ बेहतरीन फिल्मों का स्क्रीन प्ले लिखा है, जिनमें मदर इंडिया के अलावा मुगले आजम, शिकस्त, यहूदी, गंगा जमना और लीडर शामिल हैं। मेहबूब खान के साथ वजाहत मिर्जा ने छह फिल्में की थीं और मदर इंडिया इन दोनों महारथियों का श्रेष्ठतम साझा प्रयास था।

सैयद अली रजा जाने-माने लेखक आगा जानी कश्मीरी के भतीजे थे। रजा की लेखन शैली बहुत विशिष्ट थी और अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने इसकी झलक दिखाई। यह फिल्म थी मेहबूब खान की अंदाज। इस फिल्म में अपने जमाने के दो दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ नजर आए थे। इसके बाद रजा ने मेहबूब खान की आन के संवाद भी लिखे। इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी भेंट अभिनेत्री निम्मी से हुई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली। सैयद अली रजा ने एक पटकथा लेखक के रूप में नए मानक स्थापित किए थे।

राधा बनीं थीं नर्गिस

फिल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के ज़रिए भारतीय नारी को एक नया और सशक्त रूप देने वाली नर्गिस हिंदी सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने लगभग दो दशक लंबे फिल्मी सफर में दर्जनों यादगार और संवदेनशील भूमिकाएं कीं और अपने सहज अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। 1940 और 50 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फिल्म 'मदर इंडिया' उनकी सर्वाधिक चर्चित फिल्मों में रही। इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फिल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के लिए नर्गिस को फिल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। इसी फिल्म में शूटिंग के दौरान अभिनेता सुनील दत्त ने आग से उनकी जान बचाई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।

सुनील दत्त बने बिरजू

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सुनील दत्त ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म रेलवे प्लेटफार्म से की लेकिन फिल्म की असफलता से वह अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके। सुनील दत्त की किस्मत का सितारा 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया से चमका। इसमें वह एक ऎसे युवक बिरजू की भूमिका में दिखाई दिए जो गांव में सामाजिक व्यवस्था से काफी नाराज है और विद्रोह कर डाकू बन जाता है। बाद में साहूकार से बदला लेने के लिए वह उसकी पुत्री का अपहरण कर लेता है, लेकिन इस कोशिश में वह अपनी मां के हाथों मारा जाता है। इस फिल्म में एंटी हीरो का किरदार निभाकर वह दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब हो गए।

मुख्य कलाकार

  • नर्गिस - राधा
  • सुनील दत्त - बिरजू
  • बलराज साहनी
  • राजेन्द्र कुमार - रामू
  • राज कुमार
  • कन्हैया लाल
  • कुमकुम - चंपा
  • चंचल
  • मुकरी
  • सिद्दीकी
  • गीता


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था)
  2. (फिल्मफेअर / 25 अप्रेल 1958)
  3. (नियोगी बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक "द डायलॉग ऑफ मदर इंडिया" के कुछ अंश।)
  4. लेखिका और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने मेहबूब खान की इस क्लासिक फिल्म के संवादों को एक किताब की शक्ल में संजोया है। वे इससे पहले भी सिनेमा पर कई किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं वर्ष 1996 में प्रकाशित गुरुदत्त : अ लाइफ इन सिनेमा, वर्ष 2009 में प्रकाशित लता मंगेशकर : इन हर ओन वॉइस और वर्ष २क्१क् में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ आवारा : राज कपूर्स इम्मोर्टल क्लासिक। उनकी नई किताब में मदर इंडिया के संवादों के साथ ही शकील बदायूंनी के सदाबहार गीतों को भी देवनागरी, उर्दू और रोमन लिपि में जगह दी गई है।