आर्यभट्ट: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('*‘आर्यभट्टीय‘नामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
Line 17: | Line 17: | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
[[Category:कोश]][[Category:खगोल_कोश]][[Category:वैज्ञानिक]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
Revision as of 13:03, 27 October 2010
- ‘आर्यभट्टीय‘नामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ थे।
- आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया।
- आर्यभट्ट के प्रयासों के द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका।
- आर्यभट्ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होंने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होने सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला।
- आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धान्त लिखा।
- आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर 'भास्कर प्रथम' ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ है- ‘महाभास्कर्य‘, ‘लघुभास्कर्य‘ एवं ‘भाष्य‘।
- ब्रह्मगुप्त ने ‘ब्रह्म-सिद्धान्त‘ की रचना कर बताया कि ‘प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है।
- आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ