भारतकोश:Quotations/सोमवार: Difference between revisions

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*जब मरने के बाद श्मशान में डाल दिए जाने पर सभी लोग समान रूप से पृथ्वी की गोद में सोते हैं, तब मूर्ख मानव इस संसार में क्यों एक दूसरे को ठगने की इच्छा करते हैं।  -'''वेद व्यास''' (महाभारत, स्त्रीपर्व|4|18)
*अनुभव वह नहीं है जो आपके साथ घटित होता है, अपितु जो आपके साथ घटित होता है, उसका आप क्या करते हैं, वह अनुभव है। -'''एल्डस लियोनार्ड हक्सले'''
*नीच मनुष्य विघ्नों के भय से आरम्भ नहीं करते, मध्यम कोटि के लोग प्रारम्भ करने के बाद विघ्न आने पर रुक जाते हैं, किन्तु उत्तम कोटि के मनुष्य विघ्नों के बार-बार आने पर भी एक बार प्रारम्भ किए गए काम को नहीं छोड़ते। -'''भर्तु हरि''' (नीतिशतक, 27)
*हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें जो हमारे हाथ में है, और इस प्रकार धीरे–धीरे शक्ति संचय करते हुए क्रमशः हम सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। -'''[[स्वामी विवेकानन्द|विवेकानन्द]]''' (विवेकानन्द साहित्य, तृतीय खण्ड, पृ0 43)
*जिस समय जो कार्य करना उचित हो, उसे उसी समय शंकारहित होकर शीघ्र करना चाहिए, क्योंकि समय पर हुई वर्षा फ़सल की पोषक होती है, असमय की वर्षा विनाशिनी होती है। -'''शक्रनीति''' (1|286-287)
*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- [[गीता|श्रीमद्भागवत गीता]]'''
*अनेक विद्याओं का अध्ययन करके भी जो समाज के साथ मिलकर आचरण्युक्त जीवन व्यतीत करना नहीं जानते, वे अज्ञानी ही समझे जायेंगे। - '''तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 140)'''
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Revision as of 10:03, 21 November 2010

  • जब मरने के बाद श्मशान में डाल दिए जाने पर सभी लोग समान रूप से पृथ्वी की गोद में सोते हैं, तब मूर्ख मानव इस संसार में क्यों एक दूसरे को ठगने की इच्छा करते हैं। -वेद व्यास (महाभारत, स्त्रीपर्व|4|18)
  • अनुभव वह नहीं है जो आपके साथ घटित होता है, अपितु जो आपके साथ घटित होता है, उसका आप क्या करते हैं, वह अनुभव है। -एल्डस लियोनार्ड हक्सले
  • नीच मनुष्य विघ्नों के भय से आरम्भ नहीं करते, मध्यम कोटि के लोग प्रारम्भ करने के बाद विघ्न आने पर रुक जाते हैं, किन्तु उत्तम कोटि के मनुष्य विघ्नों के बार-बार आने पर भी एक बार प्रारम्भ किए गए काम को नहीं छोड़ते। -भर्तु हरि (नीतिशतक, 27)
  • हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें जो हमारे हाथ में है, और इस प्रकार धीरे–धीरे शक्ति संचय करते हुए क्रमशः हम सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। -विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, तृतीय खण्ड, पृ0 43)
  • जिस समय जो कार्य करना उचित हो, उसे उसी समय शंकारहित होकर शीघ्र करना चाहिए, क्योंकि समय पर हुई वर्षा फ़सल की पोषक होती है, असमय की वर्षा विनाशिनी होती है। -शक्रनीति (1|286-287)
  • यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता
  • अनेक विद्याओं का अध्ययन करके भी जो समाज के साथ मिलकर आचरण्युक्त जीवन व्यतीत करना नहीं जानते, वे अज्ञानी ही समझे जायेंगे। - तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 140)

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