विजयाराजे सिंधिया: Difference between revisions

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राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।  
राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।  


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विजयाराजे सिंधिया
पूरा नाम राजमाता विजयाराजे सिंधिया
अन्य नाम लेखा दिव्येश्वरी
जन्म सन 1919 ई.
जन्म भूमि सागर, मध्य प्रदेश
मृत्यु जनवरी, 2001 ई.
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
मृत्यु कारण स्वास्थ्य ख़राब
पति/पत्नी जीवाजी राव सिंधिया
संतान पुत्र- माधवराव सिंधिया, पुत्री- वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया
पार्टी भाजपा
जेल यात्रा 1975 में आपातकाल के दौरान जेल गईं
अन्य जानकारी अखिल भारतीय महिला कान्फ़्रेंस (ग्वालियर शाखा) की 40 वर्षों तक अध्यक्ष रही ।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा की नेता थी। (जन्म- 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश, मृत्यु- जनवरी 2001 ई. ग्वालियर)। विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता था।

जीवन परिचय

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे, और विजयाराजे सिंधिया की माता श्रीमती 'विंदेश्वरी देवी' थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम 'लेखा दिव्येश्वरी' था। विजयाराजे सिंधिया का विवाह 21 फ़रवरी, 1941 ई. में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया, पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया हैं।

राजनीति सफर

ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजे - रजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ (भाजपा) में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।[1]

वर्ष पद
1957 लोकसभा (दूसरी) के लिए निर्वाचित
1962 लोकसभा (तीसरी) के लिए पुन: निर्वाचित
1967 मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित
1971 लोकसभा (पाँचवी) के लिए तीसरी बार निर्वाचित
1978 राज्यसभा के लिए निर्वाचित
1989 लोकसभा (नौंवी) के लिए चौथी बार निर्वाचित
1990 सदस्य, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति
1991 लोकसभा (दसवीं) के लिए पाँचवी बार निर्वाचित

1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुक़ाबले में 'हिंदू महासभा' के देशपांडे को 60 हज़ार 57 मतों से पराजित किया। 1967 का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हज़ार 189 मतों से पराजित किया।

सन 1989 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले 22 साल पूर्व सन 1967 में राजमाता वहाँ से जीती थीं। उनके मुक़ाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हज़ार 290 वोटों से परास्त हो गए।[2]

1991 के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हज़ार 52 मतों से पराजित किया। विजयाराजे सिंधिया 1996 के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक कायम करते हुए कांग्रेस के के. पी. सिंह को एक लाख 30 हज़ार 824 मतों से पराजित किया।

1998 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हज़ार 82 मतों से पराजित कर डाला। 1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पाँच उम्मीदवारों की मौज़ूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के देशराज सिंह को दो लाख 14 हज़ार 428 मतों से पराजित किया।[3]

मृत्यु

ग्वालियर के राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। सन 1998 से राजमाता का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा और जनवरी, सन 2001 ई. में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया।

प्रेरणा स्त्रोत

राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहली बार पार्टी अध्यक्ष बनना (हिन्दी) लालकृष्ण आडवाणी। अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010
  2. दो दशक बाद लौटीं राजमाता (हिन्दी) (एच.टी.एम) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010
  3. महल तय करता है गुना, शिवपुरी का भाग्य (हिन्दी) जागरण। अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010