बख़्त ख़ाँ: Difference between revisions

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बख़्त ख़ाँ का जन्म सन 1797 ई. को हुआ था। अग्रेज़ विरोधी भारतीय विद्रोह (1857) के आरंभिक चरण में वह विद्रोह टुकड़ियों के सेना प्रमुख थे। मातृ पक्ष से [[अवध]] (1856 में अंग्रेज़ो द्वारा सत्ताच्युत) के शासक परिवार से संबंधित बख़्त ख़ां ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कई वर्षों तक तोपख़ाना प्रमुख के पद पर काम किया। मई सन 1857 ई. में विद्रोह भड़कने पर उन्होंने [[दिल्ली]] जा रही अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। जहाँ बख़्त ख़ां विद्रोहियों द्वारा घोषित स्वतंत्र भारतीय सरकार में प्रधान नेता बनकर उभरे। नाममात्र के मुग़ल बादशाह पर नियंत्रण रखने के लिए उन्होंने एक प्रशासित दरबार स्थापित किया, जिसके सदस्य सेना व सरकारी विभागों द्वारा चुने गए। कहा जाता है कि सितंबर में अंग्रेज़ों द्वारा दिल्ली से बाहर निकाले जाने के बाद विद्रोह के अंतिम दिनों में चल रही लड़ाई के दौरान सन 1859 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
बख़्त ख़ाँ का जन्म सन 1797 ई. को हुआ था। अग्रेज़ विरोधी भारतीय विद्रोह (1857) के आरंभिक चरण में वह विद्रोह टुकड़ियों के सेना प्रमुख थे। मातृ पक्ष से [[अवध]] (1856 में अंग्रेज़ो द्वारा सत्ताच्युत) के शासक परिवार से संबंधित बख़्त ख़ां ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कई वर्षों तक तोपख़ाना प्रमुख के पद पर काम किया। मई सन 1857 ई. में विद्रोह भड़कने पर उन्होंने [[दिल्ली]] जा रही अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। जहाँ बख़्त ख़ां विद्रोहियों द्वारा घोषित स्वतंत्र भारतीय सरकार में प्रधान नेता बनकर उभरे। नाममात्र के मुग़ल बादशाह पर नियंत्रण रखने के लिए उन्होंने एक प्रशासित दरबार स्थापित किया, जिसके सदस्य सेना व सरकारी विभागों द्वारा चुने गए। कहा जाता है कि सितंबर में अंग्रेज़ों द्वारा दिल्ली से बाहर निकाले जाने के बाद विद्रोह के अंतिम दिनों में चल रही लड़ाई के दौरान सन 1859 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
 
 
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बख़्त ख़ाँ का जन्म सन 1797 ई. को हुआ था। अग्रेज़ विरोधी भारतीय विद्रोह (1857) के आरंभिक चरण में वह विद्रोह टुकड़ियों के सेना प्रमुख थे। मातृ पक्ष से अवध (1856 में अंग्रेज़ो द्वारा सत्ताच्युत) के शासक परिवार से संबंधित बख़्त ख़ां ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कई वर्षों तक तोपख़ाना प्रमुख के पद पर काम किया। मई सन 1857 ई. में विद्रोह भड़कने पर उन्होंने दिल्ली जा रही अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। जहाँ बख़्त ख़ां विद्रोहियों द्वारा घोषित स्वतंत्र भारतीय सरकार में प्रधान नेता बनकर उभरे। नाममात्र के मुग़ल बादशाह पर नियंत्रण रखने के लिए उन्होंने एक प्रशासित दरबार स्थापित किया, जिसके सदस्य सेना व सरकारी विभागों द्वारा चुने गए। कहा जाता है कि सितंबर में अंग्रेज़ों द्वारा दिल्ली से बाहर निकाले जाने के बाद विद्रोह के अंतिम दिनों में चल रही लड़ाई के दौरान सन 1859 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।  


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